Bihar Election 2025: रिकॉर्ड वोटिंग ने बदला चुनावी गणित, 64.66% मतदान के पीछे क्या हैं संकेत?

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में रिकॉर्ड 64.66% मतदान ने पूरे राजनीतिक माहौल में हलचल मचा दी है. 1952 से अब तक इतना वोट कभी नहीं पड़ा था. तीन हजार से अधिक बूथों की रिपोर्ट अभी बाकी है, इसलिए यह आंकड़ा और बढ़ सकता है. बढ़ी वोटिंग ने एनडीए और महागठबंधन दोनों खेमों की धड़कनें तेज कर दी हैं.

By Abhinandan Pandey | November 7, 2025 8:34 AM

Bihar Election 2025: दुनिया को लोकतंत्र देने वाले बिहार की धरती ने इस बार चुनावी इतिहास का एक नया अध्याय जोड़ दिया है. विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 121 सीटों पर अब तक 64.66 प्रतिशत मतदान की पुष्टि हो चुकी है, और यह आंकड़ा अभी अंतिम नहीं माना जा रहा है. क्योंकि तीन हजार से अधिक बूथों का अंतिम प्रतिशत आना अभी बाकी है.

विशेषज्ञों का मानना है कि फाइनल रिपोर्ट आने तक यह आंकड़ा और बढ़ सकता है. आजादी के बाद 1952 के पहले आम चुनाव से लेकर अब तक बिहार में ना तो लोकसभा के किसी चुनाव में और ना ही विधानसभा चुनाव में इतना अधिक वोट प्रतिशत कभी दर्ज किया गया था. ऐसे में इस बार की रिकॉर्ड वोटिंग सिर्फ संख्या नहीं, बल्कि कई राजनीतिक संकेत भी अपने भीतर समेटे हुए है.

पिछले विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनावों से लगभग 10 प्रतिशत अधिक मतदान

पहले चरण में आने वाले 18 जिलों के 3.75 करोड़ मतदाताओं में लगभग 65 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है. यह पिछले विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनावों से लगभग 10 प्रतिशत अधिक है. इतना बड़ा उछाल स्वाभाविक रूप से सत्ताधारी एनडीए के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और महागठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी यादव दोनों की चिंता बढ़ाता है.

वोटिंग प्रतिशत में वृद्धि के पीछे सत्ता-विरोधी लहर तो नहीं?

चुनावी राजनीति का स्थापित सिद्धांत कहता है कि जब मतदान में अप्रत्याशित वृद्धि होती है, तो अक्सर इसके पीछे सत्ता-विरोधी लहर की भूमिका होती है. हालांकि, इस बार समीकरण इतने सीधे नहीं दिखते. नीतीश कुमार के खिलाफ कोई खुला, मुखर या तूफानी विरोध दिखाई नहीं देता. दूसरी तरफ, तेजस्वी यादव के हर घर से एक सरकारी नौकरी देने के वादे को लेकर उठे सवालों ने इस पर भी संदेह छोड़ दिया है कि क्या नौकरी का लालच इतनी बड़ी संख्या में लोगों को घरों से बाहर खींच सका.

इसके बावजूद यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में 52 सीटों पर जीत का अंतर 5000 वोट से भी कम था. तेजस्वी यादव तब महज 12 सीटें जोड़ने से सरकार बनाने से चूक गए थे. ऐसे में इस बार देखी गई 10 फीसदी अतिरिक्त वोटिंग दोनों गठबंधनों की धड़कनें तेज करने के लिए काफी है.

वोटिंग प्रतिशत का क्या है पिछला रिकॉर्ड?

यदि पिछले रिकॉर्ड की बात करें तो लोकसभा चुनाव में बिहार में आज तक सबसे ज्यादा वोटिंग 1998 में 64.60 प्रतिशत हुई थी. यह वही चुनाव था जो अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार गिरने के बाद हुआ था. विधानसभा चुनावों में अब तक सर्वाधिक मतदान साल 2000 में 62.57 प्रतिशत रहा था. यह वह दौर था जब लालू यादव जेल गए थे और बिहार की राजनीति उथल-पुथल से गुज़र रही थी. इसी चुनाव के परिणाम में नीतीश कुमार पहली बार मुख्यमंत्री बने, हालांकि सिर्फ 7 दिन के भीतर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और राबड़ी देवी एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गईं.
तुलनात्मक रूप से देखें तो 2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार में 56.28 प्रतिशत और 2020 के विधानसभा चुनाव में 57.29 प्रतिशत मतदान हुआ था.

SIR के जरिए काटे गए हैं 65 लाख नाम

इस बार पहले चरण में 64.66 प्रतिशत मतदान को एक अन्य नजरिए से भी देखा जा रहा है. चुनाव आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के तहत 65 लाख फर्जी, डुप्लीकेट या निष्क्रिय वोटरों के नाम मतदाता सूची से हटाए थे. सक्रिय वोटर सूची में यह भारी सफाई भी वोट प्रतिशत बढ़ने की एक अहम वजह हो सकती है.

अब मुख्य सवाल- क्या बढ़ी हुई वोटिंग सत्ता के समर्थन की निशानी है या सत्ता-विरोध का संकेत?

बिहार के इतिहास को देखें तो वोट प्रतिशत और सत्ता परिवर्तन का संबंध हमेशा सीधी रेखा जैसा नहीं रहा. एक दिलचस्प पैटर्न यह है कि जब-जब लालू प्रसाद यादव चुनावी मैदान में प्रभावशाली रहे, वोटिंग 60% से ऊपर गई, जैसे 1990 (62.04%) और 1995 (61.79%). वहीं, जब नीतीश कुमार 2005 में पहली बार सत्ता में आए, तो सत्ता परिवर्तन केवल 46.5% वोटिंग में हो गया. वे अगली बार और भी कम 45.85% मतदान में सरकार रिपीट कर ले गए. 2010 से 2020 के बीच वोटिंग लगातार बढ़ती रही, लेकिन नीतीश कई बार सत्ता में लौटते रहे. यानी बिहार में वोट प्रतिशत से नतीजों का अनुमान लगाना बेहद मुश्किल है.

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