21 जुलाई को GST रिटर्न फाॅर्म पर विचार करेगी काउंसिल

नयी दिल्ली : जीएसटी परिषद की 21 जुलाई को होनेवाली बैठक में जीएसटी के वार्षिक रिटर्न और ऑडिट फाॅर्म को मंजूरी दिये जाने की उम्मीद है. उद्योग जगत को उम्मीद है कि इसका वार्षिक आयकर रिटर्न के साथ भी मिलान किया जा सकता है, क्योंकि सरकार टैक्स चोरी रोकने के लक्ष्य को लेकर चल रही […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 9, 2018 9:08 AM

नयी दिल्ली : जीएसटी परिषद की 21 जुलाई को होनेवाली बैठक में जीएसटी के वार्षिक रिटर्न और ऑडिट फाॅर्म को मंजूरी दिये जाने की उम्मीद है. उद्योग जगत को उम्मीद है कि इसका वार्षिक आयकर रिटर्न के साथ भी मिलान किया जा सकता है, क्योंकि सरकार टैक्स चोरी रोकने के लक्ष्य को लेकर चल रही है. यह पहला साल है, जब व्यापार जगत अपना पहला वार्षिक जीएसटी रिटर्न (जीएसटीआर -9) दाखिल करेगा. वित्त वर्ष 2017-18 के लिए यह रिटर्न 31 दिसंबर 2018 तक दाखिल करना है.

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इसी के साथ जिन व्यावसायियों का वार्षिक कारोबार (टर्नओवर) दो करोड़ रुपये से अधिक है, उन्हें अपने वार्षिक रिटर्न के साथ ऑडिट रपट भी दाखिल करनी होगी. राजस्व अफसरों ने वार्षिक रिटर्न फॉर्म का खाका तैयार किया है. इस पर 21 जुलाई को जीएसटी परिषद की बैठक में चर्चा होगी. परिषद से अनुमति मिलने के बाद नयी अप्रत्यक्ष कर प्रणाली के लिए टेक्नोलॉजी ढांचा उपलब्ध करानेवाले जीएसटी नेटवर्क (जीएसटीएन) सॉफ्टवेयर को इसके हिसाब से तैयार कर व्यापारियों को रिटर्न भरने में समर्थ बनायेगा.

एक्सपर्ट की राय में सरकार इसे पूर्ववर्ती मूल्यवर्द्धित कर (वैट) प्रशासन की तर्ज पर बनाया जा सकता है. साथ ही इसमें कुछ खंड इसे आयकर रिटर्न से जोड़ने और ऑडिट रिपोर्ट दाखिल करने के लिए जोड़ सकते हैं. उम्मीद है यह फॉर्म अक्तूबर तक ऑनलाइन उपलब्ध हो जायेगा, ताकि दिसंबर अंत तक रिटर्न दाखिल किये जा सकें.

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डेलॉइट इंडिया के सहयोगी एसएस मणि ने कहा है कि जीएसटी का मुख्य लक्ष्य कर संग्रहण का दायरा बढ़ाना है. ऐसे में उम्मीद है कि जीएसटी के वार्षिक रिटर्न में वैट प्रणाली में शामिल कुछ बातों के अलावा वार्षिक लेखाजोखा और आयकर की कुछ जानकारी देने को कहा जाये. उम्मीद है कि वैट प्रशासन के दौरान सालाना रिटर्न के आधार पर आकलन किया जाता रहा है. जीएसटी प्रशासन में भी यही प्रक्रिया अपनायी जा सकती है. विशेषज्ञों का मानना है कि कारोबारियों ने मासिक रिटर्न में हो सकता है कोई गलती की है, सालाना रिटर्न में यह ठीक हो सकती है और इसलिए आकलन सालाना रिटर्न के आधार पर होना चाहिए.

रेस्तरांओं के लिए टैक्स स्लैब तर्कसंगत बनाने की जरूरत, एसोसिएशन की मांग

होटल और रेस्तरां क्षेत्र की कंपनियां चाहती हैं कि इस टैक्स स्लैब को अभी और तर्कसंगत बनाया जाये. फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्तरां एसोसिएशन आफ इंडिया (एफएचआरएआइ) के अध्यक्ष गरीश ओबराय ने कहा कि जीएसटी के शुरुआती दिन काफी असमंजसवाले रहे. होटल एवं आतिथ्य क्षेत्र मानकर चल रहा था कि उसे एक टैक्स स्लैब में रखा जायेगा, लेकिन हमने पाया कि हमें शून्य से 28 प्रतिशत तक सभी स्लैब में रखा गया. अभी यह कहना जल्दबाजी होगा कि जीएसटी का क्षेत्र पर क्या प्रभाव पड़ा.

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दावा किया कि जीएसटी क्रियान्वयन के बाद उद्योग को कुछ अंतरराष्ट्रीय उच्चस्तरीय बैठकें, प्रोत्साहन, सम्मेलन और कार्यक्रम (एमआइसीइ) कारोबार गंवाना पड़ा. दुनिया में कहीं भी आप 28 प्रतिशत कराधान दर नहीं देखेंगे. जब तक यह प्रणाली व्यवस्थित हुई ये कारोबार दुनिया में अन्य गंतव्यों पर चले गये. रेस्तरां उद्योग के लिए कर घटाकर पांच प्रतिशत पर लाना सकारात्मक रहा, लेकिन इस दर पर इनपुट क्रेडिट नहीं मिलने की वजह से महानगरों में इ-रेस्तरां प्रभावित हुए हैं.

28 प्रतिशत टैक्स स्लैब चिंताजनक

होटल एंड रेस्तरां एसोसिएशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया के अध्यक्ष दिलीप दतवानी ने कहा कि कई ऐसी चीजें थीं, जिनकी वजह से अनिश्चितता थी, हालांकि जीएसटी परिषद ने समय के साथ उन चीजों को स्पष्ट किया. हालांकि, 28 प्रतिशत की ऊंची दर चिंता का विषय है. दतवानी ने कहा कि पर्यटक हमारे पड़ोसी देशों श्रीलंका, भूटान और यहां तक कि थाइलैंड जाना पसंद कर रहे हैं, क्योंकि वहां दरें कम हैं. बैठकों, सम्मेलनों और कार्यक्रमों के मामले में जो एक बड़ा मुद्दा है वह इस मामले में कारपोरेट क्षेत्र को इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलना है. दक्षिण एशिया रेडिसन होटल समूह के सीइओ राज राणा ने कहा, ‘होटल उद्योग के लिए वर्तमान में जो तीन दरों में जो कर लग रहा है वह एक सिंगल ब्रेकिट में पहुंचेगा.’

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