बिहार में पहली बार 1957 में चुनी गई थी दलित महिला विधायक, जानिए कैसे बढ़ी महिलाओं की हिस्सेदारी

Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनावों में महिलाओं की भागीदारी कैसे बढ़ी? शुरुआती दौर में उनकी मौजूदगी सीमित थी, लेकिन धीरे-धीरे प्रतिनिधित्व बढ़ता गया. दलित महिला नेताओं ने सामाजिक बाधाओं को तोड़कर इतिहास रचा. आज महिलाएं न केवल निर्णायक मतदाता हैं, बल्कि सशक्त नेतृत्व की मिसाल भी बन चुकी हैं.

By Paritosh Shahi | September 14, 2025 6:41 PM

Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के इतिहास में महिलाओं की इंट्री प्रेरणादायक यात्रा रही है. स्वतंत्रता के बाद शुरुआती चुनावों में महिलाओं की भागीदारी बहुत सीमित रही थी, लेकिन धीरे-धीरे उनके प्रतिनिधित्व ने नयी ऊंचाइयों का छुआ. 1957 के बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार महिलाओं ने बड़ी सफलता हासिल की.

बांका से विन्ध्यवासिनी देवी कांग्रेस के टिकट पर विधायक बनीं, जो उस जिले की पहली महिला विधायक थीं. इसी दौरान सहरसा से कांग्रेस के टिकट पर विशेश्वरी देवी जीतीं. महिलाएं तब साधारण सामाजिक जीवन जीते हुए भी अपने क्षेत्र के लिए जिम्मेदारी निभाने आगे आयीं.

1962 और इसके बाद के वर्षों में महज चंद महिलाएं ही विधायक बन सकीं. पुरुष वर्चस्व और सामाजिक रूढ़ियों के कारण उनका संघर्ष जारी रहा. 1972 में आश्चर्यजनक रूप से 318 सीटों पर चुनाव लड़ा गया लेकिन एक भी महिला उम्मीदवार जीत नहीं सकीं. यह बिहार विधानसभा के इतिहास का सबसे कम महिला प्रतिनिधित्व वाला चुनाव रहा.

पहली दलित महिला विधायक

दलित महिला नेतृत्व की बात करें, तो 1957 के चुनाव में मसौढ़ी से सरस्वती चौधरी, सिंधिया से श्यामा कुमारी और देवघर से शैलवाला जैसे नाम पहली दलित महिला विधायकों के रूप में दर्ज हैं. इन नेताओं ने सामाजिक बाधाओं को तोड़ा और सभी चुनौतियों के बावजूद विधानसभा तक का सफर पूरा किया. इसके बाद भी लंबे समय तक दलित महिलाओं की संख्या बेहद कम रही, लेकिन समय के साथ इनकी भूमिका में बदलाव आया.

2020 के चुनाव में दलित महिला नेताओं ने अभूतपूर्व प्रदर्शन किया. नरकटियागंज से भागीरथी देवी, त्रिवेणीगंज से वीणा भारती, कोंढ़ा से कविता देवी, बाराचट्टी से ज्योति देवी, मोहनिया से संगीता कुमारी आदि जीत कर विधानसभा पहुंची. इनमें भागीरथी देवी की कहानी खास रही. 800 रुपये मासिक वेतन पर सफाई कर्मचारी से पांच बार विधायक और पद्मश्री सम्मान तक का उनका सफर ऐतिहासिक रहा.

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धीरे-धीरे बढ़ता गया वोट शेयर

पिछले दो दशकों में महिला वोटर्स ने हर चुनाव में पुरुषों को पछाड़ दिया है. उनका वोट प्रतिशत लगातार बढ़ा है. 2010, 2015, और 2020 के चुनावों में महिलाओं का वोट शेयर पुरुषों से ज्यादा रहा. इससे स्पष्ट है कि महिलाएं अब बिहार की चुनावी राजनीति का निर्णायक चेहरा बन चुकी हैं.

बिहार विधानसभा में महिलाओं की शुरुआत सीमित थी, लेकिन आज उनका प्रतिनिधित्व, खासतौर पर दलित महिलाओं का, बदलाव और प्रेरणा की मिसाल बन चुका है. शुरुआती जीतों से लेकर आज तक का सफर, महिलाओं ने विभिन्न चुनौतियों को पार करते हुए अपनी जगह मजबूत की है. यह कहानी बिहार के लोकतांत्रिक और सामाजिक विकास में महिलाओं की बढ़ती भूमिका का उज्ज्वल प्रतीक है.

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