BHU छात्र की जुबानी, पूरी कहानी – युद्धक्षेत्र में बदल चुका था कैंपस, लाठीचार्ज का फैसला हैरान करने वाला
!!सुधीर कुमार !!... रात के करीब एक बजे थे. राजा राम मोहन राय छात्रावास की छत पर हम इकट्ठे होकर,बीएचयू परिसर की वस्तुस्थिति पर नजर बनाए हुए थे. अचानक से कुछ ऐसा हुआ कि हम सब असहज हो उठे. पुलिस-प्रशासन द्वारा छोड़े गए आसूं गैस के संपर्क में आते ही आंखों और नाक में बड़ी […]
!!सुधीर कुमार !!
रात के करीब एक बजे थे. राजा राम मोहन राय छात्रावास की छत पर हम इकट्ठे होकर,बीएचयू परिसर की वस्तुस्थिति पर नजर बनाए हुए थे. अचानक से कुछ ऐसा हुआ कि हम सब असहज हो उठे. पुलिस-प्रशासन द्वारा छोड़े गए आसूं गैस के संपर्क में आते ही आंखों और नाक में बड़ी तेजी-से जलन होने लगी. इससे पहले की दर्द असहनीय हो, हम तुरंत अपने कमरे की ओर भागे और दरवाजा बंद कर आराम की मुद्रा ग्रहण की. इस बीच, हमारे आंखों और नाक से पानी निकलने का सिलसिला शुरु हो चुका था. ऐसा महसूस हो रहा था कि किसी ने आंखों में लाल मिर्च का पाउडर छिड़क दिया हो. सीढ़ी से उतरते समय हालात यह थे कि दर्द के मारे हमें अपनी आंखें बंद करनी पड़ी और केवल अनुमान के आधार पर हमने सीढ़ियों की श्रृंखला पार की. आंसू गैस के संपर्क में आने का मेरा यह पहला अनुभव था, जो पूरी तरह कटु साबित हुआ.
इससे पहले,रात्री बारह बजे जब छात्रों को लंका गेट पर जाने की अपील की गयी,तब मैं भी पूरी जोश के साथ चल पड़ा,यह जानते हुए भी कि प्रशासन द्वारा खदेड़े जाने पर भागने में मुझे परेशानी हो सकती है. लंका गेट से करीब पांच सौ मीटर पहले मेरे सहपाठियों का हुजूम रुइया छात्रावास तक पहुंच चुका था. गौरतलब है कि पिछले एक घंटे से लंका गेट पर प्रशासन भीड़ पर अत्याचार करती जा रही थी. रात में जब प्रदर्शनकारी छात्र-छात्राओं की संख्या कम थी, तब बीएचयू प्रशासन ने बल का प्रयोग कर निहत्थी आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज कर दिया. कल रात को उत्पन्न ‘गुरिल्ला युद्ध’ के लिए प्रशासन की यही गलती मुख्य रूप से जिम्मेदार रही. इससे पूर्व,पिछले दो दिन से लड़कियां बीएचयू गेट पर डटी हुई थीं.
उनकी मांग ऐसी भी नहीं थी,जिसे पूरा करने में बीएचयू प्रशासन को आनाकानी करना पड़े, लेकिन कुलपति साहब के अहम के आगे सारे प्रयास धाराशायी हो गये. पिछले 36 घंटे से लड़कियां प्रदर्शन कर रही थीं,लेकिन कुलपति ने स्वयं आकर मिलने और आश्वासन देने की बात को गंभीरता से नहीं लिया. हालांकि,शर्तों के आधार पर कभी वे लड़कियों के त्रिवेणी छात्रावास और महिला महाविद्यालय में आने की बात कहलवाते रहे,लेकिन अपने आगमन के प्रति वे पूरी तरह निष्क्रिय नजर आए. बीएचयू एक परिवार है और कुलपति उसके अभिभावक हैं, ऐसे में छात्राओं से आकर मिलने में उन्हें क्या परेशानी हुई,समझ से परे है. शनिवार को दिन के करीब बारह बजे विरोध को समर्थन देने के लिए मैं भी लंका गेट पहुंचा था. उस समय खबर मिली थी कि कुलपति की चापलुसी करने वाले छात्र और छात्राएं इकट्ठी भीड़ को गुटों में विभाजित करने के लिए प्रयासरत थीं और बाद में बहुत हद तक सफल भी हुईं.
बीएचयू की लड़कियां प्रशासन से आखिर मांग क्या रही थीं? केवल सुरक्षा ना!सुरक्षा छात्राओं की बुनियादी जरूरत है,जिसे बीएचयू प्रशासन को स्वतः मुहैया कराना चाहिए था. लेकिन,इसे मांगने के लिए भी लड़कियों को आवाज उठानी पड़ रही है,तब तो यह चिंता की बात है. 1300 एकड़ का कैंपस, करोड़ों का बजट, लेकिन लड़कियों की सुरक्षा नदारद.रात को पूरे कैंपस में रोशनी की उपलब्धता भी नहीं है. सीसीटीवी कैमरे कुछ चौराहों पर हैं, लेकिन बहुतों में नहीं. लड़कियों के कुछ छात्रावासों की बाहरी सुरक्षा भी कुछ जवानों के भरोसे है,जो प्रायः आर्मी से रिटायर्ड रहते हैं. ऐसी स्थिति में थोड़े-थोड़े समयंतराल में छेड़खानी की वारदातें होती रहती हैं और हर बार हमारा निकम्मा प्रशासन दोषियों को पकड़ने में विफल ही रहती है.
नवीन हॉस्टल में रहने वाली मेरी दोस्त बताती हैं कि वहां उन्हें डराया-धमकाया जाता है. चूँकि,इस हॉस्टल की अवस्थित बीएचयू में एक सड़क के ठीक किनारे है, इसलिए कभी उनकी खिड़कियों में पत्थर फेंके जाते हैं, तो कभी राह से गुजरने वाले मनचले राहगीर अश्लील बातें करते जाते हैं. स्थिति यह है कि इस डर से छात्राओं को शाम सात बजे ही हॉस्टल में कैद कर दिया जाता है. शनिवार की सुबह कुछ महिला छात्रावास का बाहरी दरवाजा इसलिए बंद कर दिया गया, ताकि लड़कियां प्रदर्शन में शामिल ना हो सके.
पहले जब कुछ न्यूज_चैनल वाले बीएचयू में लड़कियों से हो रहे भेदभाव की खबरें दिखाते थे, तब विश्वास नहीं होता था. लगता था कि ऐसी साजिशें विश्वविद्यालय की गरिमा को ठेस पहुँचाने के लिए की जा रही हैं. लेकिन,कुछ लड़कियों ने बताया कि ये बात सही है. उधर,सुप्रीम कोर्ट ने भी भेदभाव के विभिन्न स्वरुपों की जांच का भरोसा दिलाया है,तो उम्मीद जगी है कि लड़कियों को न्याय मिलेगा और जरुर मिलेगा…
– लेखक बीएचयू के छात्र है
