पश्चिम एशियाई देशों से अधिक तेल खरीदेंगी भारत की रिफाइनरियां, अमेरिका ले सकता है रूस की जगह
Crude Oil: अमेरिका की ओर से रूस की दो प्रमुख तेल कंपनियों रॉसनेफ्ट और ल्यूकोइल पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद भारतीय रिफाइनरियां रूस से कच्चे तेल आयात में कमी की भरपाई के लिए पश्चिम एशिया, लातिन अमेरिका और अमेरिका से तेल खरीद बढ़ा सकती हैं. रिलायंस और नायरा जैसी निजी रिफाइनरियों पर इसका सीधा असर होगा. विशेषज्ञों के अनुसार, वैकल्पिक स्रोतों से तेल लेने से भारत का आयात बिल थोड़ा बढ़ सकता है, लेकिन इससे आपूर्ति सुनिश्चित रहेगी और अमेरिकी प्रतिबंधों के जोखिम कम होंगे.
Crude Oil: दो रूसी तेल उत्पादक कंपनियों पर अमेरिकी प्रतिबंध लगाए जाने के बाद भारतीय रिफाइनरी कंपनियां रूस से कच्चे तेल आयात में होने वाली कमी की भरपाई के लिए पश्चिम एशिया, लातिन अमेरिका और अमेरिका से कच्चे तेल की खरीद बढ़ा सकती हैं. सूत्रों और विश्लेषकों ने यह अनुमान जाहिर किया है. अमेरिकी सरकार ने 22 अक्टूबर को रूस के दो सबसे बड़े कच्चे तेल उत्पादकों रॉसनेफ्ट और ल्यूकऑयल पर प्रतिबंध लगा दिए. इसके साथ सभी अमेरिकी संस्थाओं और व्यक्तियों को इन कंपनियों के साथ व्यापार करने से रोक दिया गया है.
रूस के दो तेल उत्पादकों पर अमेरिकी प्रतिबंध
अमेरिका ने 22 अक्टूबर 2025 को रूस के दो प्रमुख कच्चे तेल उत्पादक रॉसनेफ्ट और ल्यूकऑयल पर प्रतिबंध लगा दिया. इस फैसले के अनुसार, सभी अमेरिकी संस्थाओं और व्यक्तियों को इन कंपनियों के साथ व्यापार करने से रोका गया है. अगर कोई गैर-अमेरिकी फर्म इन कंपनियों के साथ लेनदेन करती है, तो उसे भी दंड का सामना करना पड़ सकता है. अमेरिकी वित्त विभाग ने चेतावनी दी कि रॉसनेफ्ट और ल्यूकऑयल से जुड़े सभी मौजूदा लेनदेन 21 नवंबर तक समाप्त हो जाने चाहिए.
भारत में रूसी तेल का बड़ा हिस्सा
फिलहाल, भारत के कुल कच्चे तेल आयात का लगभग एक तिहाई हिस्सा रूस से आता है. वर्ष 2025 में रूस ने भारत को औसतन 17 लाख बैरल प्रति दिन तेल का निर्यात किया, जिसमें से करीब 12 लाख बैरल प्रतिदिन सीधे रॉसनेफ्ट और ल्यूकऑयल से था. इस तेल का ज्यादातर हिस्सा निजी रिफाइनरी कंपनियों, जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और नायरा एनर्जी, ने खरीदा. सरकारी रिफाइनरी कंपनियों का इसमें बहुत कम योगदान रहा.
केप्लर के प्रमुख शोध विश्लेषक सुमित रितोलिया के अनुसार, 21 नवंबर तक रूसी तेल की आवक लगभग 16-18 लाख बैरल प्रतिदिन के दायरे में बनी रह सकती है. उसके बाद सीधे आयात में गिरावट आ सकती है, जिससे भारतीय रिफाइनरियों को अमेरिकी प्रतिबंधों से बचने के लिए वैकल्पिक मार्ग अपनाने होंगे.
प्राइवेट रिफाइनरियों की क्या है रणनीति
सूत्रों के अनुसार, रिलायंस इंडस्ट्रीज, जिसका रॉसनेफ्ट के साथ पांच लाख बैरल प्रतिदिन तक कच्चे तेल का 25 साल का अनुबंध है, सबसे पहले सीधे आयात बंद करने वाली कंपनी हो सकती है. वहीं, नायरा एनर्जी पूरी तरह से रूसी तेल पर निर्भर है. यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बाद कंपनी के पास विकल्प बहुत कम हैं. रितोलिया ने कहा कि रिफाइनरी तीसरे पक्ष के माध्यम से रूसी ग्रेड का तेल लेना जारी रख सकती हैं, लेकिन इसे अत्यंत सावधानी से किया जाएगा.
वैकल्पिक स्रोतों की ओर रिफाइनरियों का रुझान
रूस से प्रत्यक्ष आयात में कमी की भरपाई के लिए भारतीय रिफाइनरियां पश्चिम एशिया, ब्राजील, लातिन अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका, कनाडा और अमेरिका से कच्चे तेल की खरीद बढ़ा सकती हैं. इससे भारत को तेल आपूर्ति जारी रखने में मदद मिलेगी.
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आयात बिल पर संभावित प्रभाव
इक्रा लिमिटेड के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रशांत वशिष्ठ के अनुसार, रूस से दूरी बनाने पर भारत का तेल आयात बिल बढ़ सकता है, क्योंकि इन रूसी आपूर्तिकर्ताओं का हिस्सा कुल खरीद का लगभग 60 प्रतिशत है. वशिष्ठ ने कहा कि भारत रूस से खरीद की जगह पश्चिम एशिया और अन्य क्षेत्रों से तेल ले सकता है, लेकिन इससे कच्चे तेल का आयात बिल बढ़ जाएगा. सालाना आधार पर बाजार मूल्य वाले तेल की खरीद से आयात बिल में लगभग दो प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है.
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