संविधान सभा में डॉ आंबेडकर का अंतिम भाषण
भा रत को राष्ट्र के तौर पर आगे कैसे बढ़ना है, इसके बारे में डॉ आंबेडकर ने विस्तार से अपने विचार रखे हैं. संविधान सभा के अपने अंतिम भाषण के दौरान उन्होंने स्वतंत्रता के महत्व और भविष्य की चुनौतियों के बारे में भी आगाह किया था. इसके अलावा भी उन्होंने कई मुद्दों पर अपने विचार […]
भा रत को राष्ट्र के तौर पर आगे कैसे बढ़ना है, इसके बारे में डॉ आंबेडकर ने विस्तार से अपने विचार रखे हैं. संविधान सभा के अपने अंतिम भाषण के दौरान उन्होंने स्वतंत्रता के महत्व और भविष्य की चुनौतियों के बारे में भी आगाह किया था. इसके अलावा भी उन्होंने कई मुद्दों पर अपने विचार प्रस्तुत किये.
संसदीय लोकतंत्र का औचित्य : मसौदे पर चर्चा के दौरान आंबेडकर ने विभिन्न विचारधारा के लोगों का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि अगर यहां लोग केवल प्रेरक भीड़ की तरह होते, तो प्रारूप समिति का कार्य कर पाना मुश्किल हो जाता. विभिन्न विचाराधाराओं से होने के बावजूद प्रत्येक सदस्य के विचारों को उन्होंने वरीयता दी. उन्होंने भारत के परिप्रेक्ष्य में संसदीय लोकतंत्र के महत्व को बताया.
लागू करनेवालों पर जिम्मेदारी : आंबेडकर ने कहा कि इसे विधिवत लागू करने से ही संविधान का महत्व है, अन्यथा यह केवल एक दस्तावेज ही है. संविधान अच्छा हो सकता है, लेकिन अगर लागू करनेवाले बुरे होंगे, तो यह बुरा ही होगा.
और अगर लोग अच्छे होंगे, तो बुरा संविधान भी अच्छा हो सकता है. संविधान राज्य को चलानेवाला अंग प्रदान कर सकता है, जैसे- विधानमंडल, कार्यपालिका और न्यायपालिका. ये सभी अंग बेहतर काम करेंगे, जब इसमें शामिल लोग बेहतर होंगे.
राष्ट्र से ऊपर पंथ रखने के खतरे : एेतिहासिक घटनाओं और 1857 की क्रांति में भारतीयों में एकता की कमी का जिक्र करते हुए डॉ आंबेडकर ने कहा इस गलती से भारत ने न केवल अपनी स्वतंत्रता खो दी, बल्कि उसे अपने लोगों के विश्वासघात का भी शिकार होना पड़ा.
उन्होंने कहा यह सोचकर मैं चिंतित हो जाता हूं. आगाह करते हुए उन्होंने कहा कि जातियों और पंथ में बंटा समाज राष्ट्रीय एकता के लिए सही नहीं है. उन्होंने कहा अगर पार्टियां देश के ऊपर पंथ को स्थान देंगी, तो हमारी स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है. हमें अपने खून की आखिरी बूंद के साथ अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए दृढ़ होना चाहिए.
सामाजिक लोकतंत्र जरूरी : डॉ आंबेडकर ने कहा है कि संसदीय लोकतंत्र के लिए साथ जरूरी है कि हम सामाजिक लोकतंत्र को भी स्थापित करने की दिशा में प्रयास करें, जिसमें समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का सिद्धांत लागू हो. बिना सामाजिक लोकतंत्र के लिए राजनीतिक लोकतंत्र नहीं चल सकता.
जिम्मेदारी का एहसास : डॉ आंबेडकर ने अपने भाषण के आखिर में कहा कि संविधान में जिस भारत की कल्पना की गयी है, उसके निर्माण के लिए हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि स्वतंत्रता ने हमारा दायित्व बढ़ा दिया है. इसके साथ ही हम किसी गलत चीज के लिए अब ब्रिटेन पर दोष नहीं मढ़ सकते. अगर आगे गलत होता है, तो किसी और की बजाय हमारी ही जिम्मेदारी होगी.