Shaheen Bagh protests: आखिर क्यों नहीं निकल रहा है शाहीन बाग का हल ?

नयी दिल्ली : शाहीन बाग में प्रदर्शन कर रहे लोगों से सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त वार्ताकार साधना रामचंद्रन और संजय हेगड़े लगातार बातचीत कर रहे हैं. कोशिश है कि इस बातचीत से कोई हल निकले लेकिन इस बातचीत में सबसे बड़ी समस्या है कि इस प्रदर्शन के नेतृत्व का कोई चेहरा नहीं है. […]

By Prabhat Khabar Print Desk | February 21, 2020 1:50 PM

नयी दिल्ली : शाहीन बाग में प्रदर्शन कर रहे लोगों से सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त वार्ताकार साधना रामचंद्रन और संजय हेगड़े लगातार बातचीत कर रहे हैं. कोशिश है कि इस बातचीत से कोई हल निकले लेकिन इस बातचीत में सबसे बड़ी समस्या है कि इस प्रदर्शन के नेतृत्व का कोई चेहरा नहीं है.

मीडिया में भी प्रदर्शन कर रहे लोगों के बीच मतभेद की खबर आ रहे हैं. वार्ताकार भी इस समस्या को अच्छी तरह समझ रहे हैं तभी इस बातचीत में वार्ताकारों ने कहा, मां के पांव तले जन्नत होती है, सभी मांओं, बहनों को जो उम्र में बड़ी हैं, उनकी बातें पहले सुनेंगे. शाहीन बाग में प्रदर्शन कर रहे लोगों में महिलाओं की संख्या ज्यादा है. यहां उम्र दराज महिलाएं भी प्रदर्शन में बैठी है जिन्हें आगे किया गया है.
शाहीन बाग में सीएए और एनआरसी को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शन को दो महीने से अधिक समय हो चुका है. इनकी मांग है कि जब तक सीएए और एनआरसी को वापस लेने का फैसला नहीं ले लिया जाता हम नहीं हटेंगे. कल वार्ताकारों ने प्रदर्शनकारियों के बीच यह बात रखी थी कि आप प्रदर्शन के लिए कोई दूसरी जगह चुन लें लेकिन प्रदर्शनकारी इसके लिए तैयार नहीं हुए.
-जैसे दिन बढते जा रहे हैं और प्रदर्शन खींचता जा रहा है. प्रदर्शन के दिन जैसे बढ़ रहे हैं वैसे ही लोगों में दूरियां भी बढ़ती जा रही है. फिलहाल स्थिति यह है कि प्रदर्शनकारियों के बीच से कोई बात निकल कर सामने नहीं आ रही. कोई भी कभी भी मंच पर आकर कोई ऐलान कर देता है और फिर बाद में कोई और मंच पर आकर उसी ऐलान को खारिज कर देता है. मीडिया के सामने भी आकर कोई प्रदर्शनकारियों की तरफ से कोई बात रख सके ऐसा कोई चेहरा नहीं है. इससे कोई जानकारी स्पष्ट तौर पर नहीं आ रही है.
दबंग दादियों की है अहम भूमिका
शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शन में यह महसूस किया जा सकता है कि इसमें दादियों की अहम भूमिका है. सभी अपनी बात मनवाने के लिए दादियों का इस्तेमाल कर रहे हैं. मंच पर किसी दादी से कुछ ऐलान करवा दिया फिर थोड़ी देर में किसी और दादी ने आकर कोई और बात कर दी. कुछ बुजुर्ग महिलाएं इस प्रदर्शन का चेहरा बनी हुई हैं जो कि दंबग दादी के नाम से मशहूर हैं. अब स्थिति यह है कि इस आंदोलन के नेतृत्व को लेकर एक से अधिक गुट बन गये हैं. ऐसे में इनके बीच अनबन बनी रहती है. इस मतभेद के बावजूद भी सभी कानून को वापस लेने की मांग पर अड़े हैं.

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