आखिरी बार गाना सुनाया था निपटे निठुर भेली नहीं आली…

II कोरनेलियुस मिंज II 1972 में अमृत राय रांची के अपर बाजार स्थित राधा कृष्ण सहाय के यहां आये थे. उस दिन उन्होंने संत कुमार पांडेय की ‘रस राती’ रचना पहली बार सुनी. इस रचना से वे इतने प्रभावित हुए कि अपने बिस्तर से उठ बैठे और एक बार नहीं परंतु आठ-आठ बार तक सुने. […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 27, 2018 5:37 AM

II कोरनेलियुस मिंज II

1972 में अमृत राय रांची के अपर बाजार स्थित राधा कृष्ण सहाय के यहां आये थे. उस दिन उन्होंने संत कुमार पांडेय की ‘रस राती’ रचना पहली बार सुनी. इस रचना से वे इतने प्रभावित हुए कि अपने बिस्तर से उठ बैठे और एक बार नहीं परंतु आठ-आठ बार तक सुने.

रस राती रचना का अंश इस प्रकार है: लंबमान अंक बांधि लहसल चाइरो आंखि, मधु मीठा जीयावक्ष बीच विहरत बंधु कर प्रियारस रंज रिसया।।
मानिनी मलिन मानी, साधना साधल जानी अधमुंदा खिया, सहि सहि सासित संग मेसा जीया रस रंजे रतिया।। संत कुमार पांडेय ‘नागपुरिया कुहू’ रचना से नागपुरी साहित्य जगत में अपनी पहचान बनायी थी. अस्वस्थता के बावजूद पिछले एक साल से श्रीमद्भागवत का नागपुरी में अनुवाद कर रहे थे, लेकिन विधाता को कुछ और ही मंजूर था. अनुवाद कार्य अधूरा ही छोड़ चले गये. उनका निधन 11 अप्रैल 2018 को रांची में हुआ. निधन से दो दिन पहले 9 अप्रैल को उन्होंने मुझसे अनुदित भाग को अखबारों में प्रकाशन कराने की बात की थी.
इसके लिए मुझे पुन: आने का निमंत्रण भी दिया था. उसी दिन उन्होंने अपने आवास में मरदानी झूमर में एक गीत .. निपटे निठुर भेली नहीं आली .. सुनाया था, लेकिन कौन जानता था कि यह मेरी उनसे आखिरी मुलाकात साबित होगी इस तरह से उनका चुपचाप चला जाना और उनके कार्यों को पूरा नहीं कर पाने दुख मुझे सालता रहेगा.
संत कुमार पांडेय का जन्म लोहरदगा जिले के बदला गांव में वर्ष 1943 में हुआ था.वर्तमान में वे रांची पहाड़ी टोला के पास रह रहे थे. प्रारंभिक शिक्षा लोहरदगा से पूरी करने के बाद गुमला से प्री–यूनिवर्सिटी पास किया. तत्पश्चात 1963 में रांची आये. यहां स्नातक और एलएलबी की शिक्षा पूरी की.1960 में उनका विवाह नागपुरी के यशस्वी कवि शारदा प्रसाद शर्मा की बेटी ललिता देवी से हुई. उनकी छह संतानें हैं.
1969 से नागपुरी में उन्होंने कलम चलाना प्रारंभ किया. दरअसल उन्होंने एक सपना देखने के बाद नागपुरी में लिखना प्रारंभ किया था. उनकी पहली रचना आदिवासी पत्रिका में 1970 में छपी थी. इसके बाद 1973 से रांची एक्सप्रेस अखबार में लिखना प्रारंभ किया.
इस दौरान नागपुरी भाषा, संस्कृति, परंपरा, साहित्य और व्याकरण से संबंधित कई लेख लिखे. साथ ही उन्होंने गीत और कविताओं की रचनाएं भी कीं. वे साहित्य के विकास के लिए शोध कार्य के पक्षधर थे. पारिवारिक जिम्मेवारी और संघर्ष के बावजूद उन्होंने 1977 में ‘नागपुरी कुहू’ नामक गीत पुस्तक का प्रकाशन कराया.
इसमें 55 गीत हैं. संत कुमार पांडेय सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक व्यक्ति होने के साथ ही अधिवक्ता भी थे. लंबे समय तक वे इस पेशे में रहे. इस दौरान उन्होंने काफी जरूरतमंदों को मदद पहुंचायी. प्रारंभ के दिनों में वे रांची के अपर बाजार स्थित एक मंदिर में पुजारी भी थे. हस्तरेखा देखने वालों में उनकी एक अलग पहचान थी. इसके लिए विशेष रूप से जाने थे. उसी मंदिर परिसर में उन्होंने नागपुरी के बड़े मूर्धन्य कवि पांडेय दुर्गानाथ राय की स्मृति में सांस्कृतिक और कवि गोष्ठी का आयोजन किया था, जिसमें काफी संख्या में साहित्यकारों का जमावड़ा लगा था.
पांडेय दुर्गानाथ राय की स्मृति में किया गया पहला आयोजन था. इस कार्यक्रम से कई साहित्यकारों को एक दूसरे के नजदीक आने अवसर प्राप्त हुआ था. वह कविता के क्षेत्र में आकाशवाणी रांची से जुड़ने के बाद आगे बढ़े. इस कार्य में आकाशवाणी रांची के मशहूर नागपुरी उद्घोषक प्रमोद कुमार राय का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. प्रमोद कुमार राय कहते हैं कि – संत कुमार पांडेय की नागपुरी साहित्य में गहरी रुचि थी. उसका परिणाम है उनकी रचना ‘कुहू’ प्रकाशित है.
नागपुरी साहित्य से उनका गहरा लगाव रहा. नागपुरी साहित्यकार शकुंतला मिश्र ने कहा कि- नागपुरी के प्रति लगाव और निष्ठा भरी पड़ी थी. संत कुमार पांडेय नागपुरी रचना को आगे बढ़ाने के लिए आजीवन प्रयासरत रहे. उन्होंने अपनी रचना को आम जन तक पहुंचाने की यथेष्ट चेष्टा की. उनके लेखन से नागपुरी का रचना संसार समृद्ध हुआ है. उन्होंने अपनी रचनाओं से नये लेखकों को दिशा प्रदान की है.
कुछ गीत के मुखड़े
मधु मास बितल सखि,
पिया नहीं आय।
तरुणी बिरह वश तनु कृश पाय,
हा नयन जल छायसुसकी सखि,
अंक पाश होय लपटाय।।
दूसरा गीत
महेश–मराल हेरी मैनाक मने डरी, छापिलोरे, आंखि मुंदि लोरे।
बसहे बउराहा वर, पाइलो रे ,
मन हरिलो रे बसहे।।
प्रेत पिचास घेरी, भयानक ताल भेरी,
बाजिलो रे मगे नाचि लोरेनर कंकल रूपे, डेगिलो रे मगे चालिलो रे नर।।

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