Bihar Election 2025: लालू परिवार के गढ़ में सियासी संग्राम, क्या प्रशांत किशोर की एंट्री बदल सकती है राघोपुर का इतिहास

Bihar Election 2025: बिहार की सियासत में इस वक्त सबसे बड़ी चर्चा राघोपुर सीट को लेकर है. जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने संकेत दिया है कि वे आगामी विधानसभा चुनाव राघोपुर से लड़ सकते हैं, जहां से फिलहाल तेजस्वी यादव विधायक हैं. अगर यह मुकाबला होता है तो लालू परिवार के गढ़ में सीधी टक्कर देखने को मिलेगी और बिहार की राजनीति का नैरेटिव बदल सकता है.

By Abhinandan Pandey | September 6, 2025 4:04 PM

Bihar Election 2025: बिहार की राजनीति में इस समय सबसे चर्चित मुद्दा है प्रशांत किशोर का नया सियासी दांव. जन सुराज पार्टी के संस्थापक और चुनावी रणनीतिकार रह चुके प्रशांत किशोर ने यह साफ कर दिया है कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में मैदान में उतरेंगे. उनका कहना है कि वे या तो करगहर से या फिर राघोपुर से चुनाव लड़ सकते हैं. इस घोषणा के बाद सूबे की राजनीति में हलचल मच गई है, क्योंकि राघोपुर से फिलहाल विपक्ष के नेता और राजद प्रमुख तेजस्वी यादव विधायक हैं.

अगर प्रशांत किशोर सचमुच राघोपुर से चुनाव लड़ते हैं तो यह मुकाबला बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ लेकर आएगा. एक तरफ तेजस्वी यादव हैं, जो दो बार इस सीट से जीत चुके हैं और लालू परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. दूसरी तरफ होंगे प्रशांत किशोर, जिनकी पहचान राजनीति के माहिर रणनीतिकार और अब एक नए विकल्प की राजनीति गढ़ने वाले नेता के रूप में बन रही है.

राघोपुर : आरजेडी का गढ़ या बदलता समीकरण?

वैशाली जिले की राघोपुर सीट को लालू परिवार की राजनीतिक धरती माना जाता है. यहां से खुद लालू यादव ने चुनाव जीता और बाद में उनकी पत्नी राबड़ी देवी भी यहां से विधायक बनीं. फिलहाल तेजस्वी यादव लगातार दो बार यहां से जीत हासिल कर चुके हैं. लेकिन यह भी सच है कि इस गढ़ में सेंध भी लगी है. 2010 के चुनाव में जेडीयू उम्मीदवार सतीश कुमार ने राबड़ी देवी को हराकर यह साबित कर दिया था कि गैर-यादव वोटरों के एकजुट होने से राजद की स्थिति कमजोर हो सकती है.

क्या है राघोपुर का जातिगत समीकरण?

राघोपुर का जातिगत समीकरण भी दिलचस्प है. यहां यादव और मुस्लिम वोटरों की संख्या लगभग 40% है, जो राजद का मजबूत आधार है. लेकिन 15-20% राजपूत और लगभग 25% ईबीसी वोटर भी निर्णायक साबित हो सकते हैं. यही वजह है कि प्रशांत किशोर की दावेदारी से यहां का संतुलन बिगड़ सकता है. वह ब्राह्मण समुदाय से आते हैं, लेकिन उनके अभियान और विकास पर जोर देने वाली छवि से गैर-यादव वर्गों को जोड़ने की संभावना बढ़ जाती है.

पिछले चुनावों का हाल

राघोपुर में बीते चार विधानसभा चुनावों का ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि यहां जीत का अंतर कभी भी बहुत बड़ा नहीं रहा.

  • 2005 में लालू यादव ने जेडीयू उम्मीदवार को लगभग 22,000 वोटों से हराया.
  • 2010 में जेडीयू के सतीश कुमार ने राबड़ी देवी को 12,000 वोटों से शिकस्त दी.
  • 2015 में तेजस्वी यादव ने भाजपा के प्रत्याशी को 22,733 वोटों से हराया, लेकिन तब राजद-जदयू गठबंधन था.
  • 2020 में तेजस्वी ने भाजपा के सतीश कुमार को 38,174 वोटों से हराकर अपनी पकड़ मजबूत दिखाई.

इन आंकड़ों से साफ है कि यादव-मुस्लिम वोटरों का समर्थन राजद को मजबूती देता है, लेकिन गैर-यादव वोटों का ध्रुवीकरण खेल बिगाड़ भी सकता है.

पीके का सियासी गणित

प्रशांत किशोर बिहार में लंबे समय से “जन सुराज यात्रा” के जरिए जनता के बीच अपनी पकड़ बनाने की कोशिश कर रहे हैं. उनका मकसद है जातिगत राजनीति को पीछे छोड़कर विकास और रोजगार जैसे मुद्दों को केंद्र में लाना. वे युवाओं और पढ़े-लिखे तबके में अपनी पकड़ बनाने में जुटे हैं.

राघोपुर से चुनाव लड़ने की घोषणा दरअसल उनकी बड़ी रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है. यहां से चुनाव लड़कर वे सीधे तौर पर तेजस्वी यादव को चुनौती देंगे और बिहार की राजनीति में अपने को तीसरे विकल्प के रूप में स्थापित करने की कोशिश करेंगे. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यह लड़ाई सिर्फ दो नेताओं की नहीं होगी, बल्कि यह बिहार की राजनीति के नैरेटिव को भी बदल सकती है.

तेजस्वी के लिए बड़ी चुनौती

तेजस्वी यादव अभी महागठबंधन के सीएम फेस हैं और विपक्ष के सबसे बड़े नेता भी. राघोपुर उनकी राजनीतिक पहचान की मजबूत सीट है. अगर यहां से उन्हें कड़ी चुनौती मिलती है तो यह न केवल उनकी व्यक्तिगत साख पर असर डालेगा, बल्कि राजद के संगठन और महागठबंधन की मजबूती पर भी प्रश्न खड़ा कर सकता है.

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि तेजस्वी के लिए सबसे बड़ी मुश्किल यही होगी कि पीके गैर-यादव वोटरों को साधने की कोशिश करेंगे. अगर यादव-मुस्लिम वोट एकजुट रहते हैं तो तेजस्वी की स्थिति मजबूत होगी, लेकिन वोटों के बंटवारे से राजद के लिए खतरा बढ़ सकता है.

बिहार की राजनीति में नया मोड़?

बिहार की राजनीति अब तक जातिगत समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही है. लेकिन अगर प्रशांत किशोर राघोपुर से चुनाव लड़ते हैं तो इस समीकरण को चुनौती मिल सकती है. चुनावी बहस जाति से निकलकर विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दों पर भी केंद्रित हो सकती है.

राजनीति के जानकार कहते हैं कि यह जंग महज राघोपुर तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि पूरे बिहार में चुनावी रणनीति और गठबंधन की दिशा बदल सकती है. महागठबंधन और एनडीए दोनों को अपनी रणनीतियों पर नए सिरे से विचार करना होगा.

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