स्थापना दिवस विशेष : वशिष्ठ बाबू के लिए राशि जुटायी, संभव हुआ इलाज

वशिष्ठ नारायण सिंह दुनिया के प्रसिद्ध गणितज्ञ थे. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के गणितज्ञ प्रो जेएल केली ने उन्हें आर्यभट्ट की परंपरा का गणितज्ञ कहा था.

By Prabhat Khabar | August 14, 2020 4:23 AM

बसंतपुर (भोजपुर, बिहार) निवासी वशिष्ठ नारायण सिंह दुनिया के प्रसिद्ध गणितज्ञ थे. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के गणितज्ञ प्रो जेएल केली ने उन्हें आर्यभट्ट की परंपरा का गणितज्ञ कहा था. इस महान व्यक्ति की प्रतिभा को देखते हुए पटना विश्वविद्यालय ने अपना नियम बदल दिया था. डॉ एनएस नागेंद्रनाथ (जिन्होंने सीवी रमण के साथ काम किया था) ने उन्हें एक साल में बीएससी और एक साल में एमएससी की परीक्षा में बैठने की अनुमति दी थी. बाद में डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह अमेरिका गये और कोलंबिया के इंस्टीट्यूट ऑफ मैथेमैटेक्सि में पढ़ाया था.

नासा की नौकरी को ढुकरा कर भारत लौटे. फिर भारत में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, आइआइटी कानपुर और इंडियन स्टैटिकल इंस्टीट्यूट कोलकाता में काम किया. भारत में काम करते हुए और पारिवारिक स्थिति के कारण उन्हें सदमा लगा. वे मानसिक तौर पर अस्वस्थ हो गये. पत्नी से तलाक हो गया था. बाद में वे कहीं गुम हो गये. वर्षों बाद उनके भाई ने अथक प्रयास के बाद खोज निकाला. आर्थिक परेशानी थी कि कैसे हो इलाज. प्रभात खबर को जैसे ही जानकारी मिली, इस प्रतिभा को बचाने के लिए अभियान चला दिया. 17 फरवरी 1993 को आप नहीं पहचानेंगे शीर्षक से डॉ वशिष्ठ नारायण की तसवीर के साथ विशेष टिप्पणी छपी, जिसमें सहायता राशि भेजने की अपील की गयी थी. खबर छपने का असर पड़ा.

वशिष्ठ बाबू नेतरहाट विद्यालय के पूर्व छात्र थे. नेतरहाट ओल्ट ब्वायज एसोसिएशन (नोबा) सक्रिय हो गया. उसने पटना के एक बैंक में अकाउंट खोल कर सहायता राशि जमा करने का आग्रह किया. प्रभात खबर ने पहल की. फिर तो पूरा देश उनकी सहायता के लिए आगे आ गया. उस समय मुख्यमंत्री थे लालू प्रसाद. उन्होंने भी सक्रिय भूमिका अदा की. सरकारी सहायता की घोषणा की. 27 फरवरी को वशिष्ठ बाबू से मिलने के लिए मुख्यमंत्री खुद उनके गांव गये. वशिष्ठ बाबू को बेंगलुरू में बेहतर इलाज के लिए भरती कराया गया. बड़ी राशि जमा होने जाने के बाद 27 फरवरी के अंक में प्रभात खबर ने आभार व्यक्त करने के साथ अभियान समाप्त किया. इस प्रकार प्रभात खबर का प्रयास रंग लाया और वशिष्ठ बाबू का इलाज हो सका. 2013 में प्रभात खबर ने फिर वशिष्ट बाबू को याद किया.

2006 में जनता को घूस को घूंसा मारना सिखाया राइट टू इनफॉर्मेशन (आरटीआइ) लागू हो चुका था. प्रभात खबर ने लगातार रिपोर्ट छापी कि झारखंड में बिना घूस दिये काम नहीं होता है. विभागों में घूस की दर भी छपती रही. इसके बाद प्रभात खबर ने प्रयास किया कि जनता को जागरूक बनाया जाये. उसे आरटीआइ (सूचना का अधिकार) के बारे में अधिक से अधिक जानकारी दी जाये. एक जुलाई 2006 से 15 जुलाई 2006 तक पूरे देश में घूस के खिलाफ शिविर लगाया गया था. देश के 15 राज्यों में यह कार्यक्रम चल रहा था.

