Bihar Election 2025: बिना सुनवाई नहीं कटेगा वोटर लिस्ट से किसी का नाम, SC को चुनाव आयोग ने दिलाया भरोसा

Bihar Election 2025: बिहार वोटर लिस्ट रिवीजन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि बिना उचित सुनवाई किसी का नाम मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा. कोर्ट ने आयोग से तीन बिंदुओं संशोधन का अधिकार, प्रक्रिया और समय सीमा पर स्पष्टीकरण मांगा है.

By Abhinandan Pandey | July 10, 2025 2:23 PM

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision- SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को अहम सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग से कड़ा सवाल पूछा कि आखिर वह मतदाता सूची के पुनरीक्षण के दौरान नागरिकता की जांच क्यों कर रहा है, जबकि यह कार्यक्षेत्र गृह मंत्रालय का है.

सुनवाई की अगुवाई कर रही जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि SIR प्रक्रिया का उद्देश्य वोटर लिस्ट को अपडेट करना है, न कि नागरिकता की वैधता जांचना. कोर्ट ने चुनाव आयोग से स्पष्ट किया कि वह अपनी सीमाओं को समझे और संवैधानिक जिम्मेदारियों का पालन करे.

याचिकाकर्ताओं का आरोप: नियमों को दरकिनार कर रहा चुनाव आयोग

राजद सांसद मनोज झा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा समेत 11 याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर आरोप लगाया है कि बिहार में SIR के नाम पर वोटर की नागरिकता पर सवाल उठाए जा रहे हैं, जो संविधान और चुनाव कानून के खिलाफ है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह प्रक्रिया न सिर्फ असंवैधानिक है बल्कि लाखों वैध वोटरों को सूची से बाहर करने का प्रयास है.

चुनाव आयोग बोला बिना सुनवाई किसी का नहीं कटेगा नाम

सुनवाई के दौरान कोर्ट में अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए चुनाव आयोग ने भरोसा दिलाया है कि मतदाता सूची से किसी भी व्यक्ति का नाम बिना उचित सुनवाई और प्रक्रिया के बाहर नहीं किया जाएगा. आयोग ने कहा कि प्रत्येक मतदाता को अपनी बात रखने का पूरा मौका मिलेगा.

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछे तीन सवाल

सुनवाई के दौरान अदालत ने चुनाव आयोग से तीन महत्वपूर्ण सवालों के जवाब मांगे:

  • क्या चुनाव आयोग के पास मतदाता सूची में संशोधन करने का वैधानिक अधिकार है?
  • संशोधन की प्रक्रिया क्या है, और क्या वह कानूनन मान्य है?
  • इस पूरी प्रक्रिया को पूरा करने में कितना समय लगेगा?

दोनों पक्षों की दलीलों में तीखापन

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और गोपाल शंकर नारायण ने दलील दी कि चुनाव आयोग नागरिकता जांच जैसे संवेदनशील मामलों में खुद को शामिल कर रहा है, जो लोकतंत्र के लिए सही नहीं है.

वहीं, चुनाव आयोग की ओर से पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल, वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी और मनिंदर सिंह ने कोर्ट को बताया कि प्रक्रिया सिर्फ वोटर लिस्ट को साफ-सुथरा बनाने की है और किसी विशेष वर्ग को टारगेट नहीं किया जा रहा है.

अदालत का रुख स्पष्ट: चुनाव आयोग सीमा में रहे

सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इस मुद्दे पर कोई अंतिम फैसला नहीं सुनाया है, लेकिन कोर्ट की मौखिक टिप्पणियों से यह स्पष्ट हो गया है कि वह चुनाव आयोग की भूमिका पर गंभीरता से नजर रखे हुए है. अदालत ने चुनाव आयोग से इस मामले पर विस्तृत जवाब मांगा है.

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