Agra News: सूर्य की रोशनी से जगमग होगा दयालबाग विश्वविद्यालय का बैम्बू कॉन्फ्रेंस हॉल, जानें इसकी खासियत

आगरा स्थित दयालबाग विश्वविद्यालय का बैम्बू कॉन्फ्रेंस हॉल सूर्य की रोशनी से जगमग होगा. विश्वविद्यालय के छात्र कॉन्फ्रेंस हॉल को बनाने में जुटे हुए हैं.

By Prabhat Khabar | December 5, 2021 5:11 PM

Agra News: दयालबाग विश्वविद्यालय में छात्र-छात्राओं को प्रकृति से जोड़े रखने के लिए बैम्बू क्लास का निर्माण किया गया है. इसमें बच्चों की क्लास लगती है. इस क्लास का निर्माण इसमें पढ़ने वाले आर्किटेक्चर विभाग के बच्चों ने किया है. ये क्लास किसी सीमेंट या पत्थर से नहीं बल्कि जूट, बांस और लकड़ी द्वारा बनाई गई हैं. वहीं अब दयालबाग आर्किटेक्चर विभाग नॉर्थ इंडिया का सबसे बड़ा बैम्बू कॉन्फ्रेंस हॉल बना रहा है, जहां पर तमाम बच्चों के लिए स्टार्टअप शुरू किए जाएंगे.

आगरा में स्थित दयालबाग डीम्ड यूनिवर्सिटी नार्थ इंडिया के सबसे बड़े बैम्बू कॉन्फ्रेंस हॉल का निर्माण कर रहा है, जिसे आर्किटेक्चर विभाग में पढ़ने वाले बच्चे बना रहे हैं. इस कॉन्फ्रेंस हॉल की खासियत यह है कि ना तो इसमें आर्टिफिशियल लाइट का प्रयोग किया जाएगा और ना ही यहां पर गर्मी के लिए पंखे या ऐसी लगाए जाएंगे सूर्य की रोशनी से इस हाल में उजाला होगा. इस कॉन्फ्रेंस हॉल के बनने के बाद यहां बच्चों के द्वारा ही स्टार्टअप शुरू किए जाएंगे जहां से बच्चे वातावरण के अनुकूल नई चीजें बनाना सीखेंगे.

Also Read: Lucknow Agra Flight Cancelled: लखनऊ-आगरा के बीच Indigo की उड़ान 26 दिसंबर तक कैंसिल, कोहरे के कारण फैसला

आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर प्रशांत ने बताया कि जो हम बैम्बू कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट बना रहे हैं, वह नॉर्थ इंडिया का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है. इसमें हम ट्रीटेड बैम्बू का प्रयोग कर रहे हैं. आम लोग बैम्बू को साधारण तरीके से प्रयोग करते हैं, जिससे उनकी उम्र करीब 15 से 20 वर्ष होती है, लेकिन हमारे द्वारा ट्रीटेड बैम्बू यूज करने की वजह से यह करीब 40 साल तक यूं ही टिके रहेंगे. अगर इसमें रोशनी की बात की जाए तो कॉन्फ्रेंस हॉल के विंडोस को इतना बड़ा बनाया गया है ताकि इनमें से सूर्य की रोशनी आराम से अंदर आ सके, जिसकी वजह से हॉल में किसी भी तरह की इलेक्ट्रिसिटी की जरूरत नहीं पड़ेगी.

Also Read: Indian Railways: रेलवे ट्रैक पर कोहरे का कहर, आगरा आने वाली 20 ट्रेनों का परिचालन रद्द, ऐसे मिलेगा रिफंड

आर्किटेक्चर की पांचवी वर्ष की छात्रा आयुषी जैन ने बताया कि उन्होंने वर्कशॉप में काम करने के दौरान बैम्बू की कटिंग ट्रीटमेंट और फाउंडेशन वर्क अपने हाथ से किया है. वहीं जब यह बनकर तैयार हो गया तो अब हम इसमें पढ़ रहे हैं तो हमें अच्छा लगता है. क्योंकि जो चीज हमने बनाई है उसके अंदर पढ़ने में एक अलग ही अनुभव होता है. वहीं, छात्रा दिव्यांशी ने बताया कि हमने बैम्बू को इसलिए प्रयोग किया है क्योंकि यह टिकाऊ होता है और जल्दी बढ़ता भी है. आजकल मकान में जिन चीजों का प्रयोग किया जाता है उनसे यह ज्यादा बेहतर और वातावरण के अनुकूल होते हैं.

आर्किटेक्चर असिस्टेंट प्रोफेसर राजेश कुमार ने बताया, कंक्रीट और ईंट से बनने वाले मकानों की अपेक्षा बैम्बू हाउस 50% तक सस्ता और टिकाऊ होते हैं. बैम्बू हाउस को तैयार करने में 800 से 850 स्क्वायर फीट का खर्चा आया है. वहीं, कंक्रीट वाले मकान के निर्माण कार्य में दोगुना खर्चा आता है. उन्होंने बताया कि बैम्बू हाउस में बाहर की अपेक्षा टेंपरेचर मेंटेन रहता है. गर्मियों में आप यहां पर ठंडक का एहसास कर पाएंगे और सर्दियों में बैम्बू हाउस के अंदर आपको गर्मी मिलेगी. ऐसा इसलिए है क्योंकि पुराने जमाने में जब लोग मकान बनाया करते थे तो ईंट की अपेक्षा दीवार की मोटाई ज्यादा होती थी जिसमें मिट्टी का प्रयोग किया जाता था. इसी तरह से हमने भी इस बैम्बू क्लास में दीवार के बीच में सिर्फ मिट्टी का ही प्रयोग किया है.

आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट की कोऑर्डिनेटर मौली कैपरिहन ने बताया कि हमारे यहां स्टूडेंट्स को बताया जाता है कि जब वह आर्किटेक्ट का कोर्स करके बाहर जाए तो जब भी वह कोई निर्माण करें तो उसमें ध्यान रखें कि वह जो निर्माण कर रहे हैं वह वातावरण के अनुकूल हो. शुरुआत में बच्चों को बैम्बू क्लास रूम बनाने का प्रोजेक्ट दिया गया था. जो उन्होंने खुद अपने हाथों से बनाया. जिसके बाद अब हम एक बड़ा बैंबू कॉन्फ्रेंस हॉल बना रहे हैं जिसमें सस्टेनबिलिटी लैब तैयार की जाएगी. यहां पर किसी भी विभाग के छात्र-छात्राएं आकर ऐसी चीजों पर रिसर्च व उनको बना सकते हैं, जो वातावरण के अनुकूल है.

रिपोर्ट- राघवेंद्र सिंह गहलोत, आगरा

Next Article

Exit mobile version