Roti Rice Rate: आम आदमी को बड़ी राहत, वेज और नॉन-वेज थाली की कीमतों में जोरदार गिरावट

Roti Rice Rate: नवंबर 2025 में वेज और नॉन-वेज थाली की कीमतों में साल-दर-साल 13% की गिरावट दर्ज की गई. सब्जियों, दालों और ब्रॉयलर चिकन के सस्ते होने से थाली की लागत कम हुई, जबकि तेल और गैस के दाम बढ़ने से राहत सीमित रही. टमाटर, आलू और प्याज की कीमतों में भारी गिरावट का असर सबसे अधिक दिखा. क्रिसिल रिपोर्ट के अनुसार दालों के आयात बढ़ने से भी कीमतें नरम रहीं.

By KumarVishwat Sen | December 8, 2025 3:44 PM

Roti Rice Rate: भारत में रोजमर्रा के भोजन की लागत आम आदमी की जेब पर सीधा असर डालती है. नवंबर महीने में वेज और नॉन-वेज दोनों तरह की थालियों की कीमत में जोरदार गिरावट दर्ज की गई है. साल-दर-साल तुलना में यह गिरावट करीब 13% तक दर्ज की गई, जिसका मुख्य कारण सब्जियों, दालों और ब्रॉयलर के दामों में नरमी रहा.

सब्जियों की कीमतों में भारी नरमी

क्रिसिल इंटेलिजेंस की ओर से रोटी राइस रेट शीर्षक से जारी रिपोर्ट के अनुसार, वेज थाली की कीमतों में आई गिरावट का सबसे बड़ा कारण बाजार में सब्जियों की बढ़ी हुई आवक रही. टमाटर की कीमतें साल-दर-साल लगभग 17% कम हुईं. आलू की कीमतों में बेस इफेक्ट के कारण 29% की तेज गिरावट दर्ज की गई. प्याज की कीमतों में गिरावट तो सबसे अधिक रही. रबी सीजन के बचे हुए स्टॉक, अच्छे उत्पादन और कम एक्सपोर्ट के चलते प्याज 53% तक सस्ती हुई. इन सब्जियों की कीमतों में आई इस तेज गिरावट ने शाकाहारी थाली की लागत को काफी कम कर दिया.

दालों की कीमतें भी रहीं नरम

रिपोर्ट में कहा गया है कि नवंबर में दालों की कीमतों में 17% की कमी आई. इसकी बड़ी वजह यह रही कि वित्तीय वर्ष 2025 में कई दालों का आयात बहुत बढ़ गया. बंगाल चने का आयात 9 गुना बढ़ा. पीली मटर 85% ज्यादा आयात हुई. काली उड़द का आयात 31% बढ़ा, जिसकी अनुमति मार्च 2026 तक है. ज्यादा स्टॉक उपलब्ध होने से दालों की कीमतों पर नीचे की ओर दबाव बना रहा.

तेल और गैस ने कुछ लागत बढ़ाई

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि थाली की कुल लागत जितनी कम हो सकती थी, उतनी नीचे नहीं गई. इसका कारण यह है कि त्योहारों के मौसम में मांग बढ़ने से वनस्पति तेल के दाम 6% बढ़े. एलपीजी सिलेंडर की कीमतें भी साल-दर-साल 6% बढ़ीं. इससे वेज थाली की लागत में आई गिरावट थोड़ी सीमित हो गई.

नॉन-वेज थाली की कीमतों में कमी

क्रिसिल इंटेलिजेंस की रिपोर्ट में कहा गया है कि मांसाहारी थाली की लागत में गिरावट का सबसे बड़ा कारण ब्रॉयलर चिकन की कीमतों में आई नरमी है. ब्रॉयलर के दाम साल-दर-साल 12% घटे. चूंकि इसकी हिस्सेदारी थाली की कुल लागत में लगभग 50% होती है. इसलिए नॉन-वेज थाली का कुल खर्च काफी कम हो गया. सब्जियों और दालों की कम कीमतों ने इसे और सस्ता किया.

महीने-दर-महीने बदलाव

हालांकि, सालाना आधार पर कीमतें घटीं, लेकिन महीने-दर-महीने नवंबर में कुछ अलग रुझान देखने को मिला. महीने-दर-महीने के आधार पर वेज थाली की कीमतें 2% बढ़ीं, क्योंकि टमाटर 14% और आलू 5% महंगे हुए. नॉन-वेज थाली की कीमतें 1% गिरीं, क्योंकि ब्रॉयलर में ओवरसप्लाई से लगभग 5% की गिरावट आई.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

क्रिसिल इंटेलिजेंस के निदेशक पुशन शर्मा के अनुसार, नवंबर 2025 में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों थालियों की कीमत साल-दर-साल 13% कम हो गई. इसका मुख्य कारण सब्जियों और दालों की कीमतों में गिरावट है. बाजार में ज्यादा आवक के कारण टमाटर की कीमतें कम हुईं, जबकि ज्यादा बेस के कारण आलू की कीमतें कम थीं. उन्होंने कहा कि पिछले सीजन के ज्यादा रबी स्टॉक और कम निर्यात के कारण प्याज की कीमतों में तेजी से गिरावट आई. पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले दालों की कीमतें नरम रहीं, जब चना, पीली मटर और उड़द दाल का आयात साल-दर-साल काफी बढ़ गया था.

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कम पैदावार से महंगा हो सकता है प्याज

पुशन शर्मा ने कहा कि मध्यम अवधि में खरीफ की कटाई में देरी और कम पैदावार के कारण प्याज की कीमतें बढ़ने की उम्मीद है. हालांकि, कोल्ड-स्टोरेज का स्टॉक बाजार में आने से आलू की कीमतें और कम होने की संभावना है. दालों की कीमतें निकट भविष्य में एक सीमित दायरे में रहने की उम्मीद है, जो दो मुख्य कारकों पर निर्भर करेगा. पहला, पीली मटर पर 30% आयात शुल्क, जो कीमतों को ऊपर ले जाने में मदद करता है और दूसरा, उड़द दाल का बिना रोक-टोक आयात, जो कीमतों में तेज़ी से बढ़ोतरी को सीमित करता है. आयात शुल्क बढ़ाने या बढ़ाने जैसे किसी भी अतिरिक्त नीतिगत हस्तक्षेप से दालों की कीमतों पर और दबाव पड़ सकता है.

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