Movie Review: घिसी पिटी मेलोड्रामा बनकर रह गयी है….1962 द वॉर ऑन हिल्स

Movie Review: आर्मी बैकग्राउंड पर वेब सीरीज ओटीटी का पसंदीदा विषय रहा है। फोर्गोटेन आर्मी से जीत की जिद तक कई सारी वेब सीरीज इसका हिस्सा रही हैं. इसी कड़ी में हालिया रिलीज वेब सीरीज द वॉर ऑन हिल्स का नाम भी जुड़ है. 1962 की भारत और चीन की लड़ाई पर यह सीरीज आधारित है.

By कोरी | March 1, 2021 10:32 PM
  • वेब सीरीज- 1962 द वॉर ऑन हिल्स

  • प्लेटफार्म –हॉटस्टार

  • निर्देशक- महेश मांजरेकर

  • एपिसोड- दस

  • कलाकार- अभय देओल, माही गिल, मियांग चांग, आकाश,सुमित व्यास और अन्य

  • रेटिंग- डेढ़

आर्मी बैकग्राउंड पर वेब सीरीज ओटीटी का पसंदीदा विषय रहा है। फोर्गोटेन आर्मी से जीत की जिद तक कई सारी वेब सीरीज इसका हिस्सा रही हैं. इसी कड़ी में हालिया रिलीज वेब सीरीज द वॉर ऑन हिल्स का नाम भी जुड़ है. 1962 की भारत और चीन की लड़ाई पर यह सीरीज आधारित है. 62 की इस जंग को सिनेमा के रुपहले परदे पर कम ही जगह मिल पायी है. शायद इसकी वजह युद्व से जुड़ा परिणाम था जो हमारी फिल्मों के दशकों पुराने हैप्पी एंडिंग वाले फार्मूले के आड़े आ जाता होगा लेकिन पिछले एक दो सालों पर गौर करें तो भारत और चीन का रिश्ता कड़वाहट और टकराव में बदल गया है. जो निश्चित तौर पर सीरीज के मेकर्स को 62 के युद्व के सैनिकों के शौर्य गाथा को दिखाने को मजबूर कर गया होगा. चूंकि 62 वॉर पर कम फिल्में बनी हैं इसलिए इस सीरीज के मेकर्स के पास अच्छा मौका था दर्शकों को उस युद्ध से जुड़ी खास पहलुओं को दिखाने का लेकिन कमज़ोर कहानी और परदे पर जिस तरह से उसे प्रस्तुत किया गया वह इस सीरीज को पूरी तरह से बोझिल बना गया है.

लद्दाख की चुशूल हवाईपट्टी पर 3000 चीनियों के कब्जे के मंसूबे को मात्र 125 भारतीय सैनिकों ने संसाधनों के अभाव के बावजूद नाकामयाब कर दिया था। इसी शौर्य गाथा की कहानी यह सीरीज कहती है लेकिन इसके साथ परिवार,प्यार,राजनीति के जो दर्जन भर सब प्लॉट्स जोड़े गए हैं।वो कहानी को पूरी तरह से बोझिल बना गया है. समझ ही नहीं आता कि निर्देशक देशभक्ति दिखाना चाहता है या प्यार और परिवार की कहानी या राजनेताओं की नाकामयाबी. जे पी दत्ता की फ़िल्म बॉर्डर से प्रभावित सीरीज का ट्रीटमेंट है लेकिन यहां प्यार और परिवार मेलोड्रामा भर से ज़्यादा कुछ नहीं है. इमोशनली कनेक्शन ही नहीं जोड़ पाया है।कहानी के साथ साथ तकनीकी रूप से भी यह सीरीज निराश करती है। वॉर पर बनी इस फ़िल्म का वॉर सीक्वेंस स्तरहीन वीएफएक्स की वजह से बेहद कमजोर बन गया है. निजी जिंदगी और युद्ध के दृश्यों को अलग अलग कलर टोन में दिखाना भी अखरता है. सीरीज आठवें एपिसोड से थोड़ी रफ्तार पकड़ती है लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.

अभिनय की बात करें तो यही एकमात्र इस सीरीज का अच्छा पहलू है। अभय देओल अपने किरदार के साथ न्याय करने में कामयाब रहे हैं।माही गिल और सुमीत व्यास भी अपने किरदारों को ठीक ढंग से निभा गए हैं। मियांग चांग ने चीनी सैनिक के ग्रे किरदार को बखूबी जिया है. सैराट फेम आकाश की हिंदी भाषा अटपटी लगती है. उन्हें हिंदी संवाद पर काम करने की ज़रूरत है. बाकी के किरदारों का काम औसत रहा है.

कुलमिलाकर यह सीरीज ना तो देशभक्ति की भावना जगा पायी है ना ही किरदारों के साथ इमोशनल कनेक्शन जोड़ पाती है. घिसी पिटी मेलोड्रामा बनकर रह गयी है.

Posted By: Shaurya Punj

Next Article

Exit mobile version