Homebound Movie :ऑस्कर की दौड़ में शामिल ‘होमबाउंड’ में पटना की शालिनी वत्स की सशक्त अदाकारी

ऑस्कर 2026 की रेस में शामिल फिल्म होमबाउंड का हिस्सा पटना की शालिनी वत्स भी हैं. उन्होंने फिल्म से जुड़ाव और मेकिंग पर इस इंटरव्यू में बातचीत की है

By Urmila Kori | December 26, 2025 7:20 PM

homebound movie :भारत की ओर से ऑस्कर के लिए भेजी गयी फिल्म ‘होमबाउंड’ को अगले राउंड की 15 फिल्मों में जगह मिल गयी है.इस खबर ने बीते दिनों खूब सुर्खियां बटोरी थी. अब फाइनल पांच फिल्मों की लिस्ट जनवरी में जारी की जायेगी. इस फिल्म से जुड़े अहम चेहरों में पटना की शालिनी वत्स का नाम भी शामिल है. फ़िल्म में वह चंदन यानी विशाल जेठवा की माँ अमृत की भूमिका में हैं .पेश हैं उनसे हुई उर्मिला कोरी की बातचीत के प्रमुख अंश.

ऑस्कर 2026 में टॉप 15 में होमबाउंड पहुंच गयी है. ये फीलिंग कैसी है?

मैं तो इसे पूरी तरह मैजिकल करार दूंगी. अब बस इंतजार है कि फिल्म ऑस्कर अपने नाम कर ले. नीरज घेवान ने इस फिल्म को बहुत मेहनत और लगन से बनायी है. यह फ़िल्म ऑस्कर की हकदार है .

आप इस फिल्म से किस तरह जुड़ीं?

हम नीरज घेवान से मिलने गये थे. ऑडिशन होना था, लेकिन हमारी लंबी बातचीत होने के बाद नीरज ने कहा कि आपको ऑडिशन देने की जरूरत नहीं है. हमने कहा कि हम ऑडिशन देना चाहते हैं, क्योंकि इससे आप हमें रेफरेंस के तौर पर समझ पाते हैं. सीन और किरदार किस तरह जायेंगे, यह आपको साफ हो जाता है. ‘फूल’ के जिस सीन में वह कहती है कि ये सूखी हुई एड़ियां हमको विरासत में मिली हैं, वही सीन हमने ऑडिशन में करके भेजा था.इससे मुझे भी किरदार को समझने में आसानी हुई .

फ़िल्म पीपली लाइव के लिए आप एक महीने तक नहायी नहीं थी क्या इस फ़िल्म के लिए भी ऐसा कुछ करना पड़ा ?

( हँसते हुए ) होमबाउंड की शूटिंग के दौरान हम रोज़ नहा रहे थे . किरदार की ऐसी कोई माँग नहीं थी .किरदार की माँग के अनुसार हमें डिक्शन और डायलेक्ट पर काम करना था. जिसमें डायलेक्ट कोच श्रीधर दूबे ने हमारी बहुत मदद की. स्क्रिप्ट को समझने के लिए  नीरज घेवान के साथ बहुत सारे डिस्कशन हुए तो इन सबके मेल से हमने अपने किरदार को जिया.

फिल्म में आपके लिए सबसे मुश्किल सीन कौन-सा था ?

टफ तो हमको सब कुछ लगता है. वॉक भी करना होता है, तो वो भी हमको टफ लगता है. सभी ने फिल्म के क्लाइमेक्स वाले सीन में हमारे परफॉर्मेंस को सराहा है. हमारे लिए वही सबसे मुश्किल सीन था. जब हम डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की तस्वीर को देख रहे थे, वो काफी थॉटफुल सीन था. हमारे पास कोई डायलॉग भी नहीं था, लेकिन हमको सीन कन्वे करना था, इसलिए उस सीन से पहले हम यही सोच रहे थे कि इसे कैसे करें.

कुछ लोगों को इस बात से एतराज है कि फिल्म भारत की गरीबी को हाइलाइट करती है ?

हर फिल्म सभी को अच्छी लगे, यह जरूरी नहीं है. वैसे भी आजकल लोगों की भावनाएं जल्द ही आहत हो जाती हैं. नीरज की अपनी सोच और विजन थी, जिसे उन्होंने होमबाउंड के जरिये पर्दे पर दिखाया है.हर किसी को अपने नज़रिए से फ़िल्म बनाने का अधिकार है .

एक्टिंग से जुड़ाव कैसे हुआ. पटना से कितना जुड़ाव रख पाती हैं ?

हम पटना से हैं और वहीं पले-बढ़े हैं. हमारे पैरेंट्स दोनों ही पटना यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे. उनका कल्चरल एक्टिविटीज में काफी रुझान था, इसलिए वो हमें हर तरह की गतिविधियां दिखाने ले जाते थे. नाटक देखना और उससे जुड़ना, वहीं से शुरू हुआ.पटना से ही हमने थिएटर करना शुरू किया और फिर एक्टिंग से जुड़ते चले गये. फिर थिएटर करने के लिए हम पटना से दिल्ली पहुंचे. वहां बैरी जॉन और हबीब तनवीर के साथ भी हमने थिएटर किया. साल 2009 में हम मुंबई आ गये. पीपली लाइव, लूडो सहित कई फिल्मों का हिस्सा बने. जहां तक पटना से जुड़ाव की बात है, हमारा घर पटना में है, इसलिए वहां आना-जाना लगा रहता है. पटना हमेशा हममें रहेगा.