गृह मंत्रालय की समिति को 31 मई से पहले इशरत फाइल की जांच पूरी करने को कहा गया

नयी दिल्ली : इशरत जहां के कथित फर्जी मुठभेड से जुडे फाइल को गुम होने के मामले की जांच कर रहे गृह मंत्रालय की एक सदस्यीय समिति से कहा गया है कि वह अपने काम में तेजी लाए और 31 मई तक अपना काम पूरा करे. केंद्रीय गृह सचिव राजीव महर्षि ने समझा जाता है […]

By Prabhat Khabar Print Desk | May 12, 2016 7:38 PM

नयी दिल्ली : इशरत जहां के कथित फर्जी मुठभेड से जुडे फाइल को गुम होने के मामले की जांच कर रहे गृह मंत्रालय की एक सदस्यीय समिति से कहा गया है कि वह अपने काम में तेजी लाए और 31 मई तक अपना काम पूरा करे. केंद्रीय गृह सचिव राजीव महर्षि ने समझा जाता है कि गृह मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव बी के प्रसाद से कहा है कि जांच में तेजी लाएं और इस महीने के अंत तक अपनी रिपोर्ट सौंपें. आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि तमिलनाडु कैडर के आईएएस अधिकारी प्रसाद 31 मई को सेवानिवृत्त होने वाले हैं और सरकार चाहती है कि उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले वह अपना काम पूरा कर लें.

प्रसाद भी विवादों में घिरे हुए हैं. गृह मंत्रालय की विदेशी नागरिक शाखा में काम कर रहे एक अवर सचिव ने उन पर आरोप लगाए हैं कि फोर्ड फाउंडेशन को क्लीनचिट देने के लिए प्रसाद ने उन पर दबाव बनाया जिसपर कथित तौर पर विदेशी चंदा नियमन अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने का आरोप है. प्रसाद ने आरोपों से इंकार किया है. गृह मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों का मानना है कि इशरत से जुडी फाइलें कहीं और रखी गई हैं और समन्वित प्रयास करने से उन्हें ढूंढा जा सकता है.
सूत्रों ने कहा कि फाइलों को ढूंढने में हो रहे विलंब से सरकार नाखुश दिख रही है और जल्द रिपोर्ट चाहती है. प्रसाद को इस बारे में स्पष्ट तौर से बता दिया गया है. संसद में 14 मार्च को हुए हंगामे के बाद बनी समिति से कहा गया है कि वह उन परिस्थितियों की जांच करें जिनमें इशरत के मामले से जुडी फाइल गायब हो गई। इशरत 2004 में गुजरात में कथित तौर पर फर्जी मुठभेड में मारी गई थी.
समिति से कहा गया है कि फाइलों की देखरेख करने वाले जिम्मेदार व्यक्ति और संबंधित मुद्दों का पता लगाएं. गृह मंत्रालय से जो कागजात गायब हुए उनमें अटॉर्नी जनरल द्वारा लिखी गई और 2009 में गुजरात उच्च न्यायालय को सौंपी गई प्रति भी शामिल है. इसमें दूसरा हलफनामा भी शामिल है जिसे एजी ने लिखा और इसमें बदलाव किए गए. तत्कालीन गृह सचिव जी. के पिल्लै द्वारा तत्कालीन अटॉर्नी जनरल जी ई वाहनवत्ती को लिखे गए दो पत्र और मसौदा हलफनामे की प्रति भी इसमें शामिल है जिसका अभी तक पता नहीं चल पाया है.
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में दस मार्च को कहा था कि फाइल लापता हैं. गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि पहला हलफनामा गुजरात और महाराष्ट्र पुलिस के अलावा खुफिया ब्यूरो से मिली जानकारी के आधार पर दायर किया गया था जिसमें कहा गया कि मुंबई की 19 वर्षीय लडकी लश्कर ए तैयबा की सदस्य थी लेकिन दूसरे हलफनामे में इसे नजरअंदाज किया गया.
अधिकारियों ने कहा कि दावा किया जाता है कि दूसरा हलफनामा तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने दायर किया था और इसमें कहा गया कि इशरत को आतंकवादी साबित करने के लिए कोई निर्णायक सबूत नहीं हैं.पिल्लै ने दावा किया था कि गृह मंत्री के तौर पर चिदंबरम ने मूल हलफनामे के एक महीने बाद फाइल वापस मंगाई थी. इसके बाद चिदंबरम ने कहा था कि हलफनामे में बदलाव के लिए पिल्लै भी बराबर के जिम्मेदार हैं. इशरत, जावेद शेख उर्फ प्राणेश पिल्लै, अमजद अली अकबर अली राणा और जीशान जौहर 15 जून 2004 को अहमदाबाद में गुजरात पुलिस के साथ मुठभेड में मारे गए थे. गुजरात पुलिस ने तब कहा था कि मुठभेड में मारे गए लोग लश्कर के आतंकवादी हैं और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या के लिए गुजरात आए थे.

Next Article

Exit mobile version