ट्रंप को टक्कर कैसे देंगे भारत और चीन, जब दोनों का 99.2 अरब डॉलर बढ़ा व्यापार घाटा?

India China Trade Deficit: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर के बीच भारत और चीन की भूमिका अहम मानी जा रही है. लेकिन दोनों देशों के बीच व्यापार घाटा 99.2 अरब डॉलर तक पहुंचना चिंता का विषय है. चीन का प्रभुत्व एंटीबायोटिक दवाओं, इलेक्ट्रॉनिक्स, सोलर सेल और लिथियम-आयन बैटरी जैसे उत्पादों में 75% से अधिक है. भारत ने घरेलू विनिर्माण, गुणवत्ता नियंत्रण और सप्लाई चेन में विविधता लाने जैसे कदम उठाए हैं, ताकि चीन पर निर्भरता घटाई जा सके और वैश्विक अर्थव्यवस्था में संतुलन कायम हो.

By KumarVishwat Sen | August 30, 2025 5:00 PM

India China Trade Deficit: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से टैरिफ वॉर छेड़े जाने के बाद दुनिया भारत, रूस और चीन की ओर टकटकी लगाकर देख रही है. डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था में पूरी तरह से उथल-पुथल मचा हुआ है. दुनियाभर में पैदा हुए नए राजनीतिक और आर्थिक समीकरण के बीच भारत-चीन की भूमिका अहम है. यही दो देश ऐसे हैं, जो रूस और जापान के साथ अमेरिका का मुकाबला कर सकते हैं. लेकिन, इस बीच चिंताजनक बात यह भी है कि भारत-चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार में बढ़ोतरी तो आई है, लेकिन व्यापार घाटा भी बढ़कर करीब 99.2 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. हालांकि, यह व्यापार घाटा नई दिल्ली की वजह से नहीं, बल्कि बीजिंग की वजह से बढ़ा है. भारत ने बीजिंग की ओर से बढ़े घाटे को पाटने के लिए समय-समय पर चिंता भी जाहिर की गई. ऐसे में महत्वपूर्ण यह है कि इस व्यापार घाटे को पाटने चीन की ओर से ही कारगर कदम उठाने होंगे और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन के जरिए कारगर कदम उठाने होंगे.

वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिरता के लिए भारत-चीन महत्वपूर्ण

एससीओ शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार 30 अगस्त 2025 को तियानजिंग पहुंच गए हैं. इससे पहले उन्होंने 29 अगस्त, 2025 को जापान की राजधानी टोक्यो से कहा कि विश्व आर्थिक व्यवस्था में स्थिरता लाने के लिए भारत और चीन के लिए मिलकर काम करना महत्वपूर्ण है. उन्होंने यह भी कहा कि नई दिल्ली द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से आपसी सम्मान, आपसी हित और आपसी संवेदनशीलता के आधार पर आगे बढ़ाने के लिए तैयार है.

भारत-चीन के द्विपक्षीय व्यापार की स्थिति

समाचार एजेंसी पीटीआई भाषा की एक रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल-जुलाई 2025-26 के दौरान भारत का निर्यात 19.97% बढ़कर 5.75 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया, जबकि आयात 13.06% बढ़कर 40.65 अरब अमेरिकी डॉलर रहा. वित्त वर्ष 2024-25 मे भारत का निर्यात 14.25 अरब अमेरिकी डॉलर था, जबकि आयात 113.5 अरब अमेरिकी डॉलर था. व्यापार घाटा (आयात और निर्यात के बीच का अंतर) 2003-04 में 1.1 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में 99.2 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया. पिछले वित्तीय वर्ष में चीन का व्यापार घाटा भारत के कुल व्यापार असंतुलन (283 अरब अमेरिकी डॉलर) का लगभग 35% था. वित्त वर्ष 2023-24 में यह अंतर 85.1 अरब अमेरिकी डॉलर था.

चिंताजनक है चीन के साथ व्यापार घाटा

चीन के साथ बढ़ता व्यापार घाटा चिंता का विषय बना हुआ है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि यह न केवल बड़ा है, बल्कि संरचनात्मक भी है. थिंक टैंक जीटीआरआई के अनुसार, जो बात इसे और भी गंभीर बनाती है, वह यह है कि चीन अब लगभग हर औद्योगिक श्रेणी में भारत के आयात पर हावी है.

किन उत्पादों में चीन की 75% हिस्सेदारी

जीटीआरआई विश्लेषण में कहा गया है कि एरिथ्रोमाइसिन जैसे एंटीबायोटिक दवाओं में चीन भारत की 97.7% जरूरतों की आपूर्ति करता है. इलेक्ट्रॉनिक्स में यह सिलिकॉन वेफर्स के 96.8% और फ्लैट पैनल डिस्प्ले के 86% को नियंत्रित करता है. रिन्युएबल एनर्जी में 82.7%, सोलर सेल और 75.2% लिथियम-आयन बैटरी चीन से आती हैं. यहां तक कि लैपटॉप में 80.5%, कढ़ाई मशीनरी में 91.4% और विस्कोस यार्न में 98.9% हिस्सेदारी है और इन जैसे रोजमर्रा के उत्पादों में भी चीन का प्रभुत्व है.।

चीन के प्रभुत्व से भारत में दबाव

जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव का कहना है कि चीन की अत्यधिक प्रभुत्व स्थिति भारत के लिए एक संभावित दबाव का साधन बन सकती है, क्योंकि सप्लाई चेन को राजनीतिक तनाव के समय में दबाव डालने के हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. यह असंतुलन बढ़ता जा रहा है, क्योंकि भारत का चीन के साथ निर्यात घट रहा है, जिससे द्विपक्षीय व्यापार में भारत का हिस्सा आज सिर्फ 11.2% रह गया है, जो दो दशकों पहले 42.3% था.

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चीन पर निर्भरता घटाने के लिए भारत के कदम

भारत ने चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिए कई कठोर कदम भी उठाए हैं. घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए 14 से अधिक क्षेत्रों के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं की शुरुआत की गई. बाजार में घटिया और खराब गुणवत्ता वाले उत्पादों की जांच और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए गुणवत्ता नियंत्रण, परीक्षण प्रोटोकॉल और अनिवार्य प्रमाणन के लिए कड़े गुणवत्ता मानक और उपाय लागू किए गए हैं. सरकार भारतीय व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को अपनी सप्लाई चेन में विविधता लाने और सप्लाई के सिंगल सोर्स पर निर्भरता कम करने के लिए वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं का पता लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है.

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