Bihar Election 2025: 40 साल लगे BJP को असफलता की धूल झाड़ने में, तब खिला था बिहार की इस विधानसभा सीट पर कमल

Bihar Election 2025: बिहार की जमुई विधानसभा सीट राजनीतिक रूप से हमेशा हॉटस्पॉट रही है. कभी कांग्रेस और समाजवादियों का गढ़ रही यह सीट लंबे समय तक परिवारवाद की राजनीति के लिए जानी गई. 2020 में पहली बार बीजेपी ने श्रेयसी सिंह को उतारकर जीत हासिल की और यहां नया इतिहास रच दिया.

By Abhinandan Pandey | September 4, 2025 6:48 PM

Bihar Election 2025: बिहार की राजनीति में जमुई विधानसभा को हमेशा से एक हॉट सीट माना जाता रहा है. यहां के चुनावी समीकरण अक्सर पूरे मगध क्षेत्र की राजनीति की दिशा और दशा तय करते रहे हैं. समाजवादियों और कांग्रेसी नेताओं का गढ़ कहे जाने वाले इस क्षेत्र में 2020 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी अपने बूते चुनाव जीतने में सफल रही.

पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. दिग्विजय सिंह की छोटी पुत्री और शूटर से राजनीति में आईं श्रेयसी सिंह ने बीजेपी प्रत्याशी के रूप में 41 हजार से अधिक वोटों से जीत हासिल कर नया इतिहास रच दिया. लेकिन इस जीत तक पहुंचने का सफर बीजेपी के लिए आसान नहीं रहा. पार्टी को लंबे समय तक जमुई में संघर्ष करना पड़ा था.

1995 से शुरू हुआ बीजेपी का सफर

जमुई विधानसभा में 1995 का चुनाव बीजेपी के लिए खास था. इसी चुनाव में पहली बार पार्टी ने वीरेंद्र सिंह को उम्मीदवार बनाया. हालांकि, उन्हें महज पांच हजार वोटों पर ही संतोष करना पड़ा. इसके बाद गठबंधन राजनीति के दौर में यह सीट जेडीयू के खाते में चली गई. 2000 में जेडीयू प्रत्याशी नरेंद्र सिंह ने जीत दर्ज की और उन्होंने जमुई में अपनी मजबूत पकड़ बनाई.

JDU-BJP गठबंधन में सीट का बदलाव

2005 और 2010 के चुनाव में जमुई विधानसभा पर जेडीयू और फिर उनके नेता नरेंद्र सिंह के परिवार का प्रभाव दिखा. नरेंद्र सिंह के पुत्र अभय सिंह और अजय प्रताप ने यहां से चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की. लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में हालात बदल गए. इस बार बीजेपी ने निवर्तमान विधायक अजय प्रताप पर भरोसा जताया, मगर यह दांव असफल रहा और उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

2020 में खिला कमल

काफी कोशिशों और कई असफलताओं के बाद आखिरकार 2020 में बीजेपी का कमल जमुई में खिला. श्रेयसी सिंह को टिकट देकर पार्टी ने बड़ा दांव खेला और यह सफल रहा. श्रेयसी ने रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज कर न सिर्फ बीजेपी को यहां पहली सफलता दिलाई, बल्कि इस सीट पर परिवारवाद और पारंपरिक समीकरणों की राजनीति को भी चुनौती दी. श्रेयसी सिंह ने राजद के विजय प्रकाश यादव को लगभग 41 हजार वोटों से हराया था.

1952 से अब तक का चुनावी इतिहास

  • जमुई विधानसभा की चुनावी यात्रा 1952 से शुरू होती है. पहले आम चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी दुर्गा मंडल यहां से विधायक चुने गए. इसके बाद कांग्रेस का दबदबा लंबे समय तक बना रहा. हरी प्रसाद शर्मा और गुरु रामदास भी कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल करते रहे.
  • त्रिपुरारी प्रसाद सिंह का नाम यहां के राजनीतिक इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है. उन्होंने 1967 से 1977 तक लगातार चार बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (PSP) से विधायक के रूप में जीत हासिल की. वे विधानसभा अध्यक्ष पद पर भी रहे और कई विभागों में मंत्री भी बने.
  • 1980 का चुनाव इस सीट के लिए खास रहा. इस बार नरदेव प्रसाद भगत बतौर निर्दलीय उम्मीदवार जीतकर आए. वहीं 1985 में सुशील कुमार सिंह उर्फ हीरा जी कांग्रेस के टिकट से चुनाव जीते. 1990 की जनता दल की लहर में भी हीरा जी कांग्रेस से जीत दर्ज करने में सफल रहे.
  • 1995 में अर्जुन मंडल जनता दल के प्रत्याशी बने और जीतकर बिहार सरकार में वन एवं पर्यावरण मंत्री बने. 2000 में नरेंद्र सिंह, मई 2000 के उपचुनाव में सुशील कुमार सिंह, 2005 में अभय सिंह, 2010 में अजय प्रताप और 2015 में विजय प्रकाश ने विधायक के रूप में प्रतिनिधित्व किया.

जमुई की राजनीति में परिवारों का दबदबा

जमुई की राजनीति पर लंबे समय तक कुछ परिवारों का वर्चस्व रहा. त्रिपुरारी प्रसाद सिंह, सुशील कुमार सिंह और नरेंद्र सिंह के परिवारों ने यहां लगातार अपनी पकड़ बनाए रखी. नरेंद्र सिंह के पुत्र अभय सिंह और अजय प्रताप ने भी इस सीट से जीत हासिल की. विजय प्रकाश ने भी इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया.

2020 में जब श्रेयसी सिंह मैदान में उतरीं, तो मुकाबला और रोचक हो गया. उन्होंने न सिर्फ भारी बहुमत से जीत दर्ज की बल्कि यह भी साबित किया कि जमुई अब सिर्फ पारिवारिक विरासत की राजनीति तक सीमित नहीं है.

2025 का चुनाव: क्या चमक बरकरार रख पाएगी बीजेपी?

अब सवाल यह है कि 2025 के चुनाव में बीजेपी और श्रेयसी सिंह की चमक कितनी कायम रहती है. क्या पार्टी यहां लगातार दूसरी बार जीत दर्ज कर पाएगी या फिर विपक्ष इस सीट को वापस अपने पाले में खींच लेगा? इतिहास बताता है कि जमुई में सत्ता का समीकरण बार-बार बदलता रहा है. कभी कांग्रेस का गढ़ रहा यह क्षेत्र समाजवादियों और निर्दलीय नेताओं के प्रभाव में भी रहा. अब बीजेपी की जीत ने इस विधानसभा को नए राजनीतिक समीकरण में लाकर खड़ा कर दिया है. बीजेपी की सबसे बड़ी चुनौती इस सीट पर कब्जा बरकरार रखना है.

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