क्या राहुल पूरी कर पायेंगे युगद्रष्टा की जरूरत?

रशीद किदवई (पत्रकार एवं लेखक)अब यह स्पष्ट हो चुका है कि अगले पांच साल की लंबी अवधि तक राहुल गांधी को लोकसभा में विपक्ष की भूमिका निभानी है. यह भी एक खुला भेद है कि भांति-भांतिके कांग्रेसी शशि थरूर या सचिन पायलट जैसे नेताओं की जगह राहुल को ही अपना तारणहार मानेंगे. आज राहुल गांधी […]

By Prabhat Khabar Print Desk | May 26, 2019 2:57 AM

रशीद किदवई (पत्रकार एवं लेखक)
अब यह स्पष्ट हो चुका है कि अगले पांच साल की लंबी अवधि तक राहुल गांधी को लोकसभा में विपक्ष की भूमिका निभानी है. यह भी एक खुला भेद है कि भांति-भांतिके कांग्रेसी शशि थरूर या सचिन पायलट जैसे नेताओं की जगह राहुल को ही अपना तारणहार मानेंगे. आज राहुल गांधी के सामने एक कठिन कार्य अपने कार्यकर्ताओं को ऊर्जावान बनाये रखने का है.

हालिया चुनाव में हार की जिम्मेदारी स्वीकारने के बाद उन्हें आंतरिक रूप से पार्टी में हर स्तर पर इसकी जिम्मेदारी तय करनी होगी. विशेषकर पार्टी के कम्युनिकेशन विंग पर उन्हें ध्यान देना होगा, जिसका कामकाज इस पूरे चुनाव के दौरान हर स्तर पर दयनीय रहा, चाहे वह सोशल मीडिया हो, समाचार चैनल्स हों या राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय प्रिंट मीडिया. खुद राहुल को इसे लेकर निशाना बनाया जाता रहा कि उनके पास हर समय उपलब्ध रहनेवाला मीडिया सलाहकार नहीं है तथा चुनाव के दौरान त्वरित प्रतिक्रिया देने की कोई व्यवस्था नहीं थी.
कांग्रेस को अब प्रियंका गांधी की स्थिति भी स्पष्ट करने की जरूरत है. कांग्रेस की न्याय योजना, किसानों की समस्याएं, बेरोजगार युवा की चिंताएं तथा महिला वोटर्स के लिए योजनाओं में अभी भी काफी संभावनाएं हैं. कांग्रेस अध्यक्ष इन पर ध्यान देकर महाराष्ट्र व हरियाणा के आगामी विधानसभा चुनाव में लाभ उठा सकते हैं.
राहुल के सलाहकारों की टीम में विविधता के साथ वरिष्ठ, अनुभवी व युवा विचारकों का समावेश होना चाहिए. राहुल के पास फिलहाल कमलनाथ, पी चिदंबरम, गुलाम नबी आजाद व अशोक गहलोत जैसे वरिष्ठ व अनुभवी सलाहकारों के साथ कैप्टन अमरिंदर सिंह व अहमद पटेल मौजूद हैं. राजीव गांधी के पास तकनीकी विशेषज्ञों जैसे सैम पित्रोदा, अरुण नेहरू व अरुण सिंह जैसे लोगों की टीम भी थी, जिनसे महत्वपूर्ण सामयिक सूचनाएं हासिल होती थीं, लेकिन राजीव ने जब महसूस किया कि राजनीति में दोनों अरुण का हस्तक्षेप हद से ज्यादा बढ़ने लगा है, तो उन्हें बाहर का दरवाजा दिखा दिया गया.
पार्टी की लीगल टीम ने भी राहुल की किरकिरी कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी. चौकीदार चोर है मामले की पहली सुनवाई में ही सुप्रीम कोर्ट में एक माफीनामा दाखिल करके इससे पिंड छुड़ाया जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया और अधकचरे न्यायिक सहायक इसे मतदान के पांचवे चरण तक ले गये. तब तक देश भर में राहुल उपहास का पात्र बनते रहे.
पार्टी के भीतर राहुल को संसदीय बोर्ड तथा कांग्रेस कार्य समिति को भी संभालने की जरूरत है. जनवरी से मई 2019 के दौरान इन समितियों को विशेष रूप से सक्रिय होना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जिम्मेदारियों के बोझ तले दबे राहुल ने प्रत्याशी चयन की जिम्मेदारी केवल केसी वेणुगोपाल पर छोड़ दी. इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा. इसी तरह चुनाव पूर्व व पश्चात सहयोगी पार्टियों के साथ गठबंधन मामले में भी कुछ जानकार पार्टी नेताओं की मदद ली जाती, तो नतीजे कुछ बेहतर हो सकते थे. साथ ही, पार्टी से अलग हुए धड़ों जैसे वायएसआर कांग्रेस, तेलंगाना राष्ट्रीय समिति, यहां तक कि तृणमूल कांग्रेस को भी घर वापसी का निमंत्रण दे सकते हैं.
पार्टी का सत्र हर दो साल में बुलाना होगा. प्रियंका के साथ मिलकर वे सप्ताहांत किसी अन्य राज्य में भी बिता सकते हैं, जहां कार्यकर्ताओं से उनका जीवंत संपर्क होगा. साल 2006 में हैदराबाद के कांग्रेस सम्मेलन में पढ़े गये आलेख में है- ‘हर राजनीतिक युग को एक नेता और युगदृष्टा की जरूरत होती है, जो समाज के परंपरागत आदर्शों को बदल कर वर्तमान की चुनौतियों का सामना करने को तैयार रहता है.’ क्या राहुल गांधी खुद को ऐसा पाते हैं?

Next Article

Exit mobile version