1990 में कारसेवकों पर गोली चलाने का मुलायम को दुख, BJP ने कहा मांफी मांगे

लखनऊ : भाजपा ने आज कहा कि वर्ष 1990 में अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में अयोध्या में विवादित ढांचा बचाने के लिये कारसेवकों पर गोलियां चलवाने पर अफसोस जताने वाले सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को उस ‘जघन्य अपराध’ के लिये दुख व्यक्त करने के बजाय सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिये. भाजपा के प्रान्तीय प्रवक्ता विजय […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 25, 2016 7:14 PM

लखनऊ : भाजपा ने आज कहा कि वर्ष 1990 में अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में अयोध्या में विवादित ढांचा बचाने के लिये कारसेवकों पर गोलियां चलवाने पर अफसोस जताने वाले सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को उस ‘जघन्य अपराध’ के लिये दुख व्यक्त करने के बजाय सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिये. भाजपा के प्रान्तीय प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने आज यहां कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने जिन कारसेवकों पर गोलियां चलवायीं वे निहत्थे थे. ऐसे में उन पर गोली चलाने का आदेश देकर ‘जघन्य अपराध’ किया. महज दुख जता देने से उन कारसेवकों के परिजन को सुकून नहीं मिलेगा जो अयोध्या में सुरक्षाबलों की गोलियों का निशाना बने थे.

उन्होंने कहा कि आज 25 साल बाद उस घटना पर दुख व्यक्त कर देने से उन परिवारों के जख्म नहीं भरेंगे जिन्होंने उस घटना में अपने अपनों को खोया. क्या मुलायम वाकई उस नुकसान की भरपाई करने का माद्दा रखते हैं? उन्हें इस गुनाह के लिये सार्वजनिक मंचों पर माफी मांगनी चाहिए. गौरतलब है कि सपा मुखिया यादव ने 30 अक्तूबर 1990 को अयोध्या में विवादित ढांचा बचाने के लिए कार सेवकों पर गोली चलवाने के अपने फैसले पर कल अफसोस जाहिर किया था, लेकिन साथ ही यह भी कहा था कि धर्मस्थल को बचाने के लिए ऐसा करना जरूरी था.

यादव ने कल समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर की जयंती के मौके पर सपा प्रदेश कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम में कहा था कि अयोध्या में विवादित ढांचे को बचाने के लिए ही उन्होंने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिये थे, इसका उन्हें अफसोस है, लेकिन धर्मस्थल को बचाना जरूरी था इसलिए गोली चलाई गयी. सपा मुखिया ने कहा था कि संसद में तत्कालीन नेता विपक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने इस घटना का जिक्र किया था तो उन्हें यह जवाब दिया गया था कि धर्मस्थल बचाने के लिए गोली चलायी गयी थी और उस घटना में 16 लोगों की मौत हुई थी. अगर इसमें और भी ज्यादा जानें जाने का अंदेशा होता तो भी वह कदम पीछे ना खींचते.