बच्चों को कफ सीरप की जरूरत नहीं : डॉ अपूर्व घोष

इस बीमारी को चिकित्सकों की भाषा में रेस्पिरेटरी सिंसिटियल वायरस (आरएसवी) के नाम से जाना जाता है.

By GANESH MAHTO | October 6, 2025 12:52 AM

कोलकाता. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बच्चों को कफ सीरप देने के संबंध में हाल में ही एक दिशानिर्देश जारी किया है. कफ सीरप को लेकर चेतावनियों के बीच, बंगाल में बच्चे वायरस की चपेट में आ रहे हैं. त्योहारों के इस मौसम में वायरल बीमारियों से बच्चों की आंखों में पानी आ रहा है. इस बीमारी को चिकित्सकों की भाषा में रेस्पिरेटरी सिंसिटियल वायरस (आरएसवी) के नाम से जाना जाता है. मेटानमे, इन्फ्लूएंजा बी व एडेनोवायरस भी सक्रिय हैं. सरकारी और निजी अस्पतालों में वायरस से संक्रमित बच्चों की संख्या बढ़ रही है. एसएसकेएम (पीजी), कोलकाता मेडिकल कॉलेज, बीसी राय, कलकत्ता नेशनल मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, एनआरएस मेडिकल कॉलेज में इन संक्रमण के साथ आये दिन बच्चे पहुंच रहे हैं. निजी अस्पतालों के बाल रोग विभाग में भी यही स्थिति है. इस संक्रमण से संक्रमित बच्चे बुखार, सांस लेने में तकलीफ, खांसी और नाक बहने जैसे लक्षण देखे जाते हैं. एक साल से कम उम्र के बच्चों में संक्रमण का खतरा ज्यादा रहता है. कई माता-पिता बच्चों को चिकित्सक के सुझाव के बिना ही खांसी या सर्दी होने पर कफ सीरप पिलाते हैं. केंद्र ने इस बारे में चेतावनी देते हुए दिशानिर्देश जारी किये हैं. माता-पिता को सीरप के इस्तेमाल को लेकर आगाह करते हुए कहा गया है कि दो साल से कम उम्र के बच्चों को कफ सीरप देने की जरूरत नहीं है. डॉक्टरों को दो साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को भी कफ सीरप देते समय भी सावधानी बरतने की सलाह दी गयी है. इसके साथ ही बच्चों को पानी कम मात्रा में पिलाने की सलाह दी गयी है. अगर उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही हो, तो उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती करायें. इस संबंध में बाल रोग विशेषज्ञ प्रो डॉ अपूर्व घोष ने कहा : हम कफ सीरप नहीं देते. अब कोई दिशानिर्देश जारी करने की जरूरत नहीं है. खांसी कम करने के लिए हमेशा कफ सीरप देना ठीक नहीं. खांसी की दवाओं के भी कई दुष्प्रभाव होते हैं. कुछ सीरप सीधे हार्ट को प्रभावित करते हैं तो कुछ दिमाग को. किसी भी उम्र में हमेशा कफ सीरप की जरूरत नहीं होती. हालांकि, अगर खांसी में घरघराहट हो, तो उसे सीरप दिया जा सकता है. कफ सीरप खांसी कम करता है, यह एक मिथक है.

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