Ranchi news : हिरासत अवधि बढ़ाने के लिए दोबारा बोर्ड की अनुमति लेना अनिवार्य नहीं : कोर्ट
लातेहार के उपेंद्र यादव ने अपनी निवारक हिरासत को चुनौती दी थी
: लातेहार के उपेंद्र यादव ने अपनी निवारक हिरासत को चुनौती दी थी रांची . झारखंड हाइकोर्ट ने प्रिवेंटिव डिटेंशन (निवारक नजरबंदी) के मामले में स्पष्ट किया है कि एक बार सलाहकार बोर्ड द्वारा हिरासत आदेश को मंजूरी दिये जाने और राज्य सरकार के पुष्टि आदेश जारी कर दिये जाने के बाद हिरासत की अवधि बढ़ाने के लिए बोर्ड की दोबारा अनुमति अनिवार्य नहीं है. अदालत ने कहा कि झारखंड कंट्रोल ऑफ क्राइम एक्ट, 2002 में बार-बार समीक्षा का प्रावधान नहीं है. जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने यह टिप्पणी उस याचिका को खारिज करते हुए की, जिसमें लातेहार के उपेंद्र यादव ने अपनी निवारक हिरासत को चुनौती दी थी. उसे झारखंड कंट्रोल ऑफ क्राइम एक्ट की धारा 12(2) के तहत असामाजिक तत्व घोषित करते हुए तीन-तीन महीने के अंतराल पर निरंतर हिरासत में रखा गया था. प्रार्थी का तर्क था कि वह कानून में परिभाषित असामाजिक तत्व की श्रेणी में नहीं आता और हिरासत अवधि में विस्तार बिना सलाहकार बोर्ड की मंजूरी के अवैध है. प्रार्थी के खिलाफ कई वर्षों में हत्या के प्रयास, रंगदारी, हमला तथा आर्म्स एक्ट के मामलों सहित कई एफआईआर दर्ज थीं. इन्हें देखते हुए अदालत ने माना कि उसके विरुद्ध आदतन आपराधिक गतिविधियों का पर्याप्त रिकॉर्ड मौजूद है. अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय का उल्लेख करते हुए कहा कि सलाहकार बोर्ड की भूमिका पहली समीक्षा तक सीमित है. बोर्ड द्वारा हिरासत को उचित ठहराये जाने के बाद सरकार अधिकतम 12 माह की अवधि तक देखते हुए विस्तार कर सकती है और इसके लिये पुन: बोर्ड की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है. हाईकोर्ट ने हिरासत विस्तार के सभी आदेशों को वैध ठहराया और याचिका खारिज कर दी.
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