मौत के साये में 54 मासूम, विकास की बाट जोहता पश्चिमी सिंहभूम का माइलपी गांव, देखें Video

Ground Report: स्कूल में पानी की कोई व्यवस्था नहीं है. बच्चे नदी का पीला और मटमैला पानी पीने और अपनी थालियां धोने को मजबूर हैं. स्थानीय लोगों ने बताया कि पानी की इतनी किल्लत है कि वे ‘चुआं’ (जमीन खोदकर निकाला गया पानी) का उपयोग करते हैं. मिड-डे मील की स्थिति भी चिंताजनक है. बच्चों को केवल दाल, चावल और आलू मिलता है.

By Mithilesh Jha | December 20, 2025 10:38 PM
Prabhat Uncovered: मौत के साये में 54 मासूम जान! दर्दनाक सच #jharkhand Ground Report #middaymeal

Ground Report: झारखंड राज्य के गठन के 25 साल बाद भी जमीनी हकीकत सरकारी दावों से कोसों दूर है. पश्चिमी सिंहभूम जिले का माइलपी गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहा है. जान दांव पर लगाकर 54 मासूम हर दिन सरकारी स्कूल में बढ़ने जाते हैं. स्कूल जाने के लिए न तो सड़क है, न स्कूल में पीने लायक पानी है.

54 बच्चों के लिए एक शिक्षक का संघर्ष

पश्चिमी सिंहभूम जिले के इस स्कूल में वर्ष 2020 से एकमात्र शिक्षक काम कर रहे हैं. जैतून निस्तारबरजो हर दिन करीब 13 किलोमीटर गाड़ी से और फिर 4-5 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करते हैं. पहाड़ों और जंगलों से होते हुए जैतून स्कूल तक पहुंचते हैं. वह बताते हैं कि खराब रास्ते की वजह से कोई दूसरा शिक्षक यहां आने की हिम्मत नहीं जुटा पाता. बच्चों के भविष्य की खातिर वे बारिश और कीचड़ की परवाह किये बिना रोज स्कूल आते हैं.

Ground Report: टिन की छत और करंट का डर

स्कूल की स्थिति इतनी भयावह है कि कक्षाएं टिन से बनी एक अधूरी इमारत में चलती हैं. करंट लगने के डर से शिक्षक ने बिजली का कनेक्शन काट रखा है, क्योंकि जरा-सी लापरवाही बच्चों की जान ले सकती है. शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) के मानकों के अनुसार, 30 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए, लेकिन यहां 54 बच्चों को एक शिक्षक पढ़ा रहे हैं. बच्चों की मातृभाषा ‘हो’ है, जबकि शिक्षक को केवल हिंदी आती है. इससे संवाद और शिक्षा में भी बड़ी बाधा आती है.

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नदी का गंदा पानी और पोषण के नाम पर खानापूरी

स्कूल में पानी की कोई व्यवस्था नहीं है. बच्चे नदी का पीला और मटमैला पानी पीने और अपनी थालियां धोने को मजबूर हैं. स्थानीय लोगों ने बताया कि पानी की इतनी किल्लत है कि वे ‘चुआं’ (जमीन खोदकर निकाला गया पानी) का उपयोग करते हैं. मिड-डे मील की स्थिति भी चिंताजनक है. बच्चों को केवल दाल, चावल और आलू मिलता है. इसमें स्वाद और पोषण के नाम पर सिर्फ हल्दी और नमक होता है. यह सरकारी मानकों (450 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन) का खुला उल्लंघन है.

स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव और प्रशासनिक उपेक्षा

गांव में स्वास्थ्य सुविधाओं का घोर अभाव है. बीमार होने पर बच्चों और ग्रामीणों को खटिया (चारपाई) पर लादकर ले जाते हैं. गांव में मोबाइल टावर तो लग गया, लेकिन सड़कें आज भी गायब हैं. स्थानीय लोग और शिक्षक कहते हैं कि नेता केवल चुनाव के समय वोट मांगने आते हैं. उसके बाद कोई नहीं आता. शौचालय और चापाकल के आवेदन आज भी फाइलों में दबे हैं.

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