Explainer: वर्षा ऋतु के समापन का संदेश देता कास का फूल, जानें मागे नृत्य में क्या होता उपयोग

कोल्हान में इनदिनों कास का फूल खूब इतरा रहे हैं. सफेद रंग का फूल लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है. कास का फूल जहां शारदीय नवरात्र के आगमन का संदेश देता है, वहीं वर्षा ऋतु के समापन को भी बताता है. झारखंडी परंपरा में भी इस फूल का महत्व है. मागे नृत्य में इस फूल को उपयोग में लाया जाता है.

By Samir Ranjan | September 26, 2022 6:16 PM

Prabhat Khabar Explainer: सरायकेला-खरसावां के पहाड़ी क्षेत्र, नदी-तालाब के तट, खेतों के मेढ़ों से लेकर बांध, पोखर, पगडंडियां इस समय कास के फूलों से सजकर इतराते रहे हैं. बलखाते कांस के फूल लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं. चारागाह की जमीन हो, खेतों के मेड़ हो, गांवों की पगडंडिया हो या जलाशयों के किनारा हो जैसे सबने कास के घास और फूलों का तोरण-द्वार तैयार कर रखा है. हरियाली की चादर में टांके गये कास के सफेद फूलों का गोटा प्रकृति की अपने अनुपम श्रृंगार की सुंदर झलक है.

कास के फूलों के साथ खूब हो रहा फोटो सेशन

यही रंग उत्सव का है. चहुंओर खुशी का है, खुशहाली का है. यही दो रंग में धन, धान्य, वैभव, शांति और उन्नति का भाग्य निहित है. बड़ी संख्या में लोग इन कास के फूलों के साथ फोटो सेशन भी कर रहे हैं. अमूमन देखा जाता है कि कास के ये फूल सितंबर के अंतिम सप्ताह से लेकर अक्टूबर के पहले सप्ताह में उगते हैं.

शरद ऋतु के आगमन का संदेश देती कास के फूल

कास के फूल वर्षा ऋतु के समापन और शरद ऋतु के आगमन का संकेत दे रहे हैं. कास के ये फूल नवरात्र के जल्द आने का संदेश देते है. शारदीय उत्सव के शुरू होने से पहले ही कांस के फूल लोगों को खूब रिझाते हैं. दुर्गापूजा में कास के फूलों का विशेष महत्व है. माना जाता है कि कास के फूलों से शुद्धता आती है.

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हो समाज के मागे नृत्य में होता है कास के फूलों का उपयोग

झारखंड में कास के फूल उत्सवों और परंपराओं का साक्षी बनते आये हैं. जंगलों-पठारों में कास का फूलना मतलब कई उत्सवों के आगमन का संकेत है. बुरु (पहाड़ देवता) के पूजा में कास के फूलों का महत्व है. हो समुदाय का सबसे बड़ा त्योहार मागे पर्व में नृत्य के दौरान भी कास के फूलों का उपयोग होता है. सितंबर के माह में भी कास के फूलों को कागज में लपेट कर रखा जाता है और मागे नृत्य के दौरान इसका इस्तेमाल कर उड़ाया जाता है.

रिपोर्ट : शचिंद्र कुमार दाश, सरायकेला-खरसावां.

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