Satellite Survey of Land In Jharkhand : नौ करोड़ खर्च, पर पूरा नहीं हुआ सेटेलाइट सर्वे, झारखंड के इन जिलों के गांवों का होना था सर्वे

नौ करोड़ खर्च पर पूरा नहीं हुआ सेटेलाइट सर्वे

By Prabhat Khabar | January 19, 2021 10:11 AM

Satellite Survey In Jharkhand, Jharkhand Satellite Survey रांची : चार साल बीतने और नौ करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी रांची, खूंटी और सिमडेगा के 875 गांवों का सेटेलाइट सर्वे नहीं हो सका है. सर्वे के आधार पर नक्शा तैयार कराना था. इसके लिए राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग ने सर्वे का काम चार साल पहले आइआइटी रुड़की को दिया था. अधिकारियों ने बताया कि इस संस्थान ने एजेंसी को काम दिया. उसके माध्यम से सर्वे का काम चल रहा था,

फिलहाल यह काम रुका हुआ है. खुद राजस्व विभाग ने सर्वे के तरीके पर सवाल खड़ा कर दिया है. वहीं कंपनी ने समय पर कर्मियों को उपलब्ध नहीं कराने की शिकायत की.

जानकारी के अनुसार, भारत सरकार ने वर्ष 2014-15 में इस योजना के लिए करीब 18 करोड़ रुपये दिये थे. राज्य सरकार ने जुलाई 2016 में इसका काम कंपनी को दिया था. कंपनी द्वारा किये गये सर्वे की वास्तविकता की स्थिति बंदोबस्त कार्यालय की ओर से देखी गयी. इसके बाद अफसरों ने कहा कि केवल कृषि जमीन का सर्वे हुआ है, आवासीय का नहीं हुआ है.

Also Read: Right To Service Act Jharkhand : मॉल में खुदरा शराब दुकान को मिलेगा लाइसेंस, राज्य की ये 12 सेवाएं ‘राइट टू सर्विस एक्ट’ में

राजस्व विभाग के अधिकारियों ने यह सवाल उठाया कि कृषि जमीन की मापी के लिए अलग स्केल का इस्तेमाल होता है. ऐसे में कुछ जगहों पर हुए सर्वे के आधार पर बने नक्शे सही नहीं हैं. कंपनी ने नामकुम के जिन गांवों का सर्वे कर नक्शा सौंपा था, उसका मिलान करने बंदोबस्त पदाधिकारी वहां अमीन लेकर गये, तो इसका मिलान ही नहीं हो सका. इसके बाद ही विभाग की ओर से इसकी जांच कराने का निर्देश दिया गया और इसकी जांच भी पूरी नहीं हुई.

इधर कंपनी ने शेष नौ करोड़ रुपये भुगतान करने की मांग की है. कंपनी की ओर से अपनी बातें रखी गयी हैं. यह कहा गया है कि सर्वे के लिए समय-समय पर अमीन की जरूरत थी. इसके साथ ही संबंधित कर्मियों की भी जरूरत थी, लेकिन उन्हें उपलब्ध नहीं कराया गया. बार-बार इसे लेकर कंपनी ने पत्र लिखा है. समय से कर्मी नहीं मिलने के कारण यह काम लटकता रहा. इधर शेष राशि के भुगतान की बाबत मुख्यालय ने बंदोबस्त कार्यालय से सर्टिफिकेट मांगा है.

अधिकारियों ने बताया कि अगर इन गांवों का सर्वे हो जाता और नक्शा तैयार होता, तो जमीन संबंधी विवाद समाप्त करने में आसानी होती. जमीन का अधिकार अभिलेख तैयार हो जाता. सर्वे से ही यह स्पष्ट होता कि अभी उक्त गांवों में जमीन की स्थिति क्या है. कौन सी जमीन की प्रकृति क्या है. जमीन की प्रकृति के आधार पर उसका वर्गीकरण हो पाता. जमीन का मालिक कौन है, यह भी स्पष्ट होता.

Posted By : Sameer Oraon

Next Article

Exit mobile version