हस्तकरघा कला को राष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले कलाकारों को किया सम्मानित

जिले के सिलाव प्रखंड अंतर्गत नेपुरा गांव निवासी बुनकर लखन राम के 40 वर्षीय पुत्र कमलेश कुमार ने बावनबूटी कला को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए केंद्रीय उधोग मंत्री गिरिराज सिंह के द्वारा 7 अगस्त को बुनकर दिवस के अवसर पर सम्मानित किया गया था

By SANTOSH KUMAR SINGH | September 24, 2025 9:22 PM

सिलाव. जिले के सिलाव प्रखंड अंतर्गत नेपुरा गांव निवासी बुनकर लखन राम के 40 वर्षीय पुत्र कमलेश कुमार ने बावनबूटी कला को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए केंद्रीय उधोग मंत्री गिरिराज सिंह के द्वारा 7 अगस्त को बुनकर दिवस के अवसर पर सम्मानित किया गया था जिसके बाद दिल्ली में राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले कमलेश कुमार सहित अन्य सभी लोगों से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मुलाक़ात कर उनका हाल चाल जाना है. इस पल को लेकर बुनकर कमलेश कुमार काफ़ी ख़ुश नज़र आए और राष्ट्रपति से बुनकरों को सुविधा मुहैया कराने की भी गुज़ारिश किया. बिहार के पहले बुनकर रहे कमलेश की इस उपलब्धि से गांव परिवार में ख़ुशी की लहर है. उन्होंने कहा कि यह हमारा परंपरागत कला है जिसे हम तीन चार पीढ़ी पहले चली आ रही है. छोटी सी उम्र से ही देखकर सिखा और सभी परिवार मेहनत करते आ रहे हैं. आज यह सम्मान उसी मेहनत का नतीजा है. हमारे तीन संतान हैं. जिनमें दो पुत्र और एक पुत्री तीनों लोग पढ़ाई कर रहे हैं. इसी पेशे से परिवार का जीविकोपार्जन भी चलता है. बड़ा बेटा राजू कुमार कोलकाता के आईआईएचटी फुलिया से टेक्सटाइल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है. हमारा परिवार सिल्क कपड़ों के कुशल बुनकर रह चुके हैं. वर्षों से साड़ी बुनाई हमारी पुरानी पहचान है. कमलेश कुमार भारत सरकार द्वारा आयोजित विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेलों में प्रतिनिधित्व करने का अवसर पा चुके हैं. इनके द्वारा शिल्प किए गए कपड़ों की तारीफ़ देश विदेशों में भी हो चुकी है. यह पुरस्कार हम तमाम बुनकरों के लिए बड़ी उपलब्धि है. मैं काफ़ी ख़ुश हूं. इन बुनकरों की सबसे बड़ी परेशानी मार्केटिंग की है. जो इस उपलब्धि के बाद उम्मीद जगी है, फ़िर से पुराने की तरह मार्किट बनेगा. यहां से साड़ी, कुर्ता, शर्ट, और अंगवस्त्र इत्यादि तैयार कर पटना एवं दिल्ली बाज़ार में भेजते हैं. जिसमें विभिन्न प्रकार की साड़ियां होती है. नार्मल सारी बनाने में 5 दिन जबकि बढ़िया क्वालिटी में 10 दिन लग जाते हैं. एक सारी का ख़र्च 400 रूपए से 800 तक होता है. इसके साथ ही पूरे दिन की मेहनत रहती है. इससे हम बुनकरों को व्यवसाय में बढावा मिलने की उम्मीद है. विभाग के ज़रिए दूरभाष पर और यहां के अधिकारियों ने घर पर आकर जानकारी दिए हैं. पहले बिहार झारखंड जब एक राज्य था तो उस समय भी झारखंड से ही धागा खरीदकर लाते थे. अब भी वहीं से आते हैं. इसके अलावा ओडिशा और छत्तीसगढ़ में भी मिलता है. अब जंगलों की कटाई से मुश्किलें बढ़ गई है और महंगा होते जा रहा है. आपको बताते चलें कि इससे पहले बावनबूटी कला को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए ज़िला मुख्यालय बिहार शरीफ के बसावन बिगहा निवासी स्व. कपिलदेव प्रसाद को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है. बावनबूटी कला का इतिहास बौद्ध काल से जुड़ा है. यहां तसर और कॉटन के कपड़ों को हाथ से तैयार किया जाता है फ़िर उसपर विभाग प्रकार की डिज़ाइन बनाकर उकेरा जाता है…

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