बांदना परब में सभी विधि-विधान महिलाएं ही पूरा करती हैं
मीना महतो ... बांदना परब की पवित्रता में कुड़मी परिवार के महिलाओं की विशिष्ट भूमिका होती हैं. स्वच्छता की त्यौहारो में बांदना परब कुड़़मी जाति का एक खास त्यौहार है जिसमें झाड़ू से लेकर चूल्हा तक सारी सामग्री नये होते हैं. बांदना में प्रयुक्त होने वाले कुछ वस्तुएं हस्त निर्मित होते हैं जो महिलाएं स्वयं […]
मीना महतो
बांदना परब की पवित्रता में कुड़मी परिवार के महिलाओं की विशिष्ट भूमिका होती हैं. स्वच्छता की त्यौहारो में बांदना परब कुड़़मी जाति का एक खास त्यौहार है जिसमें झाड़ू से लेकर चूल्हा तक सारी सामग्री नये होते हैं. बांदना में प्रयुक्त होने वाले कुछ वस्तुएं हस्त निर्मित होते हैं जो महिलाएं स्वयं तैयार करतीं हैं. इसकी तैयारी में दशहरा के बाद से ही महिलाएं घर की लिपाई-पुताई व साफ-सुथरा प्रारंभ करदेती है. बांंदना के लिए महिलाएं झाड़ू, चूल्हा, गुड़ी, बांस खड़िका आदि स्वतः बनातीं हैं .
झाड़ू को भले ही हेय दृष्टिकोण से देखे जाते हैं, लेकिन बांदना में कुड़मी समुदाय के बीच इसका विशेष स्थान होता है. इसे गृह लक्ष्मी के रूप में माना जाता है. झाड़ू करने के दौरान पैर में स्पर्श होने पर तुरंत प्रणाम किया जाता है .
महिलाओं के द्वारा बांस, लुपुई, खाड़ांग, जुरगुड़ा आदि घास से निर्मित झाड़ू के बगैर बांदना परब की स्वच्छता अधूरी रह जाती है. महिलाएं स्थानीय नदी व तालाब में स्नान कर आरवा चावल के साथ झाड़ू को धोकर शुध्दिकरण करतीं हैं.
उपवास में रहकर स्नान करके स्वच्छ होने के बाद ढेकी साल को गोबर लिपाई कर शुध्द करके इस नये झाड़ू से झाडू लगाकर साफ करने के बाद ढेकी से गुड़ी कुटती हैं. गुड़ी कुटने के दौरान तीतर-बीतर हुई गुड़ी को इस झाड़ू से समेटती है. इतना ही नहीं भूत पिइड़ा के सामने जहां चुमान के लिए सुन्दर अल्पना बनातीं हैं तथा गोहाल पूजा के लिए चयनित स्थल को भी इसी से झाड़ू लगाकर सफाई किया जाता है. पूरी आंगन में अल्पना बनाने के लिए भी सफाई करने के लिए इसी झाड़ू का उपयोग किया जाता. इस तरह बांदना परब में स्वच्छ झाड़ू की विशेष महत्व होता है.
महिलाओं के द्वारा स्वनिर्मित आकर्षक चूल्हा जिससे बांदना की प्रसादी पीठा बनाया जाता है. महिलाएं काफी मेहनत से बार-बार मिट्टी की लिपाई कर इस चूल्हे का निर्माण करतीं है. चूल्हे को जहां बैठाकर पीठा बनाया जाता है, उस जगह को भी स्वच्छ झाड़ू से साफ किया जाता है.
इस चूल्हे में केवल पूजा का प्रसादी के रूप में पीठा ही बनाया जाता है. इसे घर के बाहर बाड़ी में साफ जगह पर बनाकर सुखाया जाता है और प्रसादी बनाने के समय शुध्दिकरण जगह पर लाकर उपयोग किया जाता है. पूजन सामग्री को चारकोनिआ दोना में सजाया जाता है. साल वृक्ष के कच्चे पत्ते से निर्मित इस दोने को टिपने के लिए प्रयुक्त खड़िका बांस के होते हैं, ये खड़िका महिलाएं काफी मेहनत कर खुद तैयार करतीं हैं. बांदना परब की सारे बिधि विधान महिलाएं स्नान कर नये वस्त्र धारण करने के बाद ही करतीं हैं.
परंपरा के अनुसार गाय चुमान, गाय-बैल निमछा,अल्पना निर्माण, काची दिया, अादि नेग महिलाएं ही करतीं हैं. जागरण नृत्य संगीत टीम की स्वागत व गट पूजा के बाद पुरुषों को पैर धुलाकर घर में स्वागत करने की रस्म पूरी करने की जिम्मेदारी महिलाओं की होती है. दिया, धूपदानी, सूप, मिट्टी का कड़ाई, आदि जो नये होते हैं, इसे बच्चों से दूर साफ-सुथरा व सुरक्षित रखने का कार्य भी महिलाएं करती हैं.
