Inspector Zende Review: मनोज बाजपेयी की समाज, न्याय व्यवस्था और इंसानी मानसिकता पर सवाल उठाने वाली फिल्म
Inspector Zende Review: मनोज बाजपेयी और जिम सर्भ स्टारर यह फिल्म केवल थ्रिल नहीं, बल्कि समाज और इंसानी मानसिकता पर गहरी पड़ताल करती है. पढ़े पूरा रिव्यू.
फिल्म: इंस्पेक्टर जेंडे
निर्देशक: चिन्मय मांडलेकर
प्रमुख कास्ट: मनोज बाजपेयी, जिम सर्भ, गिरीजा ओक, सचिन खेडेकर, और भालचंद्र कदम
कहां देखें: नेटफ्लिक्स
रेटिंग्स: 4 स्टार्स
‘Inspector Zende’ सिर्फ एक क्राइम-थ्रिलर नहीं है, बल्कि यह समाज, न्याय प्रणाली और इंसानी मानसिकता पर सवाल खड़ा करने वाली फिल्म है. कहानी 1980 के दशक की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जब पुलिस के पास सीमित संसाधन थे और अपराधियों को पकड़ना अनुभव, धैर्य और दिमाग पर निर्भर करता था.
अभिनय और किरदार
फिल्म की जान हैं मनोज बाजपेयी, जिन्होंने इंस्पेक्टर जेंडे को परतदार और गहराई से जिया है. उनका शांत और विचारशील अंदाज दर्शकों को बांधे रखता है. उनकी आंखों और हावभाव से किरदार की जटिलताएं साफ झलकती हैं. जिम सर्भ खलनायक कार्ल भोजराज के रूप में अपनी शांति और रहस्यमयी व्यक्तित्व से सस्पेंस को और मजबूत करते हैं.
सपोर्टिंग कास्ट और निर्देशन
गिरीजा ओक और सचिन खेडेकर अपने गंभीर अभिनय से कहानी को मजबूती देते हैं, वहीं भालचंद्र कदम हल्के-फुल्के हास्य के जरिए फिल्म का संतुलन बनाए रखते हैं. निर्देशक चिन्मय मांडलेकर ने कहानी को धीमी लेकिन सोच-समझकर आगे बढ़ाया है, जिससे हर दृश्य पर ध्यान केंद्रित किया जा सके.
तकनीकी पक्ष
सिनेमैटोग्राफी और बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म के गहरे टोन को और प्रभावी बनाते हैं. 80s के मुंबई और गोवा का यथार्थपूर्ण चित्रण दर्शकों को उस दौर में ले जाता है.
कुल मिलाकर ‘इंस्पेक्टर जेंडे’ उन दर्शकों के लिए परफेक्ट है जो केवल थ्रिल नहीं, बल्कि किरदारों की जटिलता और उनके मानसिक संघर्षों को समझना चाहते हैं. यह फिल्म देखने के बाद लंबे समय तक दिमाग में बनी रहती है और सोचने पर मजबूर करती है.
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