अच्छी खबर : सारंडा का बिरहोर गांव टाटीबा में अब तक कोरोना संक्रमण ने नहीं दी दस्तक, बरतते हैं कड़े नियम

Coronavirus in Jharkhand (किरीबुरु) : पश्चिमी सिंहभूम जिला अंतर्गत सारंडा क्षेत्र में एक गांव है टाटीबा. इस गांव में करीब 120 बिरहोर परिवार रहते हैं. कोरोना संक्रमण के इस दौर में सबसे अच्छी बात है कि यह गांव अब तक कोराेना संक्रमण से अछूता है. सोशल डिस्टैंसिंग समेत कई नियम इस गांव में आज भी जारी है. इन नियमों का सभी लोग पालन करते हैं. यही कारण है कि इस गांव में कोरोना संक्रमण ने दस्तक नहीं दी है जो राहत की बात है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 17, 2021 2:47 PM

Coronavirus in Jharkhand (किरीबुरु) : पश्चिमी सिंहभूम जिला अंतर्गत सारंडा क्षेत्र में एक गांव है टाटीबा. इस गांव में करीब 120 बिरहोर परिवार रहते हैं. कोरोना संक्रमण के इस दौर में सबसे अच्छी बात है कि यह गांव अब तक कोराेना संक्रमण से अछूता है. सोशल डिस्टैंसिंग समेत कई नियम इस गांव में आज भी जारी है. इन नियमों का सभी लोग पालन करते हैं. यही कारण है कि इस गांव में कोरोना संक्रमण ने दस्तक नहीं दी है जो राहत की बात है.

अच्छी खबर : सारंडा का बिरहोर गांव टाटीबा में अब तक कोरोना संक्रमण ने नहीं दी दस्तक, बरतते हैं कड़े नियम 2

झारखंड-ओड़िशा सीमावर्ती सारंडा जंगल के टाटीबा गांव के बिरहोरों की बस्ती का सबसे शिक्षित युवक दशरथ व विष्णु बिरहोर है जो मैट्रिक व आईटीआई पास है, लेकिन इन दोनों भाई को आज तक रोजगार एंव नौकरी नहीं मिली. कोरोना काल में इन दोनों भाई ने ग्रामीणों को कोरोना संक्रमण से बचाने का निर्णय लिया. इसके लिए गांव में बैठक की. ग्रामीणों की राय मशविरा से कई नियम बनाये गये.

बताया गया कि जब तक कोरोना संक्रमण का प्रभाव खत्म या कम नहीं हो जाता, तब तक बिरहोर का कोई भी परिवार या युवक गांव से बाहर किसी भी शहर या हाट-बाजार में आना-जाना नहीं करेगा. इसके अलावा सभी मास्क व सामाजिक दूरी का इस्तेमाल करेंगे. बाहरी लोगों के संपर्क से दूर रहेंगे. अपने-अपने घरों के आसपास साफ-सफाई रखेंगे. इस नियम का पालन शुरू हुआ जो आज तक जारी है.

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दशरथ बिरहोर ने बताया कि ग्रामीणों को काेरोना वैक्सीनेशन अभियान का लाभ दिलाया गया. गांव के तमाम 45 वर्ष उम्र के लोगों को बराईबुरु कैंप में ले जाकर वैक्सीन दिलाया गया. अब 18 वर्ष से अधिक के युवा को भी कैंप में वैक्सीन लेने के लिए कहा जा रहा है.

वहीं, विष्णु बिरहोर ने कहा कि फिलहाल इस गांव में चिकित्सा की कोई सुविधा नहीं है. इसलिए बीमारी से बचने के लिए खुद सुरक्षात्मक कदम उठाना पडा़. गांव में कभी-कभी एएनएम आती है. उन्होंने कहा कि इस महामारी ने सबसे ज्यादा असर बिरहोरों के आजिविका पर डाला है क्योंकि वन उत्पादों आदि को बेचने जब हमारे लोग शहर, हाट-बाजार नहीं जा रहे हैं, तो आर्थिक समस्या उत्पन्न हो रही है. इस समस्या से बिरहोरों को बचाने व राहत पहुंचाने के लिए सरकार को आर्थिक मदद पहुंचानी चाहिए.

इस गांव के बीच से ही झारखंड-ओड़िशा में आवागमन के लिए ग्रामीण सड़क है जिस रास्ते हर दिन बाहरी लोग आवागमन करने हैं. बिरहोरों की बस्ती आज भी तमाम प्रकार की विकास योजनाओं से अछूता है. वर्तमान में उनके रहने के लिए आवास, मुफ्त राशन, स्कूल आदि की सुविधा सरकार द्वारा उपलब्ध करायी गयी है, लेकिन आज भी बिरहोर रोजगार से पूरी तरह वंचित है.

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बिरहोरों के आजीविका का मुख्य साधन सारंडा जंगल है जहां की सुखी लकड़ियों, दातून, पत्ता, कंद-मूल, औषधियां, सियाली की छाल से रस्सी बना कर हाट-बाजार में बेच कर अपना और अपने परिवार का पेट पालते थे, लेकिन कोरोना महामारी ने बिरहोरों को इस कारोबार से भी वंचित कर दिया है.

Posted By : Samir Ranjan.

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