मजदूरी, सेवा नियमितीकरण और बीमा सुविधा की मांग
झारखंड के पशुपालन विभागीय एआई कर्मचारी संघ ने 15 अक्टूबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी है। एक वर्ष पहले सरकार ने न्यूनतम मजदूरी के अनुसार वेतन, सेवा नियमितीकरण, दुर्घटना मुआवजा और स्वास्थ्य बीमा देने का वादा किया था, लेकिन कोई प्रगति नहीं हुई। रांची मुख्यालय के निर्देश पर राज्य के कई जिलों के कर्मचारी हड़ताल में शामिल हैं। इस हड़ताल के कारण कृत्रिम गर्भाधान, टीकाकरण, दवा वितरण सहित पशु चिकित्सा सेवाएं ठप हो जाएंगी, जिससे दूध उत्पादन घटेगा और पशुपालकों की आमदनी प्रभावित होगी। प्रशासन वैकल्पिक व्यवस्था कर रहा है, लेकिन प्रशिक्षित कर्मियों की कमी चुनौती है। संघ का कहना है कि सरकार लिखित निर्णय तक आंदोलन जारी रहेगा।
15 अक्तूबर से झारखंड के पशुपालन कर्मी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर प्रतिनिधि, साहिबगंज. झारखंड पशुपालन विभागीय एआई कर्मचारी संघ ने गुरुवार से पूरे राज्य में अनिश्चितकालीन कलमबंद हड़ताल शुरू करने की घोषणा की है. संघ के प्रदेश अध्यक्ष राजू रजक, महामंत्री राजेश कुमार महतो और मुख्य सचिव अशोक कुमार सिंह ने बताया कि राज्य सरकार से बार-बार लिखित आश्वासन मिलने के बावजूद उनकी मांगों पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है. संघ ने बताया कि 26 सितंबर 2024 को हुई विभागीय बैठक में सरकार ने एआई कर्मियों को न्यूनतम मजदूरी के आधार पर मानदेय भुगतान, सेवा नियमितीकरण की प्रक्रिया शुरू करने, और कार्य के दौरान दुर्घटनाग्रस्त कर्मियों को मुआवजा व स्वास्थ्य बीमा का लाभ देने का वादा किया था. लेकिन एक वर्ष बीत जाने के बाद भी इन बिंदुओं पर कोई प्रगति नहीं हुई, जिससे कर्मियों में भारी आक्रोश है. रांची मुख्यालय से मिले निर्देश के बाद साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा, दुमका, देवघर, हजारीबाग और अन्य सभी जिलों के एआई कर्मियों ने भी हड़ताल पर जाने की घोषणा कर दी है. संघ ने स्पष्ट किया है कि हड़ताल के दौरान कृत्रिम गर्भाधान, पशु टीकाकरण, दवा वितरण और प्रजनन से संबंधित तकनीकी कार्य पूरी तरह ठप रहेंगे. हड़ताल के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में दुग्ध उत्पादन और पशु स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रभाव पड़ने की संभावना है. पशुपालन विभाग के एआई कर्मी गांवों में पशुधन विकास, नस्ल सुधार और रोग नियंत्रण की मुख्य कड़ी हैं. इनके कार्य ठप रहने से दूध उत्पादन में गिरावट आ सकती है और पशुपालकों की आमदनी प्रभावित होगी. विशेषज्ञों के अनुसार, यदि यह आंदोलन लंबा चला तो पशु रोगों पर नियंत्रण मुश्किल हो जाएगा और सहकारी दुग्ध समितियों को भी नुकसान उठाना पड़ेगा. प्रशासनिक स्तर पर वैकल्पिक व्यवस्था की कोशिशें जारी हैं, पर प्रशिक्षित कर्मियों की कमी से यह चुनौतीपूर्ण है. संघ ने कहा है कि जब तक सरकार उनकी मांगों पर लिखित निर्णय नहीं लेती, तब तक आंदोलन जारी रहेगा.
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