Akshaya Tritiya 2021: अविनाशी, अनन्त, अनश्वर और शाश्वत का सूत्र

Akshaya Tritiya 2021: अक्षय का अर्थ है जो अविनाशी हो, क्षय रहित हो, अनश्वर हो, अनंत हो, शाश्वत हो. शायद यही महासूत्र उस तिथि में समाहित है जिसे अक्षय तृतीया कहते हैं. अक्खा तीज यानी वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि, जो स्वयं सिद्ध मुहूर्त है, विलक्षण है, अद्वितीय है. अवश्य इस तिथि में कोई विशिष्ट क्षमता है जो इसे अनोखा बनाती है, सुरखाब के पंख लगाती है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 13, 2021 4:26 PM

सदगुरुश्री स्वामी आनन्द जी का गहन विश्लेषण

अक्षय का अर्थ है जो अविनाशी हो, क्षय रहित हो, अनश्वर हो, अनंत हो, शाश्वत हो. शायद यही महासूत्र उस तिथि में समाहित है जिसे अक्षय तृतीया कहते हैं. अक्खा तीज यानी वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि, जो स्वयं सिद्ध मुहूर्त है, विलक्षण है, अद्वितीय है. अवश्य इस तिथि में कोई विशिष्ट क्षमता है जो इसे अनोखा बनाती है, सुरखाब के पंख लगाती है. यह तिथि अपनी विशिष्ट आंतरिक क्षमता के लिये जानी और पहचानी जाती है.

अक्षय, यानि जिसका क्षय न हो, धूमिल न हो, कभी नष्ट न हो। हमारे प्राचीन चिंतकों एवं मनीषियों ने बहुत पहले ही इस घड़ी की उस मूल प्रवृत्ति को पहचान लिया था जो नष्ट ना होने की अप्रतिम संभावनाओं से सराबोर है. शायद इसीलिये समय ने इसे “अक्षय” नाम से पुकारा. इस नाशवान जगत में ऐसा कुछ भी नहीं है जो नष्ट ना हो सके लेकिन इस तिथि को अक्षय कहने के मूल में शायद इस तिथि की संरक्षक शक्ति को पहचान कर इसका आधार माना गया होगा क्योंकि कहते हैं कि इस तिथि में किये गये उपक्रम और प्रयास का सुगमता से क्षय या ह्रास नहीं होता. लिहाज़ा, हमारे ऋषियों नें इसे वस्तु, स्थूलता या पदार्थों से ना जोड़कर कर्मों से जोड़ा, मानसिक एवं आंतरिक क्षमता से बांधा, विचारों में समेटा.

इसलिए इस दिन अध्ययन, साधना, उपासना, ध्यान, जप-तप, होम-हवन और दान जैसे नवीन कर्मों का प्राकट्य हुआ. सुख की कामना के मार्ग का वरण करने से पहले हमें समझना होगा की हमारे मधुर आचरण, सकारात्मक कर्म, आंतरिक क्षमता और विकसित योग्यता ही समृद्धि के वास्तविक बीज हैं. जिनकी शाख़ों पर आनन्द, वैभव, ऐश्वर्य और हर्ष के पुष्‍प प्रस्फुटित होते हैं, पल्लवित होतें हैं. सकारात्मक कर्म, शिक्षा और ही धन के असली सूत्र हैं. पर कालान्तर में अज्ञानता वश हमने आंतरिक और वैचारिक क्षमता व गुणों को भुला कर समृद्धि को स्थूल धन से, धन को स्वर्ण से और स्वर्ण को क्षणिक भौतिक उपक्रम से जोड़ दिया.

अक्षय तृतीया की गणना युगादि तिथियों में होती है, ऐसा भविष्य पुराण में उल्लेख है. इसी दिन सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ हुआ था. ब्रह्मा के पुत्र अक्षय कुमार का प्राकट्य और परशुराम, नर-नारायण और हयग्रीव जैसे विष्णु के स्वरूपों अवतरण भी इसी तिथि में हुआ था.

नहीं है अक्षय तृतीया का सोने से कोई सीधा संबंध-

अक्षय तृतीया पर लोग सोना ख़रीदते तो हैं पर कमाल की बात यह है की इस मुहूर्त का स्वर्ण या गहनों की खरीददारी से कोई सीधा सरोकार ही नहीं है. यह तो हमारे लोभी मनोवृत्ति का एक प्रगाढ़ भौतिक स्वरूप है जिसका प्रयोग बदलते समय के साथ बाज़ार ने अपने विस्तार व लाभ तथा लोभ की पुष्टि लिये किया. अन्यथा हमारे हाथों पर अक्षय समृद्धि का स्वप्न परोसनें वाले व्यापारी भला इस दिन अपने भण्डार से स्वर्ण को पलायन की अनुमति क्यों देते. हां, इन अनोखे विचारों के चतुराईपूर्ण प्रयोग से वास्तविक माया तो हमारे जेब से निकल कर उनकी तिजोरी में अवश्य चली जाती है और असली समृद्धि व्यापारियों के पास पहुंच जाती है.

कुछ मान्यताओं और थोड़े से अस्पष्ट उल्लेखों के अलावा प्राचीन ग्रंथों में इसका कोई वर्णन नहीं है. इसका उल्लेख सिर्फ नवीन पुस्तकों में ही मिलता है. इस दिन ज्यादातर लोग सोना नहीं, सोने के नाम पर गहने ही खरीदते हैं. हमारे द्वारा खरीदा गया सोना भी शुद्ध रूप में हमारे पास नहीं आता और जिस पर सोने मज़दूरी के साथ निर्माण के साथ हुआ गोल्ड लॉस भी उपभोक्ता को ही चुकाना पड़ता है. हमारी लक्ष्मी भी व्यापारियों के हाथों में चली जाती हैं. इसलिए इस दिन पर अज्ञानतावश अपनी लक्ष्मी को दूसरों के हाथों में सौंप देना बेहतर नहीं माना जा सकता.

अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने से ज़्यादा बेहतर आंतरिक गुणों के विकास के साथ अध्ययन, अध्यापन, असहायों की सहायता, दान , जाप और उपासना है.

अक्खा तीज वसंत ऋतु के समापन और ग्रीष्म ऋतु के आगमन का संधिकाल भी है, इसलिए इस दिन सत्तू, ख़रबूज़ा, चावल, खीरा, ककड़ी,साग, इमली, जल के पात्र (जैसे सुराही, मटका, घड़ा, कसोरा, पुरवा यानि कुल्हड़) लकड़ी की चरण पादुका यानि खड़ाऊँ, छतरी, पंखे, जैसे सूर्य की तपिश से सुकून देने वाली वस्तुओं के दान देने की भी परंपरा है.

सदगुरुश्री

(स्वामी आनन्द जी)

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