कोविड का असर कैदियों की रिहाई पर भी, पैरोल पर कोर्ट की कड़ी प्रतिक्रिया

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान अंतरिम जमानत या पैरोल पर रिहा किये जाने योग्य कैदियों की पहचान के लिये राज्यों को उच्चाधिकार प्राप्त समिति गठित करने का निर्देश दिया था और उसकी मंशा अपराध की संगीनता को ध्यान में रखे बगैर प्रत्येक विचाराधीन या दोषी कैदी को रिहा करने की नहीं थी.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 22, 2020 10:24 PM

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान अंतरिम जमानत या पैरोल पर रिहा किये जाने योग्य कैदियों की पहचान के लिये राज्यों को उच्चाधिकार प्राप्त समिति गठित करने का निर्देश दिया था और उसकी मंशा अपराध की संगीनता को ध्यान में रखे बगैर प्रत्येक विचाराधीन या दोषी कैदी को रिहा करने की नहीं थी.

कोरोना वायरस को महामारी घोषित किये जाने के बाद शीर्ष अदालत ने 23 मार्च को जेलों में भी सामाजिक दूरी बनाये रखने की आवश्यकता महसूस की थी और इस वजह से राज्यों को उच्चाधिकार प्राप्त समिति गठित करने के निर्देश दिये थे ताकि कैदियों के अपराध की संगीनता, सजा की अवधि और ऐसे ही दूसरे पहलुओं को ध्यान में रखते हुये उन्हें अंतरिम जमानत या पैरोल पर रिहा किया जा सके .

शीर्ष अदालत ने बंबई उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ दायर अपील खारिज करते हुये यह स्पष्टीकरण दिया. इस मामले में उच्च न्यायालय ने कैदियों की रिहाई के लिये उनके अपराध के आधार पर वर्गीकरण करने और उन पर उच्चाधिकार समिति द्वारा अतिरिक्त शर्ते लगाने को सही ठहराया था. प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि मौजूदा विकल्प जेलों में वायरस को फैलने से रोकने के लिये भीड़ कम करने में मदद के विकल्प के रूप में उपलब्ध कराया गया था.

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फैसले में आगे कहा गया है कि न्यायालय की मंशा प्रयेक विचाराधीन या दोषी कैदी को उसके अपराध की संगीनता को ध्यान में रखे बगैर ही रिहा करने की नहीं थी. हमारा मकसद कोविड-19 के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिेये जेलों में बंदियों की भीड़ कम करना था ताकि वहां सामाजिक दूरी का पालन किया जा सके. शीर्ष अदालत के पहले के आदेश के आलोक में महाराष्ट्र सरकार ने उच्चाधिकार प्राप्त समिति गठित की थी जिसने बाद में कहा कि सात साल तक के दंडनीय अपराध के आरोपी या दोषी सभी बंदियों को अंतरिम जमानत या पैरोल पर रिहा किया जायेगा.

पीठ ने अपने फैसले में कहा कि महामारी की अभूतपूर्व स्थिति में अंतरिम जमानत के अधिकार का मसला उठा था. न्यायालय ने कहा कि अंतरिम जमानत दूसरे कानूनी पहलुओं को ध्यान में रखते हुये कोई विधायी अधिकार नहीं है और यह स्वास्थ्य की रक्षा के लिये मानव अधिकार जैसा है. न्यायालय ने कहा कि जेलों में भीड़ कम करने के लिये बंदियों की रिहाई का मामला प्रत्येक राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश में जेलों में कैदियों की क्षमता और कोविड संक्रमण फैलने की संभावना, जेल में उपलब्ध बुनियादी सुविधाओं और जरूरत पर निर्भर करेगा.

पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने 24 जुलाई को उसके समक्ष पेश विवरण के आधार पर तथ्यात्मक स्थिति का संज्ञान लिया था. इसके अनुसार 10,338 बंदियों को अंतरिम जमानत या पैरोल पर रिहा किया गया था और इस समय जेल में 26,279 कैदी थे.

न्यायालय ने कहा कि यह संकेत देना जरूरी है कि शिकायत का मौका तब आयेगा जब किसी श्रेणी विशेष के विचाराधीन या दोषी कैदी की रिहाई के मामले में किसी प्रकार का भेदभाव हुआ हो. पीठ ने कहा कि अगर उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा बनायी गयी श्रेणियों में कोई बदलाव होता है तो समिति इसका संज्ञान लेकर इस संबंध में दिशा-निर्देशों में उचित बदलाव कर सकेगी.

Posted By – Pankaj Kumar Pathak

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