चंदा बाबू की कहानी: तीन बेटों की हत्या के बाद भी हार नहीं मानी, शहाबुद्दीन को जेल तक पहुंचाया
Mohammad Shahabuddin: सालों तक सीवान में बाहुबली के खौफ और सड़े हुए सिस्टम से अकेले लड़ने वाले चंदा बाबू ने अपने तीन बेटों की शहादत के बाद भी हिम्मत नहीं हारी. किराना दुकानदार से इंसाफ के योद्धा बने इस बुजुर्ग ने कानून, कलम और हौसले के दम पर उस दौर में लड़ाई लड़ी, जब पूरा शहर खामोश था.
Mohammad Shahabuddin: साल 2000 के दशक का बिहार- जब रंगदारी, अपहरण और हथियारबंद गुंडों का आतंक आम जिंदगी का हिस्सा था. इसी दौर में सीवान का नाम आते ही एक बाहुबली का खौफ लोगों की आंखों में तैर उठता था. जिसका नाम था मोहम्मद शहाबुद्दीन. पुलिस, प्रशासन, और सियासी रसूख के सहारे उसका साम्राज्य इतना मजबूत था कि कोई भी उसके खिलाफ बोलने से डरता था. लेकिन इसी भय और चुप्पी के बीच एक बुजुर्ग किराना दुकानदार, चंद्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू, अकेले खड़े हो गए. उनकी जिंदगी का सिर्फ एक ही मकसद था. तीन जवान बेटों के कत्ल का इंसाफ और उस कातिल को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाना.
16 अगस्त 2004: एक काली सुबह
आजादी दिवस के अगले ही दिन, 16 अगस्त 2004 की सुबह सीवान के लोगों के लिए हमेशा के लिए यादगार बन गई. वजह थी खौफ और खून. चंदा बाबू शहर में अपनी छोटी-सी किराना दुकान चलाते थे. कुछ दिनों से उन्हें फोन पर दो लाख रुपये की रंगदारी मांगी जा रही थी, लेकिन उन्होंने नजरअंदाज कर दिया.
उस सुबह उनकी दुकान पर डालडा का माल उतर रहा था, गल्ले में ढाई लाख रुपये रखे थे. दुकान पर उनका बेटा सतीश मौजूद था. अचानक हथियारबंद गुंडे आ धमके. सतीश ने कहा- “खर्चे के लिए 30-40 हजार दे सकता हूं, दो लाख नहीं हैं.” जवाब में उसे पीटा गया और गल्ले से पैसे लूट लिए गए.
दो भाइयों को खंभे से बांध तेजाब से नहला दिया गया
छोटे भाई राजीव ने जब ये दृश्य देखा तो बाथरूम में रखी एसिड की बाल्टी से एक मग भरकर हमलावरों पर फेंक दी. कुछ छींटे गुंडों पर पड़े, लेकिन गुस्से में उन्होंने राजीव को खंभे से बांध दिया और सतीश के साथ-साथ मौके पर पहुंचे तीसरे भाई गिरीश को तेजाब से नहला दिया. दोनों की दर्दनाक मौत हो गई, और लाशों को टुकड़ों में काटकर नमक के साथ बोरियों में भरकर फेंक दिया गया. फिर बाद में राजीव को भी उठाकर ले जाया गया. उसे और भी क्रूर मौत देने की धमकी दी जा रही थी. उसी समय दुकान को भी लूटकर आग लगा दी गई.
बेटे की तलाश और सड़े हुए सिस्टम से टकराहट
उस समय पटना में मौजूद चंदा बाबू को खबर मिली- दो बेटों की हत्या, एक का अपहरण, दुकान खाक. उन्हें कहा गया कि राजीव पटना के एक अस्पताल में भर्ती है, लेकिन यह झूठ था. असल में वह गुंडों के चंगुल से भागकर उत्तर प्रदेश पहुंच चुका था.
पत्नी कलावती की शिकायत पर सीवान थाने में मामला दर्ज हुआ, लेकिन पुलिस-प्रशासन में ऐसा कोई नहीं था जो बाहुबली के खिलाफ खड़ा हो सके. चंदा बाबू ने पुलिस कप्तान से मिलने की कोशिश की. लेकिन नाकाम रहे. थाने के अफसर ने खुलकर कहा- “सीवान छोड़ दीजिए, नहीं तो आप भी मारे जाएंगे.”
राजधानी पटना से लेकर दिल्ली तक, सत्ता पक्ष के नेताओं से गुहार लगाई. हर जगह खामोशी और अनदेखी की गई. उस समय चंदा बाबू को साफ हो गया कि यह लड़ाई उन्हें अकेले लड़नी होगी, और सिस्टम उनके खिलाफ खड़ा है.
नीतीश सरकार और कानूनी जंग की शुरुआत
वर्ष 2005 में नीतीश कुमार सत्ता में आए. राज्य में कानून-व्यवस्था पर जोर दिया गया, और शहाबुद्दीन पर कार्रवाई शुरू हुई. चंदा बाबू ने सीवान में डटे रहकर केस को आगे बढ़ाया. इसी बीच राजीव की शादी हुई. जो तेजाब हत्याकांड का चश्मदीद गवाह था. लेकिन 16 जून 2014 को, अपनी गवाही से सिर्फ तीन दिन पहले, डीएवी मोड़ पर राजीव की गोली मारकर हत्या कर दी गई. शादी को मात्र 18 दिन हुए थे.
टूटन और जिद
राजीव की हत्या के दो साल बाद, जब शहाबुद्दीन को जमानत मिल गई, तो चंदा बाबू ने कहा-
“अब मैं इसे हार-जीत के रूप में नहीं देखता. सबकुछ हार चुका हूं. अब केवल अपनी बीमार पत्नी और विकलांग बेटे की चिंता है. मरना तो है ही एक दिन, चाहे भगवान मारे या शहाबुद्दीन.” इसके बावजूद, उन्होंने सीवान छोड़ा नहीं. एक अपाहिज बेटे और पत्नी के सहारे वहीं रहकर केस लड़ते रहे. अंततः शहाबुद्दीन को सलाखों के पीछे भेजने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई.
अंतिम संघर्ष और विदाई
साल 2019 में पत्नी कलावती का निधन हो गया. उनके जाने के बाद एक विकलांग बेटा और राजीव की विधवा पत्नी ही उनका सहारा बचे. उसके बाद लगातार बीमार रहने लगे और 16 दिसंबर 2020 को हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया. सीवान की गलियों में आज भी लोग कहते हैं- “जिस दौर में पूरा शहर थर-थर कांपता था, उस दौर में एक बुजुर्ग ने अकेले हथियार उठाए- कलम के, कानून के, और हौसले के.”
