उचित मात्रा में खाद के छिड़काव से बढ़ेगी धान की पैदावार

खरीफ सीजन में धान की बुआई लगभग पूरी हो चुकी है. अब खेतों में निकौनी का कार्य तेजी से चल रहा है. इस वक्त धान की फसल को संतुलित खाद और समय-समय पर दवाई की जरूरत होती है,

By Rajeev Murarai Sinha Sinha | September 5, 2025 6:51 PM

किसान सलाहकार बोले- 50 दिन बाद करें यूरिया का टॉप ड्रेसिंग, नैनो डीएसपी भी बनेगा बेहतर विकल्प

लखीसराय. खरीफ सीजन में धान की बुआई लगभग पूरी हो चुकी है. अब खेतों में निकौनी का कार्य तेजी से चल रहा है. इस वक्त धान की फसल को संतुलित खाद और समय-समय पर दवाई की जरूरत होती है, अगर किसान सही मात्रा में खाद का छिड़काव करें, तो उपज में कई गुना इजाफा हो सकता है, लेकिन जानकारी की कमी से कई किसान खाद का सही उपयोग नहीं कर पाते, जिससे उत्पादन पर असर पड़ता है.

60 दिन बाद जरूरी है खाद का इस्तेमाल

किसान सलाहकार शंभु कुमार ने बताया कि धान की बुआई को 50 से 60 दिन हो चुके हैं, ऐसे में अब यूरिया का टॉप ड्रेसिंग करने का समय है. खेत की तैयारी के समय जिन किसानों ने यूरिया, डीएपी और पोटाश का इस्तेमाल किया है, उन्हें अब 50 से 60 दिन में यूरिया का छिड़काव करना चाहिए, साथ ही खेत में जिंक और पोटाश का भी प्रयोग उपज बढ़ाने में सहायक होगा.

नैनो डीएसपी से होगी लागत में बचत

आगे उन्होंने कहा कि किसान आमतौर पर यूरिया, डीएपी और पोटाश का प्रयोग करते हैं, जिसे बेहतरीन खाद माना जाता है, लेकिन अगर किसान लागत घटाना चाहते हैं, तो नैनो डीएसपी का इस्तेमाल कर सकते हैं। प्रति लीटर पानी में 4 एमएल नैनो डीएपी मिलाकर छिड़काव करने से बेहतर नतीजे मिलते हैं.

दो बार यूरिया का छिड़काव देगा ज्यादा उत्पादन

उन्होंने सलाह दी कि अगर किसान यूरिया का दो बार छिड़काव करते हैं, तो धान की पैदावार और भी अच्छी होगी, सही समय पर सही खाद का छिड़काव न केवल उपज बढ़ायेगा बल्कि लागत को भी नियंत्रित करेगा.

धान की फसल में रोग से बचाव के लिए करें ये उपाय

तना छेदक कीट से बचाव – क्लोरपायरीफॉस या कार्टाप हाइड्रोक्लोराइड का छिड़काव करें.

झुलसा रोग – कार्बेन्डाजिम या मैंकोजेब का छिड़काव करें.

पत्तियों का पीलापन – जिंक सल्फेट (5 किलो प्रति एकड़) का उपयोग करें.

खरपतवार नियंत्रण – बुआई के 15-20 दिन के भीतर उचित दवा का प्रयोग करें.

खेत में जल प्रबंधन – हमेशा हल्का-हल्का पानी खेत में बनाये रखें, जलभराव से बचें.

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