JN टाटा के सपनों का शहर है जमशेदपुर, कर्मियों को दी है भविष्य निधि व ग्रेच्युटी की सौगात

जमशेदजी नसरवानजी टाटा के सपने ने ऐसा शहर और कंपनी दी, जो देश के मानचित्र पर अपनी अलग पहचान बना चुका है. जेएन टाटा ने पश्चिमी देशों में वैधानिक मान्यता प्राप्त होने से बहुत पहले अपने लोगों को कम काम के घंटे, अच्छी तरह हवादार कार्यस्थल तथा भविष्य निधि और ग्रेच्युटी की पेशकश की.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 2, 2023 1:18 PM

जमशेदजी नसरवानजी टाटा के विजन के कारण टाटा स्टील की स्थापना 1908 में कालीमाटी (बाद में जमशेदजी टाटा के नाम पर जमशेदपुर नाम हुआ) में हुई. इसकी नींव रखने के लिए उन्होंने काफी मेहनत की, लेकिन अफसोस उनका यह सपना उनके जीते जी पूरा नहीं हो पाया. 1904 में उनका निधन हो गया था, लेकिन वे अपना विजन इस कंपनी के लिए देकर गये. उनका ही विजन था कि टाटा स्टील कंपनी बने, तो उसके आसपास प्ले ग्राउंड हो, पर्यावरण बेहतर हो और लोगों की जिंदगी बेहतर हो सके. जमशेदजी नसरवानजी टाटा के सपने ने ऐसा शहर और कंपनी दी, जो देश के मानचित्र पर अपनी अलग पहचान बना चुका है.

जेएन टाटा का जन्म 1839 में नवसारी (गुजरात) में हुआ था. जेएन टाटा के पिता नसरवानजी टाटा ने एक देशी बैंकर से व्यापार के मूल सिद्धांतों को सीखा और बंबई चले गये और वहां वो एक हिंदू व्यापारी के साथ जुड़ गये. कुछ समय पश्चात जेएन टाटा बंबई में अपने पिता के साथ काम करने लगे और एलफिंस्टन इंस्टीट्यूशन में दाखिला लिया, जहां से वे 1858 में ग्रीन स्कॉलर (स्नातक) के रूप में उत्तीर्ण हुए. 1859 में वह हांगकांग में एक नयी शाखा के सह प्रबंधक के रूप में अपने पिता की फर्म नसरवानजी और कालियानदास, जनरल मर्चेंट्स में शामिल हो गये. 1867 में जेएन टाटा ने मैनचेस्टर में थॉमस कार्लाइल को इस कहावत की व्याख्या करते हुए सुना कि ‘जो राष्ट्र लोहे पर नियंत्रण प्राप्त करता है, वह जल्द ही सोने पर नियंत्रण प्राप्त कर लेता है’.

1969 में कपड़ा उद्योग में रखा कदम

जेएन टाटा की इंग्लैंड में पहली यात्रा और बाद के वर्षों में किये गये अन्य अभियानों ने उन्हें आश्वस्त किया कि कपड़ा उद्योग के प्रचलित ब्रिटिश प्रभुत्व में सेंध लगाने के लिए भारतीय कंपनियों के पास जबरदस्त गुंजाइश थी. जेएन टाटा ने 1869 में कपड़ा उद्योग में कदम रखा. उन्होंने बंबई के औद्योगिक क्षेत्र के केंद्र में स्थित चिंचपोकली में एक जीर्ण-शीर्ण और दिवालिया तेल मिल का अधिग्रहण किया और इसे एक कपास मिल में बदल दिया. दो साल बाद जेएन टाटा ने एक स्थानीय कपास व्यापारी को महत्वपूर्ण लाभ के बदले यह मिल बेच दी. इसके बाद उन्होंने इंग्लैंड की एक विस्तारित यात्रा की और लंकाशायर कपास व्यापार का विस्तृत अध्ययन किया. 1874 में जेएन टाटा ने 1.5 लाख रुपये की शुरुआती पूंजी के साथ एक नया उद्यम, सेंट्रल इंडिया स्पिनिंग, वीविंग एंड मैन्युफैक्चरिंग कंपनी शुरू की थी. एक जनवरी, 1877 को, जिस दिन महारानी विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी घोषित किया गया, नागपुर में एम्प्रेस मिल्स अस्तित्व में आयी. 37 साल की उम्र में जेएन टाटा ने अपने पहले शानदार सफर की शुरुआत कर ली थी. उन्होंने 1892 में जेएन टाटा एंडोमेंट की स्थापना की. इसने भारतीय छात्रों को जाति या पंथ की परवाह किये बिना इंग्लैंड में उच्च अध्ययन करने में सक्षम बनाया.

1899 में मिली स्टील प्लांट स्थापित करने की अनुमति

1899 में मेजर माहोन की रिपोर्ट से वास्तव में जेएन टाटा को सर्वप्रथम भारत को एक स्टील उद्योग देने का अवसर मिला. इससे पहले भारतीयों को कानून द्वारा स्टील प्लांट स्थापित करने की अनुमति नहीं थी. इस रिपोर्ट के कारण लॉर्ड कर्जन ने लाइसेंस प्रणाली को उदार बनाया. जब 1912 में प्लांट की उत्पादन लाइन से स्टील का पहला इंगट निकला, तो सर फ्रेडरिक कहां थे. तब तक, जेएन टाटा की मृत्यु के आठ साल बीत चुके थे, लेकिन उनकी आत्मा उतनी ही जीवित थी, जितनी कि उनके बेटे दोराबजी और चचेरे भाई आरडी टाटा के प्रयास, जिन्होंने असंभव को संभव बना दिया.

कर्मियों को दी है भविष्य निधि व ग्रेच्युटी की सौगात

जेएन टाटा ने पश्चिमी देशों में वैधानिक मान्यता प्राप्त होने से बहुत पहले अपने लोगों को कम काम के घंटे, अच्छी तरह हवादार कार्यस्थल तथा भविष्य निधि और ग्रेच्युटी की पेशकश की. उन्होंने 1902 में दोराबजी टाटा को लिखे एक पत्र में स्टील प्लांट में श्रमिकों के लिए एक टाउनशिप की अपनी अवधारणा को स्पष्ट किया था. यहां तक कि उद्यम के लिए एक साइट तय होने से पांच साल पहले ही पत्र में कहा गया है, ‘यह सुनिश्चित करना कि सड़कें चौड़ी हों और उनके किनारे छायादार पेड़ लगाये जायें. हर दूसरा पेड़ तेजी से बढ़ने वाली प्रजाति का और उनमें विविधता हो. साथ ही यह सुनिश्चित करना कि लॉन और बगीचों के लिए पर्याप्त जगह हो. फुटबॉल, हॉकी और पार्कों के लिए बड़े क्षेत्रों को आरक्षित किया जाये. हिंदू मंदिरों, मुस्लिम मस्जिदों और ईसाई चर्चों के लिए क्षेत्र निर्धारित किये जायें’. यह उचित ही था कि इस उत्कृष्ट विजन से निर्मित शहर को जमशेदपुर कहा जाये.

Next Article

Exit mobile version