Ranchi news : आदिवासी संगठनों ने निकाली आक्रोश महारैली, कुड़मियों को एसटी में शामिल करने की मांग का किया विरोध

कहा : अगर जरूरत पड़ी तो आदिवासी समुदाय के लोग राज्य में चक्का जाम करेंगे. हमारे पुरखों ने तीर-धनुष से लड़ाई की थी, हम कागज-कलम से लड़ेंगे : ग्लैडसन

By RAJIV KUMAR | October 12, 2025 8:34 PM

रांची.

आदिवासी अस्तित्व बचाओ मोर्चा के तत्वावधान में रविवार को मोरहाबादी मैदान में आक्रोश महारैली का आयोजन किया गया. इसमें काफी संख्या में लोग शामिल हुए. इस दौरान कुड़मी संगठनों की एसटी दर्जे की मांग का विरोध किया गया. रैली में में दो प्रस्ताव पारित किये गये. कुड़मी को एसटी सूची में शामिल होने से रोकने के लिए राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, जनजातीय मंत्रालय, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, टीएसी और टीआरआइ को ज्ञापन सौंपा जायेगा. वहीं, अगर जरूरत पड़ी, तो आदिवासी समुदाय राज्य में चक्का जाम करेंगे. रैली में आदिवासी एक्टिविस्ट और लेखक ग्लैडसन डुंगडुंग ने कहा कि हमारे पुरखों ने तीर-धनुष से लड़ाई की थी. हम कागज-कलम से लड़ेंगे. उन्होंने कहा कि कुड़मी समुदाय झारखंड में सबसे बड़ा कब्जाधारी है. इन्होंने रघुनाथ भूमिज को रघुनाथ महतो घोषित किया. यह इतिहास की चोरी थी. 1872 से 1921 तक किसी भी जनगणना में इनका नाम आदिवासियों के रूप में दर्ज नहीं था. अगर ये आदिवासी हैं, तो जयराम महतो की पार्टी ने अपने घोषणापत्र में कुड़मियों के लिए इडब्ल्यूएस की तर्ज पर आरक्षण की मांग क्यों की थी? अजय तिर्की ने कहा कि रेल टेका, डहर छेका से आदिवासी नहीं बना जाता. संविधान में पांच मानक हैं, जिस पर वे खरे नहीं उतरते हैं. अभी तक हम शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे हैं. पर आनेवाले समय में हमारा आंदोलन उग्र होगा. कुशवाहा समाज के प्रताप कुशवाहा ने कहा कि कुड़मियों के मन में आदिवासी बनने का विचार हाल के कुछ वर्षों से ही आया है. इसके पीछे उनकी राजनीतिक मंशा है. प्रवीण कच्छप ने कहा कि कुड़मियों को अपनी असंवैधानिक जिद छोड़ देनी चाहिए. क्योंकि, वे कभी भी आदिवासी नहीं बन सकते. कुड़मियों को हमेशा कृषक जाति के रूप में ही सूचीबद्ध किया गया है.

पलामू से आये रघुपाल सिंह खरवार ने कहा कि आज हमारी अस्मिता और अस्तित्व पर संकट है. हमारे अधिकारों पर चोट की जा रही है. अधिवक्ता राकेश बड़ाईक ने कहा कि कुड़मी नेता कहते हैं कि उनकी मांग 75 साल पुरानी है. पर उन्हें बताना चाहिए पिछले 75 सालों में कब रेल टेका, डहर छेका आंदोलन किया. पार्वती गगराई, बिनसाय मुंडा, ज्योत्सना तिर्की, सुधीर किस्कू आदि ने भी अपने विचार रखे. रैली में शामिल होने के लिए रांची के अलावा, रातू, अनगड़ा, खूंटी, पलामू, लातेहार, गुमला, सरायकेला-खरसावां, सिंहभूम आदि जिलों से लोग पहुंचे थे.

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