Dead Internet Theory: क्या इंटरनेट अब इंसानों का नहीं रहा? क्या है डेड इंटरनेट थ्योरी?

OpenAI CEO Sam Altman ने Dead Internet Theory को लेकर चौंकाने वाला बयान दिया है. जानिए कैसे AI ने इंटरनेट को बदल दिया है

By Rajeev Kumar | September 7, 2025 7:01 PM

क्या आप सोशल मीडिया पर जो पढ़ते हैं, वो वाकई इंसानों ने लिखा है? या फिर वो किसी AI मॉडल की रचना है? OpenAI के CEO Sam Altman ने हाल ही में एक ऐसा बयान दिया जिसने Dead Internet Theory को फिर से चर्चा में ला दिया है. उन्होंने स्वीकार किया कि अब ट्विटर (X) पर बड़ी संख्या में AI द्वारा चलाए जा रहे अकाउंट्स मौजूद हैं. क्या वाकई इंटरनेट अब “मशीनों की दुनिया” बन चुका है?

Dead Internet Theory क्या है?

Dead Internet Theory एक विवादास्पद विचार है जो कहता है कि इंटरनेट पर ज्यादातर गतिविधिया अब इंसानों की नहीं, बल्कि AI मॉडल्स और बॉट्स द्वारा संचालित होती हैं. सोशल मीडिया पर जो प्रोफाइल्स और पोस्ट्स दिखते हैं, वे असल में ऑटोमेटेड सिस्टम्स द्वारा बनाए गए होते हैं. यह थ्योरी मानती है कि इंटरनेट अब एक मशीन-निर्मित भ्रम बन चुका है- कुछ-कुछ “The Matrix” जैसी दुनिया.

Sam Altman का बयान और विवाद

Sam Altman ने X पर लिखा, “मैंने Dead Internet Theory को पहले गंभीरता से नहीं लिया था, लेकिन अब लगता है कि वाकई बहुत सारे LLM-चालित ट्विटर अकाउंट्स हैं.” उनके इस बयान पर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं आईं. कई यूजर्स ने उन्हें ही Dead Internet Theory का जनक कह डाला.

AI कंटेंट की बाढ़

Elon Musk द्वारा X को मोनेटाइज करने के बाद, AI-बेस्ड बॉट्स की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है. ये बॉट्स वायरल पोस्ट्स पर लंबे-लंबे, लेकिन भावहीन कमेंट्स करते हैं. Facebook, Instagram और TikTok जैसे प्लेटफॉर्म्स पर भी AI-generated पोस्ट्स और इमेजेज की भरमार है, जिनका मकसद सिर्फ एंगेजमेंट बढ़ाना होता है.

भविष्य की तस्वीर: इंसानों की जगह मशीनें?

एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया है कि आने वाले वर्षों में AI और रोबोटिक्स अधिकांश नौकरियों को खत्म कर सकते हैं. इससे:

महंगाई में गिरावट (Deflation) आ सकती है

सरकारों को आय और संपत्ति का पुनर्वितरण करना पड़ सकता है

अमेरिका और चीन के बीच टेक्नोलॉजी वॉर और तेज हो सकता है

हालांकि जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में बूढ़ी होती आबादी के चलते ऑटोमेशन एक समाधान हो सकता है, लेकिन तकनीकी विकास की रफ्तार इंसानी अनुकूलन क्षमता से कहीं तेज है.

4850 रुपये हर घंटे कमाने का मौका दे रही Meta, हिंदी में AI के लिए करना है काम

AI कैसे बन रहा ‘मॉडर्न डे टीचर’, क्या यह ले पाएगा गुरुजी की जगह?