ग्रेजुएशन करते-करते शुरू की खेती, अब विदेशों में भी बज रही हरियाणवी किसान की धाक

Haryana Farmer Success story: हरियाणा के कुरुक्षेत्र के किसान हरबीर सिंह तूर ने परंपरागत खेती को छोड़कर नवाचार का रास्ता चुना और आज सब्जियों की नर्सरी से करोड़ों की कमाई कर रहे हैं. दो कनाल जमीन से शुरू हुई उनकी मेहनत अब 16 एकड़ तक पहुंच चुकी है, जहां से हर साल 10 करोड़ पौधे तैयार होकर देशभर के किसानों तक पहुंचते हैं. जली भूसी, नदी की रेत और बायोगैस वेस्ट से बनी उनकी विशेष मिट्टी पानी की बचत के साथ पौधों की गुणवत्ता बढ़ाती है. देश-विदेश में पहचान बनाने वाले तूर किसानों और युवाओं के लिए एक प्रेरक उदाहरण बन चुके हैं.

By Soumya Shahdeo | December 1, 2025 10:45 AM

Haryana Farmer Success story: हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के शाहबाद मारकंडा के ददलू गांव में आज एक नाम ने पूरे भारत की हॉर्टिकल्चर इंडस्ट्री में अपनी पहचान बना चुका है. परंपरागत खेती से शुरुआत करने वाले 49 वर्षीय हरबीर सिंह तूर आज सब्जियों की नर्सरी के क्षेत्र में करोड़ों की कमाई कर रहे हैं. उनकी कहानी मेहनत, सीख और बदलाव को अपनाने की प्रेरणा देती है. तो आईए जानते है कैसे हरबीर सिंह तूर ने अपनी मेहनत से आज सब्जियों की नर्सरी के क्षेत्र में करोड़ों की कमाई कर रहे हैं.

खेती में बदलाव क्यों जरूरी था?

साल 1995 में, जब तूर जी राजनीति विज्ञान में पोस्ट-ग्रेजुएशन कर रहे थे, तभी उन्होंने खेती करना शुरू किया था. शुरू में गेहूं और धान की परंपरागत फसलें उगाईं, लेकिन कम मुनाफा और नवाचार की कमी देखकर उन्होंने कुछ नया करने की सोची. उन्होंने मधुमक्खी पालन में भी हाथ आजमाया और सफलता भी मिली, लेकिन पारिवारिक कारणों से वह काम उनको छोड़ना पड़ा. फिर उन्होंने जरा-सी जमीन पर सब्जियों की खेती शुरू की, जहां उन्हें पहली बार महसूस हुआ कि इस क्षेत्र में बहुत-सी संभावनाएं छिपी हैं.

नर्सरी लगाने का विचार कैसे आया?

एक बार तूर जी नर्सरी पौधे खरीदने पंजाब के जालंधर पहुंचे थे, लेकिन वहां उन्हें न तो सही जानकारी मिली और न ही अच्छी क्वालिटी के पौधे मिले. इसी अनुभव ने उन्हें सोचने पर मजबूर किया कि किसानों तक सही पौधे और सही मार्गदर्शन पहुंचना कितना जरूरी है. 2003 में उन्होंने सिर्फ दो कनाल जमीन से नर्सरी शुरू की थी. अगले पांच सालों में वही नर्सरी बढ़कर 16 एकड़ की हो गई. आज वह हर साल करीब 10 करोड़ पौधे तैयार करते हैं और 135 लोगों को रोजगार देते हैं.

उनकी खेती में खास क्या है?

तूर जी लगातार नई तकनीक सीखते है और अपनी खेती में अपनाते रहते है. वह स्प्रिंकलर, लो-टनल फार्मिंग और सटीक सिंचाई जैसी तकनीकों का भी इस्तेमाल करते हैं. उनकी नर्सरी में टमाटर, प्याज, शिमला मिर्च, मिर्च, करेला, तोरी, खरबूजे सहित कई तरह की सब्जियों के पौधे तैयार होते हैं. वह मंडी की मांग के अनुसार मौसम के हिसाब से सही समय पर सही पौधे तैयार करते हैं, ताकि किसानों को सही समय पर अधिक मुनाफा मिल सके. उनका सबसे बड़ा नवाचार है कि पौधे उगाने की एक खास मिट्टी, जो जली भूसी, नदी की रेत और बायोगैस वेस्ट से बनती है. इस मिश्रण से पौधों को हवा की नमी से ही पर्याप्त पानी मिल जाता है और अतिरिक्त सिंचाई की जरूरत बहुत कम पड़ती है. इससे पानी की बचत होती है और पौधे भी अधिक मजबूत बनते हैं. इसी अनोखी तकनीक के कारण उन्होंने नीदरलैंड के वर्ल्ड हॉर्टिकल्चर सेंटर में भी अपनी प्रस्तुति दी थी.

किसानों और छात्रों के लिए प्रेरणा

आज बड़े बीज बनाने वाली कंपनियां उनके पास अपने बीज टेस्टिंग के लिए भेजती हैं. वह कई विश्वविद्यालयों के साथ जुड़े हुए हैं और छात्रों को प्रशिक्षण देते हैं. उन्हें किसान रत्न, नर्सरी रत्न जैसे कई पुरस्कारों के साथ ICAR का एन.जी. रंगा राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है.

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