कोरोना की वजह से झारखंड, बिहार, बंगाल समेत 13 राज्यों के 4 में 3 बच्चों में नकारात्मक भावनाएं बढ़ीं

वैश्विक महामारी कोरोना वायरस की वजह से भारत के 4 में से 3 बच्चों में नकारात्मक भावनाएं बढ़ी हैं. सेव द चिल्ड्रेन ने झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, जम्मू एवं कश्मीर, ओड़िशा, कर्नाटक और तेलंगाना में किये गये एक अध्ययन के आधार पर तैयार एक रिपोर्ट जारी करते हुए शुक्रवार को यह बात कही.

By Prabhat Khabar Print Desk | November 27, 2020 8:41 PM

रांची/नयी दिल्ली : वैश्विक महामारी कोरोना वायरस की वजह से भारत के 4 में से 3 बच्चों में नकारात्मक भावनाएं बढ़ी हैं. सेव द चिल्ड्रेन ने झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, जम्मू एवं कश्मीर, ओड़िशा, कर्नाटक और तेलंगाना में किये गये एक अध्ययन के आधार पर तैयार एक रिपोर्ट जारी करते हुए शुक्रवार को यह बात कही.

सेव द चिल्ड्रेन की रिपोर्ट ‘अ जेनरेशन एट स्टेक : प्रोटेक्टिंग इंडियाज चिल्ड्रेन फ्रॉम द इम्पैक्ट ऑफ कोविड 19’ में कहा गया है कि कमजोर बच्चे उन अनिश्चितताओं को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित हैं, जो महामारी के कारण उनके जीवन में आयी हैं. अध्ययन भारत के शहरी और ग्रामीण बच्चों के लिए अप्रिय चित्र पेश करते हैं.

फिर से स्कूल जाने को लेकर संशय, टीचर्स और दोस्तों के साथ संपर्क न होना, परिवार की आजीविका खोने के कारण असुरक्षा और पारिवारिक हिंसा जैसी चिंताओं ने बच्चों के मन में नकारात्मक भावनाओं को बढ़ा दिया है. रिपोर्ट जारी करते हुए सेव द चिल्ड्रेन के सीइओ सुदर्शन सुचि ने कहा, ‘हमारे परिणाम बताते हैं कि महामारी के दौरान लगे आर्थिक झटके का वयस्कों और बच्चों पर असर पड़ा है.’

Also Read: Love Jihad: सिर्फ शादी के लिए धर्म परिवर्तन पर क्या कहता है कानून! फैसला देने में जज भी हैं परेशान

रिपोर्ट में कहा गया है कि घरेलू काम और देखभाल का दायित्व बढ़ा है, खासकर लड़कियों के लिए, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य और सेहत में कमजोरी आयी है. सबसे कमजोर बच्चे इसके सामाजिक और आर्थिक प्रभावों के सबसे बड़े शिकार बन रहे हैं. कोरोना की वजह से वंचित लोगों की समस्याएं और बढ़ेंगी, क्योंकि इनकी कमाई खत्म हो गयी है. इससे बच्चों पर मानसिक और मनोवैज्ञानिक असर होगा.

रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वे में भाग लेने वाले 11 प्रतिशत बच्चों और माइग्रेंट्स ग्रुप के 17 प्रतिशत बच्चों ने कहा कि महामारी के दौरान उनके घर में हिंसा हुई. 5 में से 4 बच्चों ने कहा कि उनकी पढ़ाई बाधित हुई है. वहीं, प्रवासी श्रमिकों में 91 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि उनकी आय खत्म हो गयी. हालात इतने बुरे हैं कि 60 प्रतिशत परिवारों के पास खाने के पैसे नहीं रह गये.

Also Read: Coffee Machine Blast: रामगढ़ में कॉफी मशीन में ब्लास्ट, एक की मौत, चार घायल, धमाके में उड़ गयी छत

शिक्षा के मोर्चे पर स्थित यह है कि दो-तिहाई बच्चों के पास केवल एक या दो प्रकार का लर्निंग मटेरियल है. 35 प्रतिशत किशोरियों को स्वास्थ्य रक्षक दवाओं या मासिक धर्म से जुड़े उत्पाद से वंचित रहना पड़ा. सबसे चिंता की बात यह रही कि सर्वे में शामिल 44 प्रतिशत और माइग्रेंट्स ग्रुप के 47 प्रतिशत परिवारों के पास मास्क भी नहीं था.

गरीब बच्चे शिक्षा से वंचित हुए, तनावग्रस्त हो गये

कोरोना के कारण वैसे गरीब बच्चे शिक्षा से वंचित और तनावग्रस्त हो गये हैं, जिनकी डिजिटल शिक्षा या शैक्षणिक सामग्री तक सीमित पहुंच है. सेव द चिल्ड्रेन ने भारत के 13 जिलों में यह अध्ययन किया. इसमें प्रवासियों के लक्षित समूह से सैंपल झारखंड से लिया गया. कोरोना के कारण जवाब देने वालों में वे बच्चे और अभिभावक शामिल थे, जो झारखंड आ रहे थे या आ चुके थे. ऐसे 606 अभिभावकों और 235 बच्चों (11 से 17 वर्ष की उम्र के) की राय ली गयी.

Posted By : Mithilesh Jha

Next Article

Exit mobile version