क्या देश को एक सूत्र में बांध सकेंगे बोरिस जॉनसन

डॉ विजय राणालंदन से बीबीसी हिंदी के पूर्व संपादक लंदन के मेयर के अपने दस साल के कार्यकाल में वह विपक्षी लेबर पार्टी के नेताओं से बिना पूर्वाग्रह के मदद लेते थे. प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने दो महत्वपूर्ण पद विदेशी मूल के लोगों को सौंप दिये.पिछले साढ़े तीन साल से भटके देश को आखिर […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 15, 2019 4:28 AM

डॉ विजय राणा
लंदन से बीबीसी हिंदी के पूर्व संपादक

लंदन के मेयर के अपने दस साल के कार्यकाल में वह विपक्षी लेबर पार्टी के नेताओं से बिना पूर्वाग्रह के मदद लेते थे. प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने दो महत्वपूर्ण पद विदेशी मूल के लोगों को सौंप दिये.पिछले साढ़े तीन साल से भटके देश को आखिर रास्ता मिल ही गया. इसका श्रेय ब्रिटेन के आम मतदाता को दिया जाना चाहिए, जो भारी सर्दी में रिकॉर्ड मतदान करने आये. विजय संदेश में जॉनसन ने विभाजित देश को एक सूत्र में बांधने की बात कही. जॉनसन की पहली प्राथमिकता ब्रेक्जिट होगी.
वह क्रिसमस से पहले ब्रेक्जिट विधेयक को संसद में पास कराना चाहते हैं और 30 जनवरी से पहले ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से बाहर लाना चाहते हैं. लेकिन यह आसान नहीं होगा. सीमा पर कस्टम अवरोध लगाने होंगे, ताकि सीमा शुल्क लगाया जा सके. व्यापारियों में भारी चिंता है कि माल की आवाजाही में भारी कठिनाई होगी.
ब्रिटेन को अब अमेरिका, भारत और चीन जैसे देशों से अलग-अलग शर्तों पर व्यापारिक समझौते करने होंगे. जॉनसन के लिए एक उम्मीद की किरण यह है कि ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन को यूरोपीय संघ को लगभग नौ अरब पाउंड का वार्षिक योगदान नहीं देना पड़ेगा और इस धनराशि को वे स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, रेल और हवाई यातायात जैसी आधारभूत सुविधाओं पर खर्च कर सकेंगे.
तेज दिमाग के मालिक जॉनसन
बिखरे बाल और मजाकिया स्वभाव वाले बोरिस जॉनसन तेज दिमाग के मालिक हैं. लंदन के मेयर के अपने दस साल के कार्यकाल में वह विपक्षी लेबर पार्टी के नेताओं से बिना पूर्वाग्रह के मदद लेते थे.
प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने दो महत्वपूर्ण पद विदेशी मूल के लोगों को सौंप दिया. भारतीय मूल की प्रीति पटेल को गृह मंत्रालय और पाकिस्तानी मूल के साजिद जावेद को वित्त मंत्रालय सौंप दिया था. अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी डोमिनिक राब को विदेश मंत्रालय का भार सौंप कर अपनी विशालता का उदाहरण प्रस्तुत किया था.
लेबर की बड़ी हार
साल 1935 के बाद लेबर पार्टी की यह सबसे बड़ी चुनावी हार है. रोदर घाटी संसदीय क्षेत्र में सौ वर्ष में पहली बार लेबर उम्मीदवार हार गया. उत्तरी इंग्लैंड के उद्योग प्रधान इलाकों में लेबर ढह गयी. इसकी कल्पना किसी लेबर नेता ने नहीं की थी.
उत्तरी लंदन के प्रगतिशील माहौल में रोमांटिक मार्क्सवाद के सपनों में जीनेवाले लेबर नेता जेरेमी कॉर्बिन लेबर के परंपरागत मतदाताओं के साथ संवाद स्थापित नहीं कर पाये. ब्रिटेन के राजतंत्र में उनका विश्वास नहीं है. आईआरए और जेकेएलएफ जैसे आतंकवादी गुटों से उनकी सहानुभूति रही है. इस चुनाव में उनकी पार्टी ने कश्मीर को लेकर भारत विरोधी रुख अपनाया था.
बोरिस जॉनसन की चुनौती
ब्रेक्जिट की आंधी में तीसरी बड़ी पार्टी लिबरल डेमोक्रेटिक को भी नुकसान हुआ है. लिब डेम नेता एक लंबे अरसे से आनुपातिक प्रतिनिधित्व की मांग करते रहे हैं. उनका तर्क है कि सबसे अधिक वोट के आधार पर होनेवाले चुनावों में तीसरे नंबर की पार्टी का कोई महत्व नहीं होता. यूनाइटेड किंगडम की एकता को बनाये रखना जॉनसन की सबसे बड़ी राजनीतिक परीक्षा होगी.
ब्रिटिश चुनाव में भारत-पाकिस्तान और हिंदू-मुसलमान
इस बार के ब्रिटिश चुनाव में भारत और पाकिस्तान की चर्चा रही. कश्मीर में धारा 370 के हटाये जाने के विरोध में पिछले 15 अगस्त को पाकिस्तानियों ने भारतीय उच्चायोग के सामने हिंसक प्रदर्शन किये थे. प्रदर्शन में लेबर पार्टी के कई सांसदों ने भाग लिया था. सितंबर माह में पार्टी के वार्षिक अधिवेशन में भारत के खिलाफ और पाकिस्तान के समर्थन में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया.
इसके अलावा मुस्लिम काउंसिल ऑफ ब्रिटेन और फंडा-अमल नामक एक और संगठन ने 14 कंजरवेटिव सांसदों की एक लिस्ट जारी कर मुसलमान मतदाताओं से इन उम्मीदवारों को हराने की अपील की. इनमें भारतीय मूल के मंत्री आलोक शर्मा और भारत के घोर समर्थक सांसद बॉब ब्लैकमैन के नाम भी शामिल थे. ब्रिटेन में बसे भारतीय प्रवासी लेबर के इस भारत विरोधी दृष्टिकोण से बहुत नाराज थे.
मुस्लिम बहुल लूटन क्षेत्र में कश्मीरी आतंकवादी संगठन जेकेएलएफ ने पार्टी उम्मीदवार के समर्थन में एक प्रचार पत्र बांटना शुरू किया, तो भारतीय समुदाय ने लेबर पार्टी के विरोध का मन बनाया. प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और उनकी महिला साथी केरी सीमोंड्स ने साड़ी पहनकर ब्रिटिश हिंदू वोट को साधने के लिए मंदिरों के दौरे शुरू किये.

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