CPA: नीति नियोजन में स्वदेशी परिपाटियों और संस्कृतियों को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए

राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश ने 22वें कॉमनवेल्थ पार्लियामेंट्री एसोसिएशन (सीपीए) इंडिया जोन 3 सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन पर व्याख्यान देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मिशन लाइफ (एलआईएफई) सिद्धांत जो पर्यावरण संरक्षण के लिए व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर के कार्यकलापों को बढ़ावा देता है, हमें परिकल्पना और व्यवहार, दोनों में इस सिद्धांत का पालन करना चाहिए.

By Anjani Kumar Singh | November 11, 2025 9:36 PM

CPA: नागालैंड की राजधानी कोहिमा में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रमंडल संसदीय संघ भारत क्षेत्र सम्मेलन(सीपीए जोन 3) में  पूर्वोत्तर के आठ राज्यों वाले सीपीए भारत क्षेत्र जोन-3 के पीठासीन अधिकारियों, सांसदों और विधायकों की भागीदारी रही. सम्मेलन का मुख्य विषय ‘नीति, प्रगति और लोग: परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में विधायिकाएं’ रही जबकि इसके उप-विषय ‘विकसित भारत’ की प्राप्ति में विधायिकाओं की भूमिका और जलवायु परिवर्तन रहें. सम्मेलन का उद्घाटन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और समापन राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश के वक्तव्य से हुआ. यह महत्वपूर्ण सम्मेलन विधायी निकायों को समाज में बदलाव लाने में उनकी भूमिका पर चर्चा करने का एक मंच प्रदान करता है. यह सम्मेलन इस बात पर ध्यान केंद्रित किया कि कैसे विधायिकाएं ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कर सकती हैं. इसके साथ ही, जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दे पर भी विस्तार से विचार-विमर्श किया गया.

राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने “जलवायु परिवर्तन: उत्तर पूर्वी क्षेत्र में हाल ही में बादल फटने और भूस्खलन के आलोक में” विषय पर आरंभिक व्याख्यान दिया. उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि यद्यपि पूर्वोत्तर क्षेत्र भारत के कुल भू-भाग का लगभग आठ प्रतिशत है, फिर भी यह देश का लगभग इक्कीस प्रतिशत वनाच्छादित क्षेत्र है. इन प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को राष्ट्रीय प्राथमिकता बताते हुए, उन्होंने कहा कि वित्त आयोग ने भी अपनी पर्यावरणीय परिसंपत्तियों के संरक्षण हेतु राज्यों को अधिक धनराशि आवंटित करने की सिफारिश करके इनकी महत्ता को स्वीकार किया है. आपदा प्रबंधन हेतु प्रौद्योगिकी के उपयोग में भारत की उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए, उन्होंने कॉमन अलर्टिंग प्रोटोकॉल-बेस्ड इंटीग्रेटेड अलर्ट सिस्टम के उपयोग का उल्लेख किया, जो समय पर क्षेत्र विशेष के लिए चेतावनियां जारी करने में सक्षम है.

वैज्ञानिक अनुसंधान में निवेश पर जोर

उपसभापति ने जलवायु परिवर्तन की विशिष्ट चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझने के लिए उच्च-गुणवत्ता वाले अनुसंधान में निवेश के महत्व पर बल दिया. उन्होंने कहा, “वैज्ञानिक अनुसंधान में निवेश ही इन जटिल मुद्दों का एकमात्र दीर्घकालिक समाधान है.” उन्होंने आगे कहा कि शोध संस्थानों के बीच निवेश और बेहतर समन्वय भी उतना ही आवश्यक है. उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत सरकार आगामी वर्षों में अधिक धनराशि और तकनीकी सहायता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न स्तरों पर व्यापक वार्ता में लगी हुई है. नागालैंड विधान सभा की सराहना करते हुए, हरिवंश ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उठाए गए सक्रिय कदमों, मौजूदा नीतियों की समीक्षा, हरित बजट को बढ़ावा देने और सतत कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए जलवायु परिवर्तन पर एक विशेष समिति की स्थापना की सराहना की. उन्होंने शहरी स्थानीय निकायों और ग्राम परिषदों पर विधानसभा की समिति के गठन का भी उल्लेख किया. बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन, जल संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के माध्यम से जमीनी स्तर पर अनुकूलन सुदृढ़ करना इस दिशा में स्वागत योग्य कदम हैं.

भारत के गांव सामुदायिक स्तर पर ज्ञान का खजाना

स्थानीय समुदायों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए उपसभापति ने कहा, ” भारत के गांव प्रकृति के साथ साहचर्य के कारण सामुदायिक स्तर पर ज्ञान का खजाना हैं.” नीति नियोजन में स्वदेशी परिपाटियों और संस्कृतियों की महत्वपूर्ण भूमिका होनी चाहिए.” पर्यावरण संरक्षण को मानव विकास का अभिन्न अंग माना जाना चाहिए, न कि आर्थिक गतिविधियों में बाधा. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मिशन लाइफ (एलआईएफई), जो पर्यावरण संरक्षण के लिए व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर के कार्यकलापों को बढ़ावा देता है, का उल्लेख करते हुए विकास की आवश्यक प्राथमिकताओं और सतही प्राथमिकताओं के बीच अंतर करने का आह्वान करते हुए कहा, “हमें परिकल्पना और व्यवहार, दोनों में इस सिद्धांत का पालन करना चाहिए.”  

सीपीए इंडिया ज़ोन 3 सम्मेलन में समापन भाषण के अवसर पर बोलते हुए, उन्होंने कहा कि भारत @2047 केवल एक लक्ष्य नहीं है, बल्कि एक सतत यात्रा है जिसमें कई छोटे-छोटे लक्ष्य हैं जिन्हें राज्य दर राज्य हासिल करना होगा. उन्होंने कहा कि जहां विधायिका कानूनों और नीतियों की रूपरेखा तैयार करती है, वहीं निर्वाचित प्रतिनिधियों की ज़िम्मेदारी सामाजिक-आर्थिक बदलावों के प्रबंधन की भी होती है. उन्होंने कहा कि उत्तर पूर्व में केंद्रीय बजट का 10 फीसदी खर्च करने की प्रतिबद्धता के साथ, हाल के वर्षों में कई नयी परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है.

हरिवंश ने रेखांकित किया कि उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय ने 1.35 लाख करोड़ रुपये (2017-2023)की लागत वाली 126 बाह्य सहायता प्राप्त परियोजनाओं का समर्थन किया है जबकि आर्थिक कार्य विभाग ने पिछले एक दशक में बाह्य वित्तपोषण के लिए 1.26 लाख करोड़ रुपये मूल्य के 124 परियोजनाओं की सिफारिश की है. उन्होंने बल देकर कहा कि इन पहलों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए राज्य सरकारों और विधानसभाओं के बीच सुदृढ़ समन्वय आवश्यक है, ताकि इसका क्रियान्वयन सुनिश्चित हो सके.