झूठ बोला और 4 अरब डॉलर के हथियार बेच आए मुनीर, जिस देश पर लगा है UN सैंक्शन उसके साथ सौदे में क्या-क्या?
Pakistan Libya Arms Deal: उत्तरी अफ्रीका के सैंक्शन की मार झेल रहे देश लीबिया के साथ पाकिस्तान ने पारंपरिक हथियारों के निर्यात को लेकर एक 4 अरब डॉलर के रक्षा सौदे को अंतिम रूप दिया है. हैरानी की बात है पाकिस्तान ने मुअम्मर अल गद्दाफी के उस देश से समझौता किया है, जिसके ऊपर 2011 से संयुक्त राष्ट्र का प्रतिबंध लगा है.
Pakistan Libya Arms Deal: ऑपरेशन सिंदूर में भारत से मार खाने के बाद पाकिस्तान सेना खुद की वाहवाही में व्यस्त है. आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने खुद चीफ मार्शल बना दिया, तो अमेरिका ने एफ-16 जहाजों को रिपेयर करने के लिए पैसे दे दिए. सऊदी अरब के साथ पाकिस्तान का सुरक्षा समझौता हो गया, तो मुनीर को किंगडम से सर्वोच्च सम्मान भी मिल गया. अब पाकिस्तान रक्षा सौदे को बढ़ाने में लगा है और इसके लिए उसने रुख किया है अफ्रीका का. उत्तरी अफ्रीका के सैंक्शन की मार झेल रहे देश लीबिया के साथ पाकिस्तान ने पारंपरिक हथियारों के निर्यात को लेकर एक 4 अरब डॉलर के रक्षा सौदे को अंतिम रूप दिया है. हैरानी की बात है पाकिस्तान ने मुअम्मर अल गद्दाफी के उस देश से समझौता किया है, जिसके ऊपर 2011 से संयुक्त राष्ट्र का प्रतिबंध लगा है.
पाकिस्तान के समाचार पोर्टल डॉन के अनुसार इस सौदे की जानकारी रक्षा मामलों से जुड़े चार पाकिस्तानी अधिकारियों ने दी. यह सौदा पाकिस्तान के अब तक के सबसे बड़े हथियार निर्यात सौदों में से एक माना जा रहा है. इसे पिछले सप्ताह पाकिस्तान के थलसेनाध्यक्ष और चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज फील्ड मार्शल आसिम मुनीर तथा बेंगाजी स्थित लीबियन आर्म्ड फोर्सेज (LNA) के डिप्टी कमांडर-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल सद्दाम खलीफा हफ्तार के बीच हुई बैठक के बाद अंतिम रूप दिया गया. हालांकि न तो रक्षा सौदे से जुड़े अधिकारियों ने और न ही विदेश कार्यालय, रक्षा मंत्रालय और सेना ने मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए इस संबंध में पूछे गए सवालों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
क्या-क्या बेचेगा पाकिस्तान?
समझौते के मसौदे के अनुसार, इसमें पाकिस्तान-चीन के संयुक्त रूप से विकसित 16 जेएफ-17 थंडर लड़ाकू विमान दिए जाएंगे. इसके साथ ही बुनियादी पायलट प्रशिक्षण के लिए इस्तेमाल होने वाले 12 सुपर मुशाक ट्रेनर विमानों की खरीद शामिल है. एक पाकिस्तानी अधिकारी ने इस सूची की पुष्टि की, जबकि दूसरे अधिकारी ने कहा कि सौदे में इन सभी वस्तुओं को शामिल किया गया है, हालांकि उनकी सटीक संख्या की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो सकी. अधिकारियों ने बताया कि यह समझौता थल, नौसेना और वायुसेना तीनों के लिए उपकरणों को कवर करता है और इसे करीब ढाई साल की अवधि में लागू किया जाएगा. चार में से दो अधिकारियों ने सौदे की कीमत 4 अरब डॉलर से अधिक बताई, जबकि अन्य दो ने इसे 4.6 अरब डॉलर आंका.
लीबियाई आर्मी ने भी किया कंफर्म
लीबियाई नेशनल आर्मी (LNA) के आधिकारिक मीडिया चैनल ने भी रविवार को रिपोर्ट दी कि गुट ने पाकिस्तान के साथ रक्षा सहयोग समझौता किया है, जिसमें हथियारों की बिक्री, संयुक्त प्रशिक्षण और सैन्य निर्माण शामिल हैं, हालांकि विस्तृत जानकारी नहीं दी गई. माना जा रहा है कि यह समझौता पाकिस्तान के रक्षा निर्यात के लिए एक बड़ा मील का पत्थर साबित हो सकता है. यह उसे उन चुनिंदा देशों की सूची में खड़ा कर देगा जो कई अरब डॉलर के पारंपरिक हथियार सौदे करने में सक्षम हैं.