प्रभात खबर को झारखंड-बिहार के छह केंद्रों पर इस शिविर को लगाने की जिम्मेवारी दी गयी थी. इसी क्रम में रांची, जमशेदपुर, धनबाद, देवघर, दुमका और पटना में शिविर लगाया गया था. रांची में अर्जुन मंडा और पटना में उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कार्यक्रम का उदघाटन किया था. हर दिन आरटीआइ के जानकारों को बुलाया जाता. लोगों को बताया जाता कि आरटीआइ क्या है, इसका उपयोग कैसे करना है. साथ में यह भी संदेश दिया जाता कि किसी काम को करने के लिए घूस नहीं देना है. कार्यक्रम का नाम दिया गया था-घूस को घूंसा. यानी जो घूस मांगे, उसे घूंसा मारिए, ऐसा नहीं है कि प्रभात खबर ने किसी को हिंसा के लिए या कानून हाथ में लेने के लिए उकसाया था.

यह सांकेतिक था कि किसी हाल में घुस मत दीजिए आरटीआइ का प्रयोग कीजिए, सूचना मांगिए और ऊपर के अधिकारियों से शिकायत कीजिए. वहां भी शिकायत नहीं सुनने पर उसके ऊपर के अधिकारियों तक जाइए. हार कर छोड़िए मत. प्रभात खबर ने लोगों को जागरूक करने के लिए, उन्हें अपना अधिकार बताने के लिए यह अभियान चला था. रांची में तो 15 दिनों तक लगातार बड़ी-बड़ी बैठकें हुईं जिसमें सत्ता और विपक्ष के नेताओं को भी बुलाया जाता था. सामाजिक दायित्व के तहत प्रभात खबर ने इस प्रकार के कार्यक्रम का आयोजन किया था. इसका असर भी दिखता था. जब अभियान चला, उसके कुछ माह बाद तक भ्रष्ट सरकारी दफ्तरों में भी घूस पर कुछ अंकुश लगा था.

बचपन बचाओ अभियान : बच्चों को तनावमुक्त करने की कोशिश झारखंड में बड़ी संख्या में लोग आत्महत्या करते हैं. खास तौर पर छात्र. परीक्षा का रिजल्ट निकला. कम नंबर आये तो बच्चों ने आत्महत्या कर ली. बच्चे तनाव में जी रहे हैं. खेलने का समय नहीं मिलता. मन भी करता है तो मैदान नहीं है कि खेलें. कंप्यूटर-टेलीविजन से बाहर नहीं निकलते. माता-पिता समय नहीं दे पाते और बच्चों से इंजीनियर-आइएएस बनने की उम्मीद करते हैं. प्रभात खबर ने बच्चों की इन समस्याओं को महसूस किया. उ सके बाद लगभग डेढ़ माह तक प्रभात खबर ने अखबार में बचपन बचाओ अभियान नाम से हरिवंशजी और संजय सिन्हा की रिपोर्ट छापी.

झारखंड के कई शहरों के स्कूलों में प्रभात खबर की टीम गयी. (अप्रैल-मई 2012). साथ में मनोचिकित्सक को भी ले गयी. स्कूल में 500-600 बच्चों को जमा किया जाता था. उनके मनोबल को बढ़ाया जाता था. उनकी समस्याओं को सुना जाता था. उनके सवालों का जवाब एक्सपर्ट दिया करते थे. सच यह है कि बच्चों की समस्याओं को भी सुनने के लिए कोई तैयार नहीं है. स्कूल के शिक्षक नहीं सुनते, घर में माता-पिता. बच्चे करें तो क्या करें? ऐसे में बच्चे डिप्रेशन में शिकार हो रहे हैं. प्रभात खबर ने इसी समस्या का निदान करने की पहल की. जब भी प्रभात खबर की टीम स्कूलों में गयी.

सैकड़ों बच्चों से सवाल पूछे, निदान पूछा. बच्चों की जो समस्याएं उभर कर आयी, उन पर लगातार रिपोर्ट्स छापी. प्रभात खबर को ऐसे अभियान से जमीनी हकीकत का भी पता चला. भ्रष्टाचार के खिलाफ युवाओं की बैठक बुलायी जब देश भर में भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल बनाने का प्रयास हो रहा था. प्रभात खबर ने इससे एक कदम आगे जाकर पहल की. 13 अगस्त 2011 को प्रभात खबर कार्यालय रांची में आइआइटी, आइआइएम, आइएसएम और प्रबंधन, इंजीनियरिंग व मेडिकल के छात्रों की बैठक बुलायी. देश के हालात से ये छात्र बेचैन थे और देश को बचाने के लिए आने के तैयार थे. इनमें से कई तो अपने प्रोफेशन को छोड़ कर राजनीति में आने, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का भी वादा किया. प्रभात खबर युवाओं को एक मंच पर लाने की पहल की.

Post by : Pritish Sahay

Next Article

Exit mobile version