क्लास रूम से बाहर मानवता और जिंदगी का पाठ, मेस वर्कर्स के वेटर बने आइआइटी के छात्र

कोलकाता : आइआइटी-खड़गपुर देश के सबसे पुराना आइआइटी है और यहां पढ़ने वाले छात्रों के बारे में सामान्य धारणा रहती है कि उनकी सोच पर यांत्रिक प्रभाव ज्यादा होता है. लिहाजा, संस्थान ने क्लास रूम से बाहर जिंदगी का पाठ सिखाने के लिए नया फॉर्मूला अपनाया है. स्टूडेंट्स अपने ‘मेस वाले भैया’ का इंतजार खाने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 4, 2018 7:29 AM

कोलकाता : आइआइटी-खड़गपुर देश के सबसे पुराना आइआइटी है और यहां पढ़ने वाले छात्रों के बारे में सामान्य धारणा रहती है कि उनकी सोच पर यांत्रिक प्रभाव ज्यादा होता है. लिहाजा, संस्थान ने क्लास रूम से बाहर जिंदगी का पाठ सिखाने के लिए नया फॉर्मूला अपनाया है. स्टूडेंट्स अपने ‘मेस वाले भैया’ का इंतजार खाने की टेबल पर करते हैं. वे उनके लिए वेटर की भूमिका में होते हैं और उसके पास बैठ कर खाना भी खाते हैं. यह कार्यक्रम पिछले महीने ही शुरू हुआ और पूरे सालभर तक चलेगा.

आइआइटी, खड़गपुर के कुल आठ हॉस्टल हैं- एलबीएस हॉल, मेघनाद साहा, राजेंद्र प्रसाद, विद्यासागर, सिस्टर निवेदिता, लाला लाजपत राय, पटेल और आजाद हॉल. इनमें करीब पांच हजार छात्र रहते हैं. ये सभी छात्र इस मुहिम का हिस्सा हैं. उनके लिए इंजीनियर बनने की तरह यह भी एक पढ़ाई है. इंजीनियर बनना उनके कैरियर का विषय है और अपने ही मेस के कर्मचारियों के लिए वेटर बनना सामाजिक जीवन में सफल होने की व्यावहारिक शिक्षा. इस मुहिम के जरिये वे यह सीख रहे हैं कि कैरियर का सफलता हासिल कर अंतत: उन्हें समाज की सेवा ही करनी है आैर समाज को वह कुछ वापस करना है, जो उन्होंने उससे लिया या जो उसे उनसे पाने का अधिकार है. यही आइडिया सीखना-सिखाना इस मुहिम को शुरू करने का मकसद है.

सिविल इंजीनियरिंग विभाग में पढ़ाई कर रहे प्रांजल द्विवेदी ने कहते हैं कि हमारे हॉल में मेस वर्कर कई सालों से काम कर रहे थे, लेकिन हाल ही में पुराने को हटाकर नये मेस वर्कर्स को लाया गया. सारी आपसी बॉन्डिंग टूट गयी, जिसे नये तरीके से बनाना भी जरूरी था. इस काम में प्रशासनिक स्टाफ, हॉल मैनेजमेंट समिति और हॉल वॉर्डेन्स ने भी हिस्सा लिया. मेस वर्कर्स भी इस प्रयोग से बहुत खुश दिखे और बताया कि पिछले कई सालों के दौरान कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ.
जीवन केवल सीजीपीए और मोटी कमाई नहीं
यहां पढ़ने वाले छात्र कृषि बांदी ने संस्थान के लाल बहादुर शास्त्री हॉल में मेस कर्मचारी संजय मोदक को बैठाकर उन्हें लंच सर्व किया. यह केवल रोल बदलने वाला काम न होकर जीवन का वह पाठ है, जिसे आइआइटी स्टूडेंट सीख रहे हैं. यहां छात्र सीख रहे हैं कि जिंदगी आइआइटी से निकलकर मोटी कमाई करने और सीजीपीए से अधिक है. बांदी ने कहा कि यह मेरे लिए खास पल रहा. पिछले तीन सालों से जो मुझे खाना परोस रहे थे, उन्हें खाना परोसने और उनके बगल में ही बैठकर खाने का अनुभव अनोखा रहा.