लीबिया पर लगा है हथियार प्रतिबंध
हालांकि, LNA के साथ किसी भी ऐसे समझौते पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ी नजर रखी जा सकती है, क्योंकि 2011 में मुअम्मर गद्दाफी को हटाने वाले नाटो-समर्थित विद्रोह के बाद से लीबिया लंबे समय से अस्थिरता और पूर्व-पश्चिम में बंटी सत्ता के बीच संघर्ष से जूझ रहा है. लीबिया पर फरवरी 2011 से संयुक्त राष्ट्र का हथियार प्रतिबंध लागू है, जिसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1970 और बाद में 1973 सहित अन्य प्रस्तावों के जरिए और मजबूत किया गया था. यह प्रतिबंध सभी देशों को लीबिया को हथियार और उससे जुड़ी सामग्री की आपूर्ति, बिक्री या हस्तांतरण से रोकता है. हालांकि इसके बावजूद, पिछले दस सालों में लीबिया में हथियारों का प्रवाह लगभग बेरोकटोक जारी रहा है. इससे प्रॉक्सी युद्धों को बढ़ावा मिला और प्रतिद्वंद्वी गुटों के बीच विभाजन और गहरा हुआ.
पाकिस्तान प्रतिबंध को नहीं बाधा नहीं मानता
वहीं द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तानी अधिकारी संयुक्त राष्ट्र के हथियार प्रतिबंध को लीबिया के साथ रक्षा सहयोग में कोई व्यावहारिक बाधा नहीं मानते, क्योंकि यह प्रतिबंध लंबे समय से प्रभावी रूप से लागू ही नहीं हो पा रहा है. उनके अनुसार, यह प्रतिबंध अब जमीन पर किसी ठोस रोक के बजाय महज एक औपचारिक या कागजी पाबंदी बनकर रह गया है. मार्च 2020 में हथियार प्रतिबंध लागू कराने के लिए शुरू किया गया यूरोपीय संघ का नौसैनिक मिशन ‘ऑपरेशन इरिनी’ भी सीमित अधिकार, चुनिंदा जांच और यूरोपीय देशों के बीच सहमति की कमी के कारण बहुत असरदार साबित नहीं हुआ.
लीबिया पर लगा हथियार प्रतिबंध अप्रभावी बना है
लीबिया पर 2011 से संयुक्त राष्ट्र का हथियार प्रतिबंध लागू है, जिसके तहत हथियारों और उससे जुड़ी सामग्री के हस्तांतरण के लिए संयुक्त राष्ट्र की मंजूरी आवश्यक है. दिसंबर 2024 में संयुक्त राष्ट्र को सौंपी गई विशेषज्ञ पैनल की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि लीबिया पर लगाया गया हथियार प्रतिबंध अप्रभावी बना हुआ है. पैनल के अनुसार, कई विदेशी देश प्रतिबंधों के बावजूद पूर्वी और पश्चिमी लीबिया की सेनाओं को सैन्य प्रशिक्षण और सहायता देने में पहले से अधिक खुले हो गए हैं. हालांकि यह स्पष्ट नहीं हो सका कि पाकिस्तान या लीबिया ने संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध से किसी छूट के लिए आवेदन किया है या नहीं.
अन्य देशों से भी मिलता रहा है समर्थन
संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त गवर्नमेंट ऑफ नेशनल यूनिटी (GNU), जिसके प्रमुख प्रधानमंत्री अब्दुलहमीद दबीबा हैं, पश्चिमी लीबिया के बड़े हिस्से को नियंत्रित करती है. वहीं, हफ्तार की LNA देश के पूर्व और दक्षिणी हिस्सों, जिनमें प्रमुख तेल क्षेत्र शामिल हैं, पर नियंत्रण रखती है और पश्चिमी सरकार की वैधता को मान्यता नहीं देती. दैनिक ट्रिब्यून के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में, लीबिया के प्रतिद्वंद्वी गुटों को बाहरी ताकतों से बड़े पैमाने पर सैन्य समर्थन मिला है.
