Land Occupation : जमीन हमें बेच दो, वरना बुलडोजर चल जाएगा, पुलिसकर्मियों पर लगा जमीन कब्जाने का आरोप
Land Occupation : उत्तर प्रदेश के पुलिसकर्मियों पर जमीन कब्जाने का आरोप लगा है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मामले के जांच के आदेश दिये हैं. जानें पूरा मामला आखिर है क्या?
Land Occupation : इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने लखनऊ पुलिस आयुक्त को गोमती नगर थाने के कुछ पुलिसकर्मियों पर जमीन कब्जाने और मालिक को धमकाने के आरोपों की जांच का आदेश दिया है. अदालत ने एक पुलिसकर्मी की पत्नी के नाम पर हुए बैनामे की भी जांच करने को कहा है. साथ ही गोमती नगर पुलिस उपायुक्त को व्यक्तिगत हलफनामे के साथ जांच रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया गया है. इस मामले की अगली सुनवाई 24 सितंबर को होगी.
यह आदेश न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा व न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की खंडपीठ ने अरविंद कुमार शर्मा की याचिका पर पारित किया. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अविरल जायसवाल ने बताया कि याची ने खरगापुर में कुल 2,250 वर्ग फुट जमीन 2004 और 2008 में खरीदी थी. सलीम नाम का एक व्यक्ति याचिकाकर्ता को 2018 से उस जमीन से बेदखल करने की कोशिश कर रहा है, जिसकी शिकायत याचिकाकर्ता ने उच्च अधिकारियों से की थी.
खरगापुर चौकी के प्रभारी ने उल्टा याचिकाकर्ता पर डाला दबाव
दो नवंबर 2020 को जब कुछ लोग जमीन पर कब्जा करने आए, तो याचिकाकर्ता के बेटे ने पुलिस को बुलाया. लेकिन खरगापुर चौकी के प्रभारी ने उल्टा याचिकाकर्ता और उनके बेटे पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वे जमीन उन लोगों को बेच दें जो उन्हें बेदखल करना चाहते हैं. इस दौरान गोमती नगर थाने के मालखाना के तत्कालीन प्रभारी अवधेश सिंह ने याचिकाकर्ता के बेटे को धमकी दी कि या तो वह जमीन उन्हें बेच दे, वरना उसने जो निर्माण किया है उसे बुलडोजर से गिरा दिया जाएगा.
गोमती नगर थाने के ही एक अन्य दरोगा अरविंद पंत पर भी याची के बेटे को धमकाने का आरोप है. इसमें कहा गया कि धमकियों के बावजूद, जब याचिकाकर्ता अपनी जमीन बेचने के लिए तैयार नहीं हुआ, तो सलीम के पिता मोहम्मद हनीफ ने मालखाना प्रभारी अवधेश सिंह की पत्नी उर्मिला सिंह के नाम एक बैनामा किया. इस बैनामे में याचिकाकर्ता की जमीन की सीमाएं भी अंकित की गईं.
सीजेएम ने भी याची के प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया
आरोप है कि अब स्थानीय पुलिस और उक्त पुलिसकर्मी लगातार याचिकाकर्ता को जमीन से बेदखल करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि शिकायत के बावजूद पुलिस आयुक्त और जिला मजिस्ट्रेट ने कोई कार्रवाई नहीं की. यही नहीं, मामले को दीवानी विवाद मानते हुए, लखनऊ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) ने भी याची के प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया.
