मूडीज की रिपोर्ट : भारत में पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती मांग से रिफाइनरियों, तेल और गैस उत्पादन में बढ़ेगा निवेश

नयी दिल्ली : वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज का कहना है कि भारत में पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती मांग से देश में रिफाइनिंग क्षमता और तेल एवं गैस उत्पादन क्षेत्र में निवेश को बढ़ाने में मदद मिलेगी. हालांकि, उत्पादन स्तर स्थिर रहने से उसका आयात बढ़ता रहेगा. मूडीज इनवेस्टर्स सर्विस ने सोमवार को कहा कि देश […]

By Prabhat Khabar Print Desk | May 13, 2019 6:06 PM

नयी दिल्ली : वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज का कहना है कि भारत में पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती मांग से देश में रिफाइनिंग क्षमता और तेल एवं गैस उत्पादन क्षेत्र में निवेश को बढ़ाने में मदद मिलेगी. हालांकि, उत्पादन स्तर स्थिर रहने से उसका आयात बढ़ता रहेगा. मूडीज इनवेस्टर्स सर्विस ने सोमवार को कहा कि देश की कच्चे तेल पर आयात निर्भरता मार्च में समाप्त वित्त वर्ष 2018- 19 में बढ़कर 83.7 फीसदी तक पहुंच गयी है. एक साल पहले 2017- 18 में यह 82.9 फीसदी पर थी. इससे भी पहले 2015- 16 में भारत की आयात निर्भरता 80.6 फीसदी रही थी.

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मूडीज की उभरते बाजारों में नियामकीय और सिक्युरिटी नीतियों पर जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अब सभी पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री अंतरराष्ट्रीय अथवा क्षेत्रीय बाजारों की दरों के अनुरूप किया जाता है. इससे ईंधन का खुदरा बाजार अब नियंत्रण मुक्त हो गया है. मूडीज के मुताबिक, इसके बावजूद अभी भी देश में पेट्रोलियम उत्पादों के विरतण में 90 फीसदी बाजार हिस्सेदारी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के ही हाथ में है.

इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी), हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) और भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) का ही फिलहाल पेट्रोलियम बाजार पर कब्जा है. देश में कुल 64,624 पेट्रोल पंपों में से 57,944 पेट्रोल पंपों पर इन्हीं कंपनियों का नियंत्रण है. देश में 2018- 19 में कुल 21 करोड़ 16 लाख टन पेट्रोलियम उत्पादों की खपत हुई, जो कि इससे पिछले साल 20 करोड़ 62 लाख टन रही. इससे पहले 2015-16 में यह 18 करोड़ 47 लाख टन रही थी.

हालांकि, देश में कच्चे तेल का उत्पादन खपत के मुकाबले काफी कम है, लेकिन कच्चे तेल को विभिन्न उत्पादों में बदलने के मामले में भारत में अधिशेष की स्थिति है. बीते वित्त वर्ष में पेट्रोलियम उत्पादों का उत्पादन 26.24 करोड़ टन रहा. खपत में ऊंची वृद्धि के चलते इन तेल कंपनियों को अपनी क्षमता का विस्तार करने में लगातार निवेश बढ़ाना की जरूरत होती है.

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