सहयोग पर जोर

वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल के बीच हुई जी-20 समूह की शिखर बैठक से निकले नतीजे सकारात्मक हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के संरक्षणवाद और अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के अलावा आर्थिक प्रतिबंध, तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव, यूरोपीय संघ की मुश्किलें, दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अशांति तथा गहराती शरणार्थी समस्या की चुनौतियों के […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 3, 2018 12:24 AM

वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल के बीच हुई जी-20 समूह की शिखर बैठक से निकले नतीजे सकारात्मक हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के संरक्षणवाद और अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के अलावा आर्थिक प्रतिबंध, तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव, यूरोपीय संघ की मुश्किलें, दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अशांति तथा गहराती शरणार्थी समस्या की चुनौतियों के मद्देनजर इस सम्मेलन पर दुनियाभर की निगाहें टिकी हुई थीं.

हालांकि इसमें भाग ले रहे राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्यक्ष कोई ऐसी बड़ी घोषणा नहीं कर पाये हैं जिसके आधार पर तात्कालिक तौर पर निश्चिंत हुआ जा सके, पर जो समझौते हुए हैं तथा जो बातचीत का सिलसिला चला है, उनसे आनेवाले कल की बेहतरी की उम्मीदें जरूर बढ़ी हैं. अमेरिका और चीन ने कुछ समय के शुल्कों को लेकर प्रतिस्पर्धा को स्थगित किया है, तो अमेरिका, मेक्सिको और कनाडा के बीच नये समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं.

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच आपसी व्यापार के दायरे को विस्तार देने पर सहमति बनी है. सभी नेताओं ने विश्व व्यापार संगठन की संरचना और नियमन में सुधार पर भी जोर दिया है ताकि वाणिज्यिक तनावों पर काबू पाया जा सके. भारत के लिए यह सम्मेलन इस कारण से भी महत्वपूर्ण रहा है कि 2022 में जी-20 की बैठक की मेजबानी उसके हिस्से में आयी है.

आज भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से विकासमान है तथा उसमें बड़ा उत्पादक, बड़ा निर्यातक और बड़ा बाजार बनने की तमाम संभावनाएं हैं. ऐसे में दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के इस समूह की बैठक हमारी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर अपने देश में आयोजित होना एक बड़ा अवसर भी होगा. वैसे तो इस समूह के सदस्य देशों के मंत्रियों और केंद्रीय बैंक गवर्नरों की बैठक 1999 से ही हो रही है, पर नेताओं का पहला शिखर सम्मेलन आर्थिक मंदी से उबरने के उपायों पर चर्चा के लिए 2008 में हुआ था.

एक दशक में यह कूटनीतिक और आर्थिक विषयों पर चर्चा के लिहाज से अहम मंच साबित हुआ है. वैश्वीकृत वित्तीय व्यवस्था की व्यापकता में बढ़ोतरी के साथ धोखाधड़ी और फर्जीवाड़ा जैसे अपराधों की संख्या भी बढ़ी है. ऐसी घटनाएं भले ही देश में घटती है, पर इनका असर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होता है. इन पर अंकुश लगाने के लिए भारत ने जी-20 के सामने नौ-सूत्री सुझाव पेश किया है.

यदि विभिन्न देशों में इन अपराधों को रोकने और अपराधियों की धर-पकड़ के लिए सहयोग मजबूत होता है, तो वित्तीय संस्थाओं और कारोबारी गतिविधियों के प्रति भरोसा भी मजबूत होगा तथा आर्थिक वृद्धि के लाभों के प्रसार में भी मदद मिलेगी. इन सुझावों को रखते हुए प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार और बहुराष्ट्रीय अपराधों पर संयुक्त राष्ट्र के संकल्पों को भी लागू करने का आह्वान किया है.

बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था को उत्तरोत्तर प्रभावी बनाने के लिए इस संबंध में साझेदारी समय की मांग है. आशा है कि वैश्विक समुदाय इन सुझावों पर गंभीरता से विचार करेगा तथा जल्दी ही एक ठोस एवं व्यावहारिक तंत्र स्थापित किया जायेगा.

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