ट्रंप के टैरिफ से भारत का सोलर मॉड्यूल का निर्यात प्रभावित, घरेलू बाजारों में बढ़ गई सप्लाई
Trump Tariff: अमेरिका की ओर से सौर आयात पर लगाए गए डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ से भारत के सोलर मॉड्यूल निर्यात को झटका लगा है. इक्रा की रिपोर्ट के अनुसार, निर्यात घटने से घरेलू बाजार में सप्लाई बढ़ी है, जिससे कीमतों में गिरावट और छोटे निर्माताओं के मार्जिन पर दबाव बढ़ा है. चीन पर निर्भरता और वैश्विक व्यापार बाधाएं उद्योग के लिए चुनौती बनी हुई हैं, जबकि नीतिगत सुधार भविष्य में आत्मनिर्भरता की दिशा में अहम कदम साबित हो सकते हैं.
Trump Tariff: अमेरिका की ओर से सौर आयात पर लगाए गए नए टैरिफ ने भारतीय सोलर मॉड्यूल निर्माताओं के लिए बड़ा झटका दिया है. इक्रा (आईसीआरए) की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस कदम के चलते भारत से अमेरिका को सोलर मॉड्यूल का निर्यात प्रभावित हुआ है. नतीजतन, निर्माताओं को अब अपने निर्यात वॉल्यूम को घरेलू बाजार में री-डाइरेक्ट करना पड़ रहा है, जिससे देश में सोलर मॉड्यूल की सप्लाई में तेजी से बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
घरेलू बाजार में बढ़ी आपूर्ति और घटे मार्जिन
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस घटनाक्रम से भारत के सोलर मॉड्यूल उद्योग में पहले से मौजूद अतिआपूर्ति की स्थिति और गंभीर हो गई है. इससे कीमतों में गिरावट और निर्माताओं के प्रॉफिट मार्जिन में कमी आने की संभावना है. छोटे निर्माताओं के लिए यह स्थिति और चुनौतीपूर्ण बन सकती है, जिससे उद्योग में एकीकरण यानी विलय और अधिग्रहण की प्रक्रिया तेज हो सकती है.
क्या कहते हैं इक्रा के अधिकारी
इक्रा के कॉर्पोरेट रेटिंग्स के उपाध्यक्ष अंकित जैन ने कहा, “अमेरिका की ओर से लगाए गए टैरिफ और नियामक अनिश्चितता के कारण निर्यात वॉल्यूम में कमी आएगी, जिससे घरेलू ओईएम पर मूल्य निर्धारण का दबाव बढ़ेगा.” उन्होंने आगे कहा कि भारतीय सौर मॉड्यूल निर्माताओं की परिचालन लाभप्रदता, जो वित्त वर्ष 2025 में लगभग 25 प्रतिशत थी, आने वाले वर्षों में घट सकती है.
क्षमता में भारी वृद्धि, मांग से अधिक उत्पादन
इक्रा के अनुमान के अनुसार, भारत की सौर फोटोवोल्टिक (पीवी) मॉड्यूल उत्पादन क्षमता वर्तमान में लगभग 109 गीगावाट है, जो मार्च 2027 तक बढ़कर 165 गीगावाट से अधिक हो जाएगी. यह वृद्धि सरकार की नीतिगत पहलों जैसे उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना, मूल सीमा शुल्क (बीसीडी) और एएलएमएम (एएलएमएम) सूची के कारण हो रही है. हालांकि, घरेलू मांग फिलहाल 45-50 गीगावाट डायरेक्ट करंट के बीच सीमित रहने की उम्मीद है. इसका अर्थ यह है कि भारत की कुल उत्पादन क्षमता मांग से कहीं अधिक होगी, जिससे आपूर्ति की अधिकता और बढ़ेगी.
निर्यात में गिरावट से छोटे खिलाड़ियों पर दबाव
पहले निर्यात के लिए बनाए गए मॉड्यूल अब घरेलू बाजार में भेजे जा रहे हैं. इससे न केवल कीमतों पर दबाव बढ़ा है, बल्कि छोटे और स्वतंत्र मॉड्यूल निर्माताओं की स्थिरता पर भी संकट मंडरा रहा है. इक्रा को उम्मीद है कि आने वाले महीनों में उद्योग में ऊर्ध्वाधर रूप से एकीकृत कंपनियों (वर्टिकली इंटीग्रेटेड कंपनीज) का वर्चस्व बढ़ेगा. ये कंपनियां सेल से लेकर मॉड्यूल तक पूरी सप्लाई चेन को नियंत्रित करती हैं, जिससे उन्हें लागत नियंत्रण और जोखिम प्रबंधन में बढ़त मिलती है.
चीन पर निर्भरता बनी चुनौती
भारत अपने घरेलू सौर विनिर्माण ढांचे को तेजी से बढ़ा रहा है, लेकिन ग्लोबल सप्लाई चेन में चीन की भूमिका अभी भी प्रमुख है. चीन वर्तमान में वैश्विक पॉलीसिलिकॉन और वेफर उत्पादन का 90% और सेल व मॉड्यूल निर्माण का लगभग 80-85% हिस्सा रखता है. इस स्थिति से भारत के निर्माताओं के लिए भू-राजनीतिक और आपूर्ति जोखिम पैदा होते हैं, खासकर, उन कंपनियों के लिए जो पिछड़े एकीकरण की दिशा में आगे बढ़ना चाहती हैं.
नीतिगत सुधार से उम्मीद
जून 2026 से सौर पीवी सेल्स के लिए एएलएमएम सूची-II लागू होने की उम्मीद है. इससे घरेलू सेल निर्माण में तेजी आएगी और उत्पादन क्षमता दिसंबर 2027 तक वर्तमान 17.9 गीगावाट से बढ़कर 100 गीगावाट तक पहुंच सकती है. हालांकि, इक्रा का कहना है कि भारतीय सेल आधारित मॉड्यूल की लागत अब भी आयातित मॉड्यूल से 3-4 सेंट प्रति वाट अधिक रहेगी, जिससे प्रतिस्पर्धा चुनौतीपूर्ण बनी रहेगी.
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पुनर्गठन की ओर बढ़ता सौर उद्योग
निकट भविष्य में भारत के सौर उद्योग को निर्यात में कमी, बढ़ती क्षमता और वैश्विक व्यापार बाधाओं जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. हालांकि, लंबी अवधि में ऊर्ध्वाधर रूप से एकीकृत कंपनियां मजबूत आपूर्ति नियंत्रण और आत्मनिर्भरता के कारण लाभ में रह सकती हैं. ट्रंप के टैरिफ का अल्पकालिक प्रभाव भले ही नकारात्मक हो, लेकिन यह भारत के सौर विनिर्माण क्षेत्र में संरचनात्मक पुनर्गठन और आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है.
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