तुर्की और कतर ने त्रिपोली की सरकारों को ड्रोन, बख्तरबंद वाहन, वायु रक्षा प्रणालियां, सैन्य सलाहकार और सहयोगी लड़ाके उपलब्ध कराए हैं. इसमें पूर्व सरकार (GNA) और उसकी उत्तराधिकारी सरकार (GNU) शामिल हैं. त्रिपोली की सरकारों को अमेरिका, ब्रिटेन और इटली से कूटनीतिक मान्यता और राजनीतिक समर्थन भी मिलता रहा है. दूसरी ओर, पूर्वी लीबिया की हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स और LNA को संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र और रूस का समर्थन मिला है. फ्रांस पर भी LNA को गुप्त सहायता देने के आरोप लगे हैं, हालांकि पेरिस ने आधिकारिक तौर पर प्रत्यक्ष सैन्य हस्तक्षेप से इनकार किया है. सऊदी अरब, जॉर्डन और चाड का नाम भी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टों में पूर्वी लीबिया की सेनाओं को विभिन्न तरह का समर्थन देने वालों में लिया गया है.
रक्षा समझौतों पर दंडात्मक कार्रवाई की संभावना कम
पाकिस्तान का मानना है कि इन लगातार और लगभग बिना सजा वाले उल्लंघनों ने ऐसा माहौल बना दिया है जिसमें नए रक्षा समझौतों पर ठोस दंडात्मक कार्रवाई होने की संभावना बहुत कम है. उनका कहना है कि हथियार आपूर्ति करने वाले देश अक्सर तीसरे देशों के जरिए हथियार भेजकर, उन्हें दोहरे-उपयोग या नागरिक उपकरण बताकर, या निजी सैन्य ठेकेदारों और भाड़े के सैनिकों के माध्यम से औपचारिक सरकारी हस्तांतरण से बचते हुए प्रतिबंध के छेदों का फायदा उठाते रहे हैं. वहीं चार में से तीन पाकिस्तानी अधिकारियों ने कहा कि इस सौदे से किसी भी संयुक्त राष्ट्र हथियार प्रतिबंध का उल्लंघन नहीं हुआ है. एक अधिकारी ने कहा कि पाकिस्तान अकेला देश नहीं है जो लीबिया के साथ ऐसे सौदे कर रहा है; दूसरे ने कहा कि हफ्तार पर कोई प्रतिबंध नहीं है; जबकि तीसरे ने कहा कि बढ़ते ईंधन निर्यात के चलते बेंगाज़ी प्रशासन के पश्चिमी देशों के साथ संबंध बेहतर हो रहे हैं.
पाकिस्तान की नए बाजारों पर नजर
पाकिस्तान लंबे समय से रक्षा निर्यात बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. इसके पीछे उसके कथित आतंकवाद-रोधी अभियानों का दशकों का अनुभव और घरेलू रक्षा उद्योग है. इसमें चीनी सहायता प्राप्त विमान निर्माण व ओवरहॉल, बख्तरबंद वाहन, गोला-बारूद और नौसैनिक निर्माण शामिल हैं. इस्लामाबाद ने मई में भारत के साथ हुए टकराव में अपनी वायुसेना के प्रदर्शन का भी हवाला दिया है. अल-हदाथ टीवी पर रविवार को प्रसारित बयान में सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने शेखी बखारते हुए कहा कि भारत के साथ हालिया युद्ध ने दुनिया के सामने हमारी उन्नत क्षमताओं को प्रदर्शित किया है. देखें वीडियो-
पाकिस्तान खुद को सिद्ध करने की कोशिश में लगा
चीन के साथ जॉइंट वेंचर वाले जेएफ-17 को पाकिस्तान कम लागत वाले मल्टी रोल लड़ाकू विमान के रूप में पेश करता है और खुद को ऐसा आपूर्तिकर्ता बताता है जो पश्चिमी सप्लाई चेन से अलग रहते हुए विमान, प्रशिक्षण और रखरखाव की सुविधा दे सकता है. पाकिस्तान खाड़ी देशों के साथ सुरक्षा संबंध भी मजबूत कर रहा है. सितंबर 2025 में उसने सऊदी अरब के साथ एक रणनीतिक पारस्परिक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए और कतर के साथ भी उच्च-स्तरीय रक्षा वार्ताएं की हैं. माना जा रहा है कि लीबिया के साथ यह सौदा उत्तरी अफ्रीका में पाकिस्तान की मौजूदगी को और बढ़ाएगा.
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