बांकुड़ा के दुर्गम गांवों में शिक्षा की रोशनी, 186 महिलाओं की नयी भूमिका

आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर की संस्था आर्ट ऑफ लिविंग ने जिले के 186 दुर्गम गांवों में शिक्षा पहुंचाने के लिए 186 महिलाओं को तैयार किया है.

By AMIT KUMAR | November 27, 2025 9:48 PM

बांकुड़ा.

आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर की संस्था आर्ट ऑफ लिविंग ने जिले के 186 दुर्गम गांवों में शिक्षा पहुंचाने के लिए 186 महिलाओं को तैयार किया है. ये महिलाएं यूथ लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम पूरा कर अपने गांवों में प्रारंभिक शिक्षा का नेतृत्व करेंगी.

इलाकों में शिक्षा की नींव

आर्ट ऑफ लिविंग बांकुड़ा के सदस्यों ने कहा कि कई गांवों में स्कूल इतनी दूर हैं कि बच्चों का पढ़ना-लिखना लगभग असंभव है. गोलडांगा गांव की मौसमी बाउरी बताती हैं कि उनके जैसे कई परिवार दूरी और संसाधनों के अभाव में बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते थे. इसी चुनौती को देखते हुए आर्ट ऑफ लिविंग ने इन महिलाओं को प्रशिक्षित कर गांवों में शिक्षा की नई खिड़की खोली है. कार्यक्रम को गुरुदेव श्रीश्री रविशंकर ने परिकल्पित किया है. इसका उद्देश्य युवाओं को अपने समुदाय में विकास संबंधी पहलों का नेतृत्व करने योग्य बनाना है.

कठिन परिस्थितियों में प्रयास

आर्ट ऑफ लिविंग के वरिष्ठ अंतरराष्ट्रीय शिक्षक अमित पेड़ीवाल ने बताया कि बांकुड़ा के अनेक गांव स्थिर बिजली, पक्की सड़कों और बुनियादी ढांचे से अभी भी दूर हैं. कई गांवों तक गाड़ियां नहीं पहुंचतीं, इसलिए वे कई बार पैदल या बाइक से जाते हैं. कई गांवों में न स्कूल थे, न सोलर लाइटें ठीक से काम करती थीं. ऐसे चुनौतीपूर्ण वातावरण में ही ये 186 महिलाएं शिक्षा की पहली चिनगारी लेकर आगे आयी हैं. पेड़ीवाल के अनुसार कुछ आदिवासी क्षेत्रों में बाल विद्या केंद्र पहला शिक्षण केंद्र बना है. अभिभावकों ने बताया कि बच्चों में अब अधिक शांति, एकाग्रता व संवेदनशीलता देखी जा रही है.

बच्चों में सीखने का नया अनुभव

बाल विद्या केंद्रों में बच्चे कहानियों, लयबद्ध गीतों, गतिविधियों और खेलों के माध्यम से साक्षरता और गणना की प्रारंभिक समझ विकसित कर रहे हैं. उन्हें सरल श्वास विधियां और जीवन-मूल्य भी सिखाए जा रहे हैं. इस प्रयास से शिक्षा केवल जानकारी न होकर एक सुखद अनुभव बनी है, जो व्यक्तित्व और मन दोनों को विकसित करती है. यह पहल बांकुड़ा के दूरस्थ इलाकों में एक जमीनी आंदोलन की शुरुआत है. महिलाएं नयी ऊर्जा, आत्मविश्वास और उद्देश्य के साथ अपने गांवों में लौट रही हैं. एक महिला, एक गांव और एक बच्चे से शुरू हुई यह यात्रा अब पुरुलिया के 55 नि:शुल्क स्कूलों और पश्चिम बंगाल के अन्य जिलों के 35 विद्यालयों तक पहुंच चुकी है. यह इस परिवर्तन की सिर्फ शुरुआत है.

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