Azadi Ka Amrit Mahotsav: गर्म चाय उड़ेली, टॉर्चर किया, पर नहीं डिगे ईश्वरी प्रसाद गुप्ता
हजारों स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग, संघर्ष और बलिदान के कारण आज हम सब आजाद भारत में सांस ले रहे हैं. मां भारती को ब्रितानी जंजीर से मुक्त कराने के लिए वीर बांकुरों ने जान की बाजी तक लगा दी. आज हम स्वतंत्रता दिवस पर ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानी के संघर्ष व त्याग के बलिदान को याद कर रहे हैं.
स्वतंत्रता सेनानी के पौत्र संजय गुप्ता की जुबानी पूरी कहानी
Azadi Ka Amrit Mahotsav: आजादी के लिए महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ छेड़े गये आंदोलन में भाग लेने वाले देवरी प्रखंड के ढेंगाडीह निवासी स्वतंत्रता सेनानी ईश्वरी प्रसाद गुप्ता भले ही आज इस दुनिया में नहीं हैं, किंतु उनका कृतित्व जन-जन में स्मरणीय है. ईश्वरी प्रसाद गुप्ता रामगढ़ में अपने मामा मन्नू प्रसाद व रामेश्वर प्रसाद के घर में रहकर शिक्षा हासिल कर रहे थे. इसी दौरान वर्ष 1940 में रामगढ़ में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में उन्होंने भाग लिया. सम्मेलन में पधारे महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर वह अपने सहपाठियों के साथ आजादी की लड़ाई में कूद पड़े.
1942 के आंदोलन में वह नरसिंह प्रसाद भगत के साथ डटे रहे. इस दौरान कई बार जेल जाना पड़ा. अंग्रेजों ने उन पर गर्म चाय भी उड़ेली. बावजूद वह पीछे नहीं हटे. आजादी के आंदोलन में लोगों को अधिक से अधिक संख्या में जोड़ने के उद्देश्य से उन्होंने रामगढ़ के साथ-साथ हजारीबाग, गिरिडीह और चतरा का दौरा किया. ईश्वरी प्रसाद गुप्ता ने लोगों को अंग्रेजों के विरुद्ध जारी लड़ाई में एकजुट बने रहने के लिए प्रेरित किया.
समय के साथ बिसार दिये गये ईश्वरी
ईश्वरी प्रसाद गुप्ता को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देवरी प्रखंड कार्यालय में नौकरी मिल गयी. उन्हें प्रखंड कल्याण पदाधिकारी बनाया गया. वह वर्ष 1984 तक प्रखंड कल्याण पदाधिकारी रहे. 1984 में सेवानिवृत्त होने के उपरांत ढेंगाडीह स्थित अपने पैतृक निवास स्थान में रहकर समाज सेवा में जुट गये. सरकार ने कई बार उन्हें सम्मानित किया. वर्ष 2008 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने उन्हें सम्मानित किया था. फरवरी 2014 में उनका निधन हो गया. उनके निधन के बाद परिवार के सदस्य ढेंगाडीह स्थित आवास में रहना छोड़ दिये. वर्तमान समय में उनके आवास में ताला लटका रहता है. ईश्वरी प्रसाद गुप्ता के पोता संजय गुप्ता ने बताया कि उनके निधन के बाद प्रशासनिक अधिकारियों ने कोई सुध नहीं ली.
रिपोर्ट: श्रवण कुमार, धनबाद