ओड़िया समुदाय का लोकपर्व रजो संक्रांति कोल्हान में शुरू, पहले दिन महिलाओं व बच्चों ने झूला झूलकर निभायी परंपरा

कोल्हान क्षेत्र के खरसावां, सरायकेला, कुचाई और उसके आसपास के इलाकों में लोकपर्व रजो संक्रांति शुरू हुई. पर्व के पहले दिन ओडिया समुदाय की महिलाएं और बच्चे झूला झूले. इस दौरान घरों में विशेष पकवान भी बनाए गये.

By Prabhat Khabar Print Desk | June 14, 2023 6:33 PM

सरायकेला-खरसावां, शचिंद्र कुमार दाश : कोल्हान क्षेत्र के खरसावां, सरायकेला, कुचाई समेत आसपास के गांवों में ओडिया समुदाय का लोकपर्व रजो संक्रांति शुरू हो गयी. बुधवार 14 जून, 2023 को सादगी के साथ पहला दिन रजो पर्व मनाया गया. तीन दिवसीय रजो पर्व (संक्रांति) के पहले दिन बुधवार को महिलाओं और बच्चों ने झूला झूलने की रश्म को निभाये. घर के आंगन, गांव के चौक-चौराहे और पार्कों में रस्सी से झूला बना कर रजो संक्रांति पर महिला व बच्चे झूला झूलते दिखे. इस दौरान ‘दोली हुए रट रट, मो भाई मुंडरे सुना मुकुटो, सुना मुकुट लो दिसु थाये झट झट…, कट कट हुए दोली, भाउजोंक मन जाइछी जली, जाइछी जली लो, लो भाई विदेशु नइले बोली…’ आदि रजो गीत गये.

घरों में की गयी पूजा अर्चना, बनाये गये विशेष व्यंजन

ओडिया घरों में उरड़ की दाल और चावल से तैयार किया गया पीठा (एक तरह का केक) बना कर देवी-देवताओं को आर्पित किया गया. रजो पर्व पर पोड़ा पीठा खाने का रश्म है. आषाढ़ माह के आगमन पर मानसून के स्वागत में ओड़िया समुदाय के लोग इस त्योहार को मनाते हैं. इस मौके पर घरों में विशेष पकवान भी बनाये गये.

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तीन दिनों तक खेतों में काम नहीं करेंगे किसान

जेठ माह के संक्रांति अर्थात मासांत के दिन को पहली रजो मनाया जाता है. गुरुवार को रजो संक्रांति उत्सव के रूप में मनाया जाएगा. मान्यता कि इस दिन धरती मां रजोस्वला होती है. रजो संक्रांति के तीन दिनों तक न तो किसान जमीन पर हल चलाते हैं और न ही धरती पर किसी तरह के कृषि औजार व अन्य औजार चलाए जाते हैं. तीन दिन बाद खेतों में धान का बीज डालेंगे. मान्यता है कि शत प्रतिशत अंकुरित होकर फलदायक होता है.